डॉ योगेन्द्र
छोटी-छोटी खबरें पढ़ने पर समझ में आता है कि देश किस हालत में है। राजस्थान से एक खबर है कि वहाँ दस हजार से ज्यादा लोग सिकलसेल की बीमारी से ग्रसित हैं। सिकलसेल एक ऐसी बीमारी है जो खून में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ने नहीं देती है और आदमी कम ही उम्र में मरने को अभिशप्त है। यह ज्यादातर आदिवासी इलाकों में होती है। हम चाँद पर जाने को तत्पर पर हैं। आदित्य एल वन स्पेस में भेज कर सूरज की निगरानी कर रहे हैं, मगर अपनी धरा को नहीं देखते। हम आखिर चाँद पर किसे ले जायेंगे? मैं जिस रास्ते से टहलने जाता हूँ। रास्ते में बंसखोर के दस झोंपड़े हैं। सड़क किनारे बने हैं। झोंपड़े की न जमीन उनकी है और न झोंपड़े। कब प्रशासन उनके झोंपड़े उखाड़ फेंकेगा, कोई ठिकाना नहीं। धूल से भरी सड़कों पर वे दिन गुजार रहे हैं। ठंड में उनके बच्चे घूरा लगाये रहते हैं और रात के बचे भात थाली में लेकर खाते रहते हैं। उनकी पत्नी और बेटियां कैसे रहती हैं? कहाँ नहाती है और दिनचर्या संपादित करती हैं, कल्पना तक नहीं कर सकते। उस देश में कुंभ में फूँकते धन और संपदा कितना बेवकूफी भरा काम लगता है! जो कुंभ स्नान करना चाहते हैं, करें। पाखंड और ढकोसला न करें। कुंभ स्नान से सदियों के पाप कट जाते हैं, ऐसा दावा करते हैं तथाकथित संत। सांसद चंद्रशेखर रावण ने कहा कि जो पाप करते हैं, वे कुंभ स्नान करें।
जिस समय मैं यह सब लिख रहा हूँ। उसी वक्त एक फोन कॉल आ रहा है। साऊथ अरबिया से। मैं जानता हूँ कि यह फर्जी कॉल है। साऊथ अरबिया में मेरा कोई कुल खानदान नहीं रहता है। मैं फोन डिस्कनेक्ट कर देता हूँ तो मैसेज आता है कि आपका फोन दो घंटे बाद बंद हो जाएगा। इसके अलावे डराने वाले मैसेज। एक पाखंड तथाकथित साधु प्रचारित कर मौज मार रहे हैं और दूसरे आधुनिक फर्जीबाड़े में लगे लोग। एक पुरानी परंपरा वाली बीमारी है तो दूसरे आधुनिक तकनीकी और संचार वाली दुनिया की। आम लोगों की चेतना पर इतने हमले हैं कि लोग बौखन् लगे हैं। खबर यह भी है कि माता-पिता ने अपनी बच्ची को कुंभ नहीं ले गये तो उसने आत्महत्या कर ली। पंजाब की एक खबर है कि एक सेवानिवृत्त सूबेदार को उसके बेटे ने कार की चाभी नहीं दी तो उसने बुलेट, अल्टो कार और घर में आग लगा दी। और कुंभ में कोई साधु यह कह रहा है कि मैं कभी स्नान नहीं करता, दारू पीता हूँ और गांजा का सेवन करता हूँ तो उसके लिए लाल कार्पेट बिछाया जा रहा है। ये ढोंगी साधु समाज के किस काम के हैं? राज्य की एक सरकार इसमें लगी है और सेवा सत्कार के साथ नफरत का भी प्रचार कर रही है। हमारे पास करोड़ों निर्धनों के लिए कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। क्या यह देश और संविधान उसके नहीं हैं? देश की संपदा पर उनका कोई अधिकार नहीं है? क्या बिकती शिक्षा व्यवस्था में उसकी कोई हिस्सेदारी नहीं है? छोटी-छोटी बीमारियों से लोग मर रहे हैं। दिल्ली में पूर्वांचलियों के लिए मरे जा रहे हैं तो जो लोग पूर्वांचल में रह रहे हैं, वहाँ की सरकारें क्या कर रही हैं? चहूं ओर धोखे की पट्टी है जो जनता के गले में पहनायी जा रही है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)