गम के चार दिन, सितम के चार दिन

हथकड़ी और बँधी हुई कमर क्यों?

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डॉ योगेन्द्र
कल शाम को जमालपुर- हावड़ा से कोलकाता के लिए चला था। ट्रेन आधे घंटे लेट हो गई थी। मुझे भी कोई हड़बड़ी नहीं थी। जिस काम के लिए आया हूँ, वह शाम को आयोजित है। हावड़ा स्टेशन पर ट्रेन रूकी तो आपाधापी शुरू हुई। हर आदमी आगे निकलना चाहता है। मैं हावड़ा स्टेशन पर जब भी आता हूँ तो उन बिजली- पंखों को देखता हूँ जिन्हें अंग्रेजों ने ही लगाया होगा। आधुनिक होते संसार में पुरानी चीजें बदल दी जा रही है। मन में लगा रहता है कि अगली बार आऊँगा तो शायद पुराने पंखों की जगह कहीं नये और आधुनिक पंखे न लग जाएँ। स्टेशन से बाहर निकला तो ठंड कम ही थी, लेकिन कुहरा छाया हुआ था। दरअसल मैंने बाहर ही नहीं, अंदर भी कुहरा छाया हुआ महसूस किया। कार्यक्रम एक दोस्त की स्मृति में रखा गया है। पिछले वर्ष नवंबर महीने में वह आग में जलने से गुजर गया था। आज उसकी जन्म दिवस है। मैंने सोचा था कि चाहे जो हो, उसने जो कुछ लिखा है, उसे संकलित कर प्रकाशित करवाऊँगा और उसके जन्म तिथि पर उसका विमोचन करवाऊँगा। इस तरह के प्रस्ताव मैंने साथियों के बीच रखा था और सबके सहयोग से उसकी तीन किताबों का आज विमोचन होगा- ‘तुम्हारे होने से सुबह होती है’, ‘प्रतीक्षा’ और ‘असमय काल कवलित योद्धा’। दो पुस्तकों का प्रकाशन सेतु ने किया है और एक का देशज प्रकाशन, रांची ने।
बहुत- सी बातें हैं। कही और अनकही भी। कही गयी बातों से ज्यादा कचोटता है, जो कही नही गयी। जीवन की अंतिम पारी ही है जिसे खेल रहा हूँ। सुन रहा हूँ और सुना रहा हूँ। बहुत कुछ करने की इच्छा है, मगर उलझन भी कम नहीं है। तब भी जिजीविषा शेष है। वैसे तो हर आदमी बदलता रहता है, हर क्षण बदलता रहता है। मुझे एकदम अच्छा नहीं लग रहा कि जिन साथियों ने इस अवसर पर आने की बात कही थी, उनमें से एक-एक कर पीछे हटते गये। संभव है, उन्हें जरूरी काम आ गया हो, मगर सवाल मन में उठता है कि सभी को इतने जरूरी काम आ गया कि उनकी यात्रा स्थगित होती चली गई। मैं तो दम तोड़ता रहता, तब भी आने के लिए प्रतिबद्ध था। अब वह फिर नहीं आयेगा॥ जो भी उनकी स्मृतियाँ दुनिया में मौजूद हैं, उन्हें संजो कर जनता के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर है। ऐसे मौके बार-बार तो नहीं आते। मन पर हथकड़ी डालना ही अच्छा। अमेरिका से अप्रवासी हथकड़ियों में भेजा जा रहा है। ट्रंप ने कई देशों के अप्रवासियों को हाथ और कमर बाँध कर अपराधी की तरह उन्हें भेजा है। मुझे तो सत्रहवीं सदी या पूर्व के गुलामों का मंजर नजर आता है। कोई राष्ट्रपति हो गया तो क्या उसे आदमी के साथ जानवरों की तरह व्यवहार करने का अधिकार मिल गया? अमेरिका में संपत्ति किसकी है जिस पर ट्रंप इतरा रहे हैं? दुनिया की लुटी हुई संपत्ति ही तो है। आदमी के साथ आदमियत के साथ व्यवहार कीजिए। उन्हें भेजना ही है तो हथकड़ी और बँधी हुई कमर क्यों? क्या दिखाना चाहते हैं कि वे ही दुनिया में अकेले राष्ट्रपति हैं? अमेरिका ही धरती पर एक देश है? जब जब घमंड आदमी पर छाता है, उसका नाश ही होता है। ट्रंप अपने को महामानव समझ रखा है। इसकी कीमत भी उन्हें चुकानी है। दुर्भाग्य यह है कि कुछ मोदी भक्त इसका भी समर्थन कर रहे हैं। अब इन नादानों को क्या कहा जाये जो अपने नागरिकों को भी इस रूप में देख कर गदगद हैं।

 

 

Indian citizens sent back in shackles and handcuffs
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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