जानलेवा होता सड़क जाम

सड़कों पर कहीं गड्ढे तो कहीं टोल पर लंबी लाइनें

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निर्मल रानी
रोड टैक्स अदा किये बिना यदि आप सड़क पर अपना वाहन चलाते हुये पकड़े गये तो आपका चालान/जुर्माना होना निश्चित है। और अब तो जगह-जगह सड़कों पर लगे टोल वसूली बैरियर्स पर हर लेन में मोटे अक्षरों में लिख दिया गया है कि ‘टोल दिये बिना भागने वाले से दस गुना टोल वसूली की जायेगी’। इसी तरह इन्शुरेन्स के बिना या कार सीट बेल्ट लगाये बग़ैर या दुपहिया वाहन से हैलमेट लगाए बिना आप चलते हैं तो भी चालान को दावत दे रहे हैं। गोया आपके वाहन में कोई भी काग़ज़ की कमी है फिर तो आपका सड़क पर निकलना चालान/जुर्माना भरने को दावत देना है। यहाँ तक कि यदि किसी मजबूरीवश कोई वाहन स्वामी समय पर टैक्स नहीं दे सका तो सरकार उससे जुर्माने के साथ टैक्स वसूल करती है? परन्तु सवाल यह है कि टोल व मार्ग टैक्स व कमेटी टैक्स आदि के नाम पर धन वसूली करने वाली सरकार इस वसूली के बदले में जनता को क्या देती है ?
जब हम सड़क पर वाहन चलाते हैं तो हमें पता चलता है कि सड़कों पर कहीं गड्ढे हैं तो कहीं टोल पर लंबी लाइनें। सड़कों पर कई-कई घंटों के लंबे जाम हैं तो उसी जाम में धुल, धुएं और प्रदूषण भरी घुटन। क्या इसी दुर्व्यवस्था के बदले सरकार आम लोगों से वाहन व उसके नाम पर अन्य टैक्स वसूलती है? और सबसे बड़ी बात यह कि सरकार की ग़लत, पूंजीवादी व विवादित नीतियों का भुगतान आख़िर जनता क्यों करे। उदाहरण के तौर पर गत एक वर्ष से पंजाब-हरियाणा के शंभु बॉर्डर पर दिल्ली अमृतसर मुख्य मार्ग पर किसानों के कई संगठन धरने पर बैठे हैं। परन्तु हरियाणा की भाजपा सरकार उन्हें दिल्ली जाने के लिये हरियाणा में प्रवेश नहीं करने दे रही। ‘दिल्ली सल्तनत’ का फ़रमान है कि किसान दिल्ली से दूर रहें। हरियाणा सरकार उसी आदेश पर अमल करते हुये किसानों को बलपूर्वक शंभु बॉर्डर पर रोके हुये है। और इन्हीं किसानों के धरने के कारण सरकार ने देश का सबसे व्यस्ततम मार्ग रोक रखा है। किसानों की क्या मांगें हैं, सरकार क्यों पूरी नहीं कर रही, किसानों के दिल्ली जाने से सरकार को क्या परेशानी होगी, इन बातों से आम लोगों का क्या वास्ता। वाहन टैक्स भरने वाले आम लोगों को तो बिना बाधा के सुचारु रूप से चलने वाला राजमार्ग चाहिये जो उसे सरकार नहीं दे पा रही है। नतीजतन अमृतसर-भटिंडा, जम्मू-कश्मीर तक का वह ट्रैफ़िक जो राजपुरा -शम्भू -अम्बाला से गुज़र कर दिल्ली की ओर निकल जाता था अब उसे राजपुरा -ज़ीरकपुर से वाया चंडीगढ़ -डेराबसी-अम्बाला मार्ग से होकर गुज़रना पड़ रहा है। इस मार्ग परिवर्तन के चलते चंडीगढ़ -अम्बाला मार्ग लगभग 24 घंटे बाधित रहता है। और टोल पर भी लंबी क़तारें लगी रहती हैं।
सवाल यह है कि फिर सब्ज़ बाग़ दिखाने वाली ऐसे निरर्थक ख़बरों से जनता को क्या हासिल जो समय-समय पर सरकार द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के लिये विज्ञापनों के माध्यम से की जाती हैं कि देश में सड़कों का रिकार्ड निर्माण हो रहा है। सड़कों का जाल बिछ रहा है,आदि। यदि ऐसा है तो जाम की स्थिति क्यों? कुछ समय से सरकार ने प्रदूषण कम करने के नाम पर 10-15 वर्ष पुराने वाहन का चलन बंद करने का निर्णय लिया है। दिल्ली में तो इनका प्रवेश पूर्णतयः वर्जित है। इस नीति की आलोचना करने वालों का मत है कि यह नियम पूंजीपतियों के मुनाफ़े की ख़ातिर बनाये गए हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा वाहन बिक सकें। उधर जगह-जगह फाइनेंसर भी कार लोन देने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसे में सड़कों पर उधार की चमचमाती हुई नई गाड़ियों की क़तार बढ़ना भी स्वभाविक है।

सड़कों पर लगने वाले इन दमघोंटू और जानलेवा जाम का प्रभाव केवल यही नहीं होता कि जाम में फंसे लोग 2-4 घण्टों के जाम के बाद अपने घरों को पहुँच जाते हैं। जी नहीं, इन्हीं जाम में फंसी बसों में अनेक यात्री ऐसे होते हैं जो चंडीगढ़,हिमाचल या अन्य क्षेत्रों से बसों में बैठकर अंबाला छावनी जाते हैं जहाँ से उन्हें यूपी-बिहार या अन्य राज्यों की लंबी दूरी की ट्रेन पकड़नी होती है। परन्तु रोज़ाना के इस जाम में घंटों तक फंसी होने वाली बसों के अनेक यात्रियों की ट्रेन रोज़ छूट जाती है। ज़रा सोचिये कि मुश्किल से महीनों पहले कराया गया आरक्षित टिकट होने के बावजूद लंबी यात्रा करने वालों की ट्रेन छूटने पर उस यात्री व उसके सहयात्री परिजन व बच्चों को इस जाम की क्या क़ीमत भुगतनी पड़ती होगी? कम से कम सत्ता का सुख भोग रहे नेताओं को तो शायद इस बात का बिल्कुल नहीं पता?
इसी जाम में कहीं ऐम्बुलेंस फँस जाती है तो कोई अपनी परीक्षा या साक्षात्कार से हाथ धो बैठता है। खांसी दमे के तमाम मरीज़ों के लिये तो यह जाम दमघोंटू यहाँ तक कि जानलेवा भी साबित होता है। मगर सरकार के पास आमलोगों की इन परेशानियों का कोई समाधान नहीं। केवल एक चंडीगढ़-अम्बाला राजमार्ग ही नहीं बल्कि कहीं भी चले जाइये पहाड़ी क्षेत्रों में चंडीगढ़-शिमला मार्ग हो या कुल्लू-मनाली मार्ग, एनसीआर में क्या ग़ाज़ियाबाद तो क्या दिल्ली गुड़गांव या दिल्ली के चारों तरफ़ का क़रीब 50 किलोमीटर का इलाक़ा तो रोज़ाना लगभग सारा दिन जाम का शिकार रहता है। इसी तरह देश के अन्य नगरों विशेषकर महानगरों में भी जानलेवा जाम लगे दिखाई देते हैं। क्या महाराष्ट्र, यूपी क्या बिहार तो क्या बंगाल हरियाणा पंजाब यानी देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहाँ ख़ासकर शहरों व क़स्बों में जाम न लगते हों।
फिर आख़िर भारी टैक्स भरने के बावजूद भी यदि जनता को इसी तरह के जाम का सामना करना पड़े तो इसका ज़िम्मेदार कौन है। जाम के कारण लाखों लोगों को रोज़ाना जो भारी नुक़्सान व परेशानियां उठानी पड़ती हैं वह जनता अपनी फ़रियाद लेकर कहाँ जाये? क्या यह हालात इस बात के लक्षण नहीं कि सरकार जनता से किसी न किसी बहाने टैक्स तो वसूल कर लेती है परन्तु उसके बदले में जनता को वह सुविधा मुहैय्या नहीं करा पाती जिसके लिये टैक्स वसूला गया है? अतः निश्चित रूप से यह केवल सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को जानलेवा होते जा रहे सड़क जाम से मुक्ति दिलाये।

 

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निर्मल रानी
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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