यही है निर्वैयक्तिक मातृत्व
परिवार वालों ने ऊपरी न्यायालय में अपील करने से किया इंकार
ब्रह्मानंद ठाकुर
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कालेज की ट्रेनी डाक्टर से रेप-मर्डर के दोषी संजय राय को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद कैद की सजा दी है। न्यायालय द्वारा सुनाई गई इस सजा पर संजय राय के परिवार वालों ने ऊपरी न्यायालय में अपील करने से फिलहाल इंकार कर दिया है। संजय की मां ने इस फैसले पर कहा है कि भले ही उसके बेटे को फांसी की सजा मिले, हम फैसले के खिलाफ अपील नहीं करेंगे। उसने यह भी कहा है कि मेरी भी बेटियां हैं। मैं उस लड़की के मां-बाप का दुख समझती हूं। यही है निर्वैयक्तिक मातृत्व।
बांग्ला के प्रख्यात उपन्यासकार, कहानीकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने निर्वैयक्तिक मातृत्व की अवधारणा को केन्द्र में रखते हुए ऐसे अनेक महान नारी चरित्र की रचना की है जिसका लेशमात्र भी आज फलीभूत होने लगे तो सम्पूर्ण समाज को एक नई दिशा मिल सकती है। शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के साहित्य की यह विशेषता है कि रक्त सम्बन्ध नहीं होते हुए भी जो महिला किसी को अपनी संतान के रूप में एक बार मान लेती है, उसके प्रति वह आजीवन एक मां का फर्ज अदा करती है। कोई भी स्वार्थ बोध उसे उसके इस फर्ज से अलग नहीं कर सकता। शरतचन्द्र की एक कहानी है मंझली दीदी। इस कहानी की हेमांगिनी निर्वैयक्तिक मातृत्व की बेजोड़ उदाहरण है। कहानी लंबी है। इसलिए उसके बारे में यहां संक्षिप्त चर्चा करना चाहूंगा। एक मातृ-पितृ हीन बालक किशन आश्रय के लिए अपनी सोतेली बहन कादम्बिनी के घर पहुंचता है। वहां उसकी बहन और बहनोई इस अनाथ बालक के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं। उसे रूखा- सूखा खाना मिलता और बदले में उसे हारतोड़ मिहनत करना पड़ता था। कादम्बिनी की देवरानी हेमांगिनी को यह सब जब देखा नहीं जाता है तो वह किशन को अपने घर बुलाकर ले जाती है। इसके लिए उसे अपनी जेठानी से काफी भला-बुरा सुनना पड़ता है। हेमांगिनी इससे तनिक भी विचलित नहीं होती है और वह किशन से कहती हैं, आज से तुम मुझे अपनी मां समझो। इसके बाद हेमांगिनी एक मां की तरह किशन का लालन-पालन करती है। दूसरी कहानी है राम की सुमति। रामलाल और श्याम लाल दो सौतेले भाई थे। रामलाल की मां अपने भाई साल के दूध पीते बेटे रामलाल को अपनी 13 वर्षीया बहू नारायणी के हाथों सौंप स्वर्ग सिधार गई। राम बड़ा ही दुष्ट और नटखट प्रवृति का निकला। उसके कारनामे से सारे मुहल्ले के लोग आजिज थे। अपने सौतेले देवर राम को नारायणी सगी मां समान प्यार करती थी। कभी किसी बात पर गुस्सा होकर राम जब बिन खाए- पीए घर से भाग जाता तो नारायणी भी भोजन नहीं करती जबतक अपने रामलाल को बुलाकर भोजन नहीं करा देती। मतलब यह कि वह अपने पुत्र समान ही सौतेले देवर रामलाल से स्नेह रखती थी। तात्पर्य यह कि एक महिला यदि अपने जीवन में निर्वैयक्तिक मातृत्व का गुण प्राप्त कर ले तो निश्चित रूप से उसका चरित्र महान हो जाता है। उसके सामने अपना-पराया का कोई बोध ही नहीं रहता। इन कहानियों को पढ़कर कोई भी महिला मंझली दीदी की हेमांगिनी और राम की सुमति की नारायणी ही बनना चाहेगी। शरतचन्द्र ऐसा ही चाहते भी थे। ट्रेनी डाक्टर रेप-मर्डर मामले में उम्रकैद की सजा पाए संजय राय की मां का यह कहना कि मेरी भी बेटियां हैं और मै उस लड़की के मां-बाप का दुख समझती हूं, ऐसे ही निर्वैयक्तिक मातृत्व का उदाहरण है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)