किसानों के साथ नाइंसाफी आखिर कब तक?

किसानों को शोषण से मुक्ति कब

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ब्रह्मानन्द ठाकुर
खबर है कि पंजाब के किसानों का शंभू बार्डर से दिल्ली मार्च रविवार को फिर टल गया। मार्च में ज्यादा नहीं, कुल 101 किसान शामिल थे। किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे गये। पानी की बौछारें की गई। इसमें 8 किसानों के घायल होने की खबर है। इससे पहले 6 दिसम्बर को इसी बार्डर से किसान दिल्ली कूच करने वाले थे। हरियाणा सरकार ने धारा 163 लागू कर 11 गांवों में इंटरनेट सुविधा बंद कर दी थी। किसानों पर भीषण लाठीचार्ज हुआ। मजबूर होकर किसानों ने अपना दिल्ली कूच वापस ले लिया था। खन्नोरी और शंभू दोनों बोर्डरो पर फरवरी महीने से ही किसान आंदोलनरत हैं। हरियाणा के जिंद के पास खन्नोरी बोर्डर पर तो पंजाब के एक किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल आमरण भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। कहने को भारत किसानों का देश है मगर किसानों की सुनने वाला कोई नहीं है। किसानों का यह संगठन एमएसपी का गारंटी कानून बनाने, कर्ज माफी और वृद्धा पेंशन आदि की मांग कर रहे हैं। किसानों की यह मांग उनके अस्तित्व से जुड़ी हुई है।
किसानों की मांग स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा के आधार पर सभी फसलों के एमएसपी निधारित करने की भी है। केन्द्र की मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में एम एस स्वामीनाथन ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी। उस रिपोर्ट में उन्होंने किसानों को उनकी फसल लागत पर 50 प्रतिशत जोड़ कर एमएसपी निर्धारित करने की अनुशंसा की थी। लागत निर्धारित करने का तीन फार्मूला सुझाया था- पहला ए-2, दूसरा ए-2+ एफ एल और तीसरा सी-2 । इसमें ए-2 फार्मूला में फसल उत्पादन में सभी तरह के नकदी खर्च शामिल हैं। ए-2+एफ एल में कुल उत्पादन लागत में पारिवारिक श्रम को भी अनुमानित लागत भी शामिल हैं। सी-2 में सभी तरह के नकदी और इसके साथ जमीन का किराया और खेती में लगने वाले अन्य सभी खर्च का ब्याज शामिल हैं। स्वामीनाथन आयोग ने इसी सी-2लागत पर 50 प्रतिशत जोड़कर एमएसपी निर्धारित करने की सिफारिश की थी। उनकी यह सिफारिश पूर्ववर्ती कांग्रेस एवं वर्तमान एनडीए सरकार द्वारा ठंढे बस्ते में डाल दी गई। फिलहाल ए-2 फार्मूला पर एमएसपी निर्धारित किया जा रहा है। इससे किसानो को उनके काम का लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है। किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश, सी-2 + 50 प्रतिशत पर एमएसपी निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं।
जब दिल्ली बॉर्डर से किसानों की घर वापसी हुई थी तो सरकार ने किसानों को एमएसपी देने और बिजली बिल वापस लेने के लिए कारगर और ठोस कदम उठाने का वादा किया था। लेकिन सरकार लगातार इसकी अनदेखी व वादाखिलाफी कर रही है। सरकार की इस किसान विरोधी नीति को समझने के लिए राजसत्ता के वर्ग चरित्र को समझना जरूरी है। यहां यह उल्लेख भी आवश्यक है कि पूंजीवादी राजसत्ता का संचालन जिस किसी भी दल या गठबंधन की सरकारों द्वारा किया जाता है, वे पूंजीपतियों के हित में ही नीतियां बनाते और उसे क्रियान्वित करते हैं। किसानों का हित उनकी प्राथमिकता में नहीं होती और न कभी रही है। किसानों को शोषण से मुक्ति के लिए व्यवस्था परिवर्तन तक एकजुट संघर्ष चलाने की जरूरत है।

 

Injustice to farmers
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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