डॉ योगेन्द्र
ख़बरों में ख़बर यह है कि अरब को ड्रग्स सप्लाई का रूट बना भारत। अरब को ड्रग्स निगलने की आदत है। नये-नये अमीर को नयी आदतें चाहिए। ड्रग्स सप्लाई के लिए सिंडिकेट बने हुए हैं और इनके अंदर खुदरा व्यापारी हैं जिसे पैडलर्स कहा जाता है। यह कारोबार महज़ दो लाख करोड़ रुपये का है। दुनिया में सरकारें हैं, लेकिन ड्रग्स के कारोबारी को वे कुछ नहीं बिगाड़ सकती। बिहार के गाँव-गाँव में ड्रग्स उपलब्ध है। बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं, मगर प्रशासन को या तो कुछ पता नहीं है या पता है तो लाचार है, पंगु है। उसे पीटने के लिए ग़रीबों की पीठ दिखाई पड़ती है। मैं बचपन के दिनों को याद करता हूँ। मेरे गाँव में नशे के लिए क्या क्या चीज़ें उपलब्ध थीं। घोषित रूप से गाँव से दो किलोमीटर दूर एक कलाली था जिसमें देशी दारु मिलती थी। कलाली में लोग दबे पांव प्रवेश करते थे और देशी दारु सेवन कर बाहर आते। इस नशे का फ़ायदा यह था कि जिससे जिसकी दुश्मनी रहती, उसे जम कर नशेबाज गाली देकर अपनी भड़ास निकालता। दूसरी चीज़ ताड़ी थी। सुबह जब पासी ताड़ के गाछ पर चढ़ कर लबनी उतारता तो गाँव के लोग जमा हो जाते। सुबह की ताड़ी को नीरा कहा जाता था। वह मीठा होता था और पीने के बाद नशा भी नहीं लगता था। लोग इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा मानते थे। ज्यों-ज्यों सूरज आसमान में गरमाता, त्यों-त्यों नीरा में फरमनटेशन होता और वह नशे वाली ताड़ी हो जाता। होली में भाँग आम बात हो जाती और यदा-कदा मैंने गांजे पीते हुए लोगों को देखा है। इतना होने पर भी नशा कोई आम बात नहीं थी।
अब ड्रग्स तक सहज ही उपलब्ध है। अडानी के बंदरगाह पर जब ड्रग्स की खेप मिली तो उसका कुछ नहीं हुआ। सभी सरकारी एजेंसियाँ उसके सहयोग में थी। थोड़ी बहुत हलचल के बाद मामला शांत हो गया। ड्रग्स की जितनी मात्रा देश में आती है, उसमें चालीस प्रतिशत भारत के स्थानीय बाज़ार में खपत होता है और शेष साठ प्रतिशत विश्व बाज़ार की ओर मुख़ातिब हो जाता है। पहले यूरोप और अमेरिका में इसकी खपत सबसे ज़्यादा थी और अब अरब है। बात यही तक नहीं रूकती। भारत और पाकिस्तान के जो ड्रग्स बेचने वाले सिंडिकेट हैं, वे अफ़्रीकी देशों में सक्रिय हैं। ख़ासकर उन देशों में जहाँ राजनीतिक अस्थिरता है। जरा सोचिए कि सरकारों के सहयोग के बिना क्या यह संभव है? जब ख़बर यह आती है कि अडानी की कंपनियों ने राज्य सरकारों को घूस देकर अपना कारोबार बढ़ाया, तब इस भीषणता का अहसास कीजिए कि हम सब कहाँ खड़े हैं? आज कहने के लिए राजनीति में बहुत से महाबली हैं- किम जोंग, ट्रंप, पुतिन, नरेंद्र मोदी, चीन के राज्याध्यक्ष आदि अनेक लोग हैं, मगर ड्रग्स के रैकेट को ये महाबली कुछ नहीं कर सकते। उल्टे उनके लोग इसमें शामिल हैं और अकूत संपत्ति बटोर रहे हैं। क्या सरकारों को यह पता नहीं होता कि ड्रग्स कहाँ तैयार हो रहा है? कौन है जो युवाओं को बर्बाद कर रहा है? सच में अभी आँख के अंधे हैं और नाम नयनसुख है। सामने सबकुछ हो रहा है, लेकिन हम सब पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)