डॉ योगेन्द्र
जरूरी नहीं है कि बंटने के बाद ही कटते हैं। बहुत से लोग गाजर मूली की तरह कटते रहे। आज भी कट रहे हैं। डर दिखा कर देश विभाजित हो गया। यशपाल का उपन्यास ‘झूठा-सच’ पढ़िए या राही मासूम रज़ा का ‘आधा गांव’ – इसमें लिखा गया है कि किस तरह डर को मुस्लिमों के घर में बांटा गया। अगर देश आजाद हुआ तो हिन्दू राजा हो जायेगा और तब मुस्लिमों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जायेगा। ‘आधा गांव’ उपन्यास में अलीगढ़ से दो युवक गंगौली आया है, मुस्लिम लीग का प्रचार करने। वह प्रचार करता है कि देश में एक नया खुदा पैदा हुआ है और वह है मुहम्मद अली जिन्ना। वही आठ करोड़ मुसलमानों का उद्धारक है। वह यह भी कहता है – ‘पाकिस्तान नहीं बना तो ये आठ करोड़ मुसलमान यहां अछूत बना कर रखे जायेंगे। ‘सावरकर और जिन्ना ने द्विराष्ट्र का सिद्धांत दिया। उन्होंने कहा कि हिन्दू मुस्लिम अलग-अलग राष्ट्र हैं। वे साथ-साथ नहीं रह सकते। वे सदियों से रहते आये थे। लेकिन द्विराष्ट्र के चक्कर में पहले दो राष्ट्र बने, क्योंकि हिन्दू मुस्लिम साथ नहीं रह सकते थे। फिर 1971 में मुस्लिम-मुस्लिम लड़ पड़े और एक और राष्ट्र बना बंगलादेश। जिन्ना और सावरकर दोनों झूठ बोल रहे थे। मुस्लिम और हिन्दू साथ नहीं रह सकते थे, ठीक है। यह बात समझ में आ गयी। फिर मुस्लिम-मुस्लिम क्यों भिड़ गए? क्या ये दोनों भी दो राष्ट्र हैं? इतना होने के बाद भी भारत में मुस्लिम और पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू रह रहे हैं। इंडोनेशिया में मुश्किल से हिन्दू दो प्रतिशत है और मुस्लिम नब्बे प्रतिशत, तब भी दोनों में कभी दंगे नहीं होते। यहां तक कि हर मुस्लिम के घर में रामायण पढ़े जाते हैं और किसी भी शुभ अवसर पर रामलीला का मंचन होता है।
हम नफ़रत और डर बांटते हैं। इससे किसी को देश मिल जाता है तो किसी को कुर्सी। तबाही आम लोगों की होती है। दोनों धर्मावलंबियों को यह समझना है कि दोनों को साथ रहना है तो एक दूसरे का सम्मान करें और एक दूसरे के सुख-दुख में भाग लें। हम सब-कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं जानते। गेरूआ पहन लेने से कोई संन्यासी नहीं हो जाता और न दाढ़ी-मूंछ बढ़ा लेने से मौलवी हो जाता है। मुझे तो आजकल उल्टा ही लगता है। हर व्यक्ति को गृहस्थ होना चाहिए। गृहस्थ बन कर ही आप दुनिया के सच्चे नागरिक हो सकते हैं। दुनिया का अधूरा अनुभव आपको झूठे अहंकार से भर सकता है।
कुछ लोगों को मैं देख रहा हूं। उनमें जिन्ना और सावरकर की आत्मा घुस गई है और कुहराम मचा रही है। वे इतिहास के पन्नों से कुछ नहीं सीखते। उसे दुहराते रहते हैं। हम भी वहीं खड़े रहते हैं। वे पुकारते हैं और हम गाय की तरह उनके पीछे चल पड़ते हैं। सत्ता का जो लोग खेल खेलते हैं, वे तो शतरंज बिछाते हैं। शकुनि ने बिछाया। युधिष्ठिर फंसे। बिछाने वाला ग़लत है तो फंसने वाला उससे ज्यादा ग़लत है। शकुनि को माफ नहीं किया गया, तो युद्ध में स्थिर रहने वाले युधिष्ठिर को भी माफी नहीं मिली है। जिन्ना और सावरकर के चक्रव्यूह में फंस कर देश हांफ रहा है। इसके दोषी हम सभी भी हैं। आज भी जिन्होंने देश जोड़ने की कोशिश की, उन्हें गालियां देकर आत्मतुष्ट हो रहे हैं और जो सचमुच गद्दार थे, उन्हें पूजने की कोशिश कर रहे हैं। हमें समय को हल्के फुल्के में नहीं लेना चाहिए। एक गलती की सजा हम भुगत रहे हैं। दूसरी गलती न करें। यह गलती पहले से भी महंगी पड़ सकती है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए swarajkhabar.in उत्तरदायी नहीं है।)