डॉ योगेन्द्र
अगर खुदा न खास्ते कृष्ण आ जायें और यमुना किनारे अपना कदंब का पेड़ और कलकल बहती पवित्र यमुना को ढूँढने लगें, तो क्या उन्हें वह यमुना मिलेगी, जहाँ वे कदंब के पेड़ पर बैठकर बाँसुरी से गोपियों को टेरते थे? कृष्ण शायद हताश हो जायें और सोचने लगें कि उनकी वह यमुना कहाँ खो गई और किसने उस यमुना को नष्ट कर दिया? यमुना के मरते जाने में एक संस्कृति भी मर रही है। घर-घर में प्रतिमा बैठायी जाती है। सड़कों पर डीजे के सामने खूब नाचा जाता है, लेकिन संस्कृति के कारकों को कौन बचाएगा? धर्म की रक्षा में लगे ध्वजवाहकों को इधर भी ध्यान देना चाहिए। सड़कों पर नारे लगाना और जनता के अंदर ग़लत नैरेटिब रच कर अपना उल्लू साधना एक बात है, धर्म की वास्तविक चाहत दूसरी बात है। धर्म में नदियों की महत्ता असंदिग्ध है। लेकिन आधुनिक सभ्यता तो नदियों से जंग लड़ रही है। वह नदियों के साथ विकसित नहीं हो रही, वह नदियों की लाश पर विकसित हो रही है। गंगा पर छाये अपूर्व संकट क्या कम दुखदाई है? भगीरथ अगर अवतरित हो जायें और अपनी गंगा पर दृष्टिपात करें तो उन्हें लगेगा कि सागर के पुत्रों को यह गंगा क्या उद्धार करेगी, बल्कि इसके ही उद्धार की आवश्यकता है। मेरे पुत्र ने एक दिन बातचीत में कहा कि नार्थ इंडिया बेहद विह्वल और बेचैन है। मैं सोचने लगा कि इसकी बेचैनी की वजह क्या है? इसी नार्थ इंडिया में तो ज़्यादा मंदिर और मस्जिद हैं और बन रहे हैं। यहाँ ही चीख- चिल्लाहट ज़्यादा है। इस इलाक़े में बहुत कुछ तहस नहस है। जीवन में रिद्म नहीं है। वजह है दिनों दिन प्रकृति से अलगाव। नदियों बिखर गयीं तो जीवन में भी बिखराव आया। ज्यों-ज्यों नदियाँ मरती जायेंगी। हमारे प्राण भी वैसे ही प्यासे और बेतरतीब होते जायेंगे।
हम आजकल ग़ज़ब-ग़ज़ब काम कर रहे हैं। पौधों को सींचना है तो जड़ों में पानी न देकर पत्तों में पानी दे रहे हैं। गंगा में गाद बहुत है। गाद यानी रेत और मिट्टी। यह गाद हिमालय के क्षरण के कारण है। वहाँ हम पेड़ काट रहे हैं और इसकी वजह से मिट्टी और रेत नदियों में आ रहे हैं। नदियों से रेत बह कर समुद्र में गिरता था। हमने उसे भी बराज बनाकर रोक दिया। नदी करे तो क्या करे? जब हम सब उसे मारने पर ही तुले हैं तो वह छटपटाने के सिवा क्या करे? सरकार को गंगा नदी में जहाज़ चलाना है। चलाने के लिए रूकावटहीन धार चाहिए। रेत रास्ते में पड़ा है तो सरकार सोच रही है कि गंगा में ड्रेजिंग करवाई जाय। मूर्खता पर मूर्खता। अगर ड्रेजिंग से थोड़े दिनों के लिए जहाज़ चलने भी लगे, लेकिन हिमालय से आने वाला गाद तो इसे फिर भर देगा। यह तात्कालिक बंदोबस्त भी किसी काम में नहीं आयेगी। हाँ, इतना भर होगा कि किसी की तोंद और बढ़ जायेगी। गाद को कम करने का एक ही उपाय है और वह है कि बराज को खोल दिया जाये और हिमालय में पेड़ों को जो काट रहे हैं, इसे रोका जाये। हिमालय पर पेड़ न भी उगायें तो हिमालय में इतनी ताक़त है कि नये वनस्पति उगा लेगा। सिर्फ़ आप उसे काटना बंद कर दें। गंगा ख़ुद को स्वच्छ कर लेगी, अगर उसे अविरल बहने दें तो। नदी, नदी इसलिए है कि बहती है। बहाव को रोकने का मतलब है नदियों को मारना।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)