डॉ योगेन्द्र
देखते-देखते नये साल के सत्रह दिन बीत गए। लगता है कि ये दिन अकारण बीत गए। किया-धिया कुछ नहीं और दिन बीतते जा रहे हैं। पिछले तीन चार दिनों से सूरज महाराज आकाश में कैद थे। ठिठुरता हुआ जाड़ा, लगता था कि जैसे सूरज का हाउस अरेस्ट हो गया हो। नतीजा था कि जाड़ा बददिमाग और अराजक हो गया था। वह देह में कहीं से भी प्रवेश कर ह्रदय को कँपाता था। आज भी ऐसा लगा था कि शायद सूरज को हाउस अरेस्ट से मुक्ति नहीं मिलेगी। सूरज मुक्त नहीं होगा तो जाड़े से भी मुक्ति संभव नहीं थी। लगा कि कुहरे और बादल रूपी ईडी और सीबीआई अदालत में कस कर अपनी पैरवी करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहले कुहरे पर सूरज था, फिर सूरज कुहरे में प्रवेश कर गया और अब कुहरा गायब है और सिर्फ सूरज है। अँधेरा या संकट कितना भी गहरा हो। एक दिन छँट ही जाता है। मैं कुहरे में भी टहलने निकलता रहा। सड़कों पर भारी वजन वाली ट्रकें, उड़ती धूल और सड़क किनारे आग तापते बच्चे और बूढ़े। स्त्रियाँ जाड़े में काम में लगी हुई थीं। घर और बाहर- सभी जगह।
देश के नेता और साधु-संन्यासी भी काम में लगे हैं। साधु कुंभ में धुनी रमा रहा है तो नेता दिल्ली चुनाव में। पत्रकार मसाले ढूँढने में व्यस्त है। यूट्यूब पर एक आईआईटीएन बाबा की बहुत चर्चा है। उनका नाम है अभय सिंह। हरियाणा में इनका जन्म हुआ। इन्होंने बंबई आईआईटी से इंजीनियरिंग की। फिर डिजिटल डिजाइनिंग का कोर्स किया। फोटोग्राफी में बहुत रूचि थी, फिर वे साधु हो गये। उन्हें लगा कि जीवन का मजा पैसे कमाने और घर बसाने में नहीं, अध्यात्म में है। मन में एक ही तलाश थी- व्हाट इज लाइफ? वे जो भी पढ़ते, उसमें गहरे उतरते। योग की क्रियाएं भी करते। परिवार ने उन्हें नहीं समझा। खटपट हुई। और एक-डेढ़ साल पूर्व उन्होंने घर छोड़ दिया। उनके पिता का भी इंटरव्यू मैंने सुना। उन्हें दुख तो जरूर था। कहा भी और यह भी दर्ज किया कि बेटे ने उनका फोन ब्लाक कर दिया है। पत्रकारों को इनमें बहुत रूचि है और इसकी बड़ी वजह है कि बाबा आईआईटी पास आउट हैं। आईआईटी की महत्ता बहुत है। कोई इतना बड़ा त्याग कर साधु हुआ है। रिपोर्टर अंत में यह जरूर बताता है कि यह है सनातन धर्म की ताकत। बुद्ध के पास भी क्या नहीं था? उन्होंने तमाम चीजें छोड़ कर सत्य की खोज में निकल पड़े। बुद्ध में एक बात थी कि उन्होंने सिर्फ अपने लिए सत्य की तलाश नहीं की। वे समाज से कटे नहीं। समाज को उन्होंने बाधक नहीं माना। वे जीवन पर्यंत समाज के हिस्से बने रहे। घूम घूमकर उन्होंने समाज से संवाद किया और अपनी बातें कही। साधु या संन्यासी हो तो गौतम की तरह। अपनी खुद की मुक्ति के लिए समाज को छोड़ देना- सही नहीं लगता। आपका जन्म समाज में होता है। आपका लालन पालन समाज में ही होता है। ज्ञान का केंद्र भी समाज ही है। आप ज्ञान जरूर हासिल कीजिए, लेकिन वह ज्ञान सिर्फ निजता के स्तर पर व्यक्त न हो।
अघोरी साधु से लेकर अभय सिंह तक- सभी के सभी समाज से कटे हुए हैं और एक तरह से समाज के आलोचक भी हैं। यह दृष्टि मुझे सही नहीं लगती। समाज ने जन्म दिया है तो समाज की बगिया में दो चार पौधे लगा दें। ज्ञान व्यक्ति को मुक्त करे, लेकिन समाज की कुत्सा से भी संघर्ष करे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)