ब्रह्मानंद ठाकुर
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के भूख हड़ताल का आज 51वां दिन है। वे देश के किसानों के हित से जुड़ी मांगों को लेकर अनशन कर रहे हैं। लोकतंत्र में अपनी मांगों को लेकर अनशन और सत्याग्रह अहिंसक रास्ता होता है। ऐसा गांधी ने भी कहा था। किया भी था। तब शासन व्यवस्था ऐसे आंदोलनों पर तुरत संज्ञान लेती थी। उनकी मांगों पर विचार किया जाता था। अब ऐसा नहीं होता है। अपने बुनियादी सवालों पर भूख हड़ताल और धरना देने वालों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। डल्लेवाल के साथ भी आज ऐसा ही हो रहा है।
खबर है कि संयुक्त किसान मोर्चा सोनीपत की ओर से केंद्र सरकार की किसान विरोधी कृषि नीति एवं एमएसपी की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे जगजीत सिंह डल्लेवाल की जान बचाने के लिए पंचायत भवन में एक सभा की गई। इसमें वक्ताओं ने कहा कि यह कृषि नीति देश के चंद कॉरपोरेट घरानों के लिए लाई गई है। इसमें जहां किसान के ऊपर मार पड़ेगी, वहीं जितने भी आढ़ती व छोटे व्यापारी हैं, वे सभी बर्बाद हो जाएंगे। पूर्व में तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी शहादत देकर सरकार को वह कानून वापस लेने के लिए मजबूर किया था। उसके बाद बिजली संशोधन बिल लाया गया है। जिसके माध्यम से बिजली का पूर्ण निजीकरण कर दिया जाएगा। मोबाइल फोन की तरह ही बिजली के अग्रिम भुगतान करने का नियम बनाया जा रहा है। वे इसे भी वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
कर्ज के बोझ के नीचे दबते हुए किसान मजदूर एक तरफ जहां आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं, दूसरी तरफ किसानों समेत आम जनता का शोषण करते हुए अकूत संपत्ति पूंजीपतियों, कॉर्पोरेट घरानों के पास जमा होती जा रही है। आम जनता में खरीद शक्ति न रहने की वजह से यह पूंजीवादी- साम्राज्यवादी व्यवस्था गहन मंदी के संकट में फंस चुकी है। इसलिए कृषि क्षेत्र में भी सरकार सुधार के बहाने पूंजीपतियों के लिए बाजार का प्रबंध कर रही हैं। इसका जनहित से कोई लेना देना नहीं है। जाहिर है कि किसान संगठनो का यह आंदोलन सिर्फ हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों के किसानों के हित लिए ही नहीं है। इससे पूरे देश के किसानों का भविष्य जुड़ा हुआ है। बीज बाजार को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना, उर्वरकों की सब्सिडी कम करना, कृषि फसल बाजार को नियंत्रण मुक्त करना तथा सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी देकर कृषि को लाभकारी बनाना आदि ऐसे सवाल हैं जिनसे देश के किसानों का हित जुड़ा हुआ है। किसान इन्ही सवालों को लेकर आंदोलनरत हैं। देखता हूं कि बिहार के किसानों में इन सवालों को लेकर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े किसान संगठनों के नेता यदा कदा सिर्फ मीडिया में बयान देकर अपना फर्ज पूरा कर रहे हैं। इससे किसानो का भला होने वाला नहीं है। जरूरत तो इस बात की है कि ऐसे किसान संगठनो की ओर से सरकार की उन किसान और कृषि विरोधी नीतियों से किसानों को अवगत कराया जाता, जिसके विरोध में आंदोलन किया जा रहा है।
डल्लेवाल के समर्थन में बिहार के किसानों का एक दिन का भी सांकेतिक भूख हड़ताल किसान आंदोलन को मजबूती प्रदान करेगा। सरकार को भी चाहिए कि वह डल्लेवाल के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए किसान संगठनों की मांग पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें क्योंकि लोकतंत्र में इतनी संवेदनहीनता उचित नहीं होती है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)