लोकतंत्र में बंसखोर

बंसखोर की झोपड़ियां

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डॉ योगेन्द्र
आज आकाश में न सूर्य है, न धरती पर ठंडक की कमी। हाड़ तोड़ ठंड है। तब भी टहलने तो जाना था। यही एक काम ऐसा है जो नियमित रूप से कर रहा हूँ। ठंड में डूबी हवा कंपकंपी पैदा कर रही है। कपड़े वाले तो खैर ठीक हैं, लेकिन जो सड़कों पर रह हैं, उनकी तो खैर नहीं। सोचता हूँ कि इनके लिए लोकतंत्र और संविधान का क्या अर्थ है? ऐसे नागरिकों से पूछा जाए कि देश कब आज़ाद हुआ तो वह शायद ही बता पाए। हम स्टार्टअप कर रहे हैं। लंबी-लंबी हाँक रहे हैं, मगर एक सामान्य डाटा नहीं है कि कितने नागरिक ऐसे हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। कल मैंने देखा कि वर्षों से बसे बंसखोर की झोपड़ियां उजाड़ दी गईं। ठंड का समय है। अतिक्रमण के नाम पर प्रशासन ने आँखें टेढ़ी की और बंसखोरों की झोपड़ियां उजड़ गई। मैं यह भी जानता हूँ कि ये लोग फिर कहीं बस जायेंगे। वह भूमि भी अतिक्रमित ही होगी। उनके पास तो रहने का ठिकाना नहीं है, न जमीन है, न जगह। वे दूर जा भी नहीं सकते, क्योंकि जो सूप- मौनी बनाते हैं, उनकी बिक्री के लिए यहीं बाजार मिलता है। क्या जिलाधिकारी, विधायक या स्थानीय प्रशासन उनके लिए कोई कुछ नहीं कर सकता?
हम पाँच नहीं, दस ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बन जायें। लेकिन यह ट्रिलियन सिर्फ अहंकार पुष्टि के लिए न हो। ऐसे लोगों से भी सरकार जीएसटी वसूल रही है। कुछ लोगों ने जीएसटी को गब्बर टैक्स कहा। यह बुरा नहीं था। सरकार को कम से कम रोजमर्रे की चीज़ों पर से जीएसटी हटा देनी चाहिए। आटा, चावल, तेल, भूंजा, कम दाम के कपड़े, बच्चों की फीस, हद तक मकान निर्माण के सामान आदि को जीएसटी से मुक्त कर देनी चाहिए। जिस देश की धरती पर असंख्य भूखा इंसान रहेगा, उस देश में शांति नहीं रहेगी। ऐसी बुरी दशा में शासक जनता को संतुष्ट कैसे करता है? कोई अज्ञात शत्रु पैदा कर देगा। जैसे हमारे देश में मीडिया और सरकार बांग्लादेशी और पाकिस्तानी की रट लगाती रहती है। वह यह प्रचारित करती रहती है कि पाकिस्तानी और बांग्लादेशी सबसे बड़ी समस्या है। वह इस बात को इतनी तरह से प्रचारित करती है कि लगता है कि देश के विकास में सबसे बड़ी अड़चन पाकिस्तानी और बांग्लादेशी हैं। ये दोनों कमजोर देश हैं और मुस्लिम बहुल हैं। सरकार को इसके बारे में दुष्प्रचार करने में कोई खतरा नहीं है और मुस्लिम के नाम पर उसे भड़काने में भी सुविधा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की तुलना में चीन भारत की जमीन हड़प रहा है, लेकिन सरकार के मुँह में दही जम जाता है, क्योंकि चीन ताकतवर देश है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने चीन के राष्ट्राध्यक्ष को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया। भारत के राष्ट्राध्यक्ष को नहीं। अमेरिका भी चीन की ताकत को पहचानता है। मजा यह है कि अंबानी परिवार तक को निमंत्रण आया। हाँ, प्रधानमंत्री के दुलारे पूँजीपति अडानी इससे मरहूम रहे। आधुनिक लंबे चौड़े, दुनिया में फैलते- फैलाते पूँजीपति मस्क राष्ट्रपति ट्रंप के सिर पर सवार हैं। अब दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों पर कोई न कोई मस्क सवार रहेगा। लोकतंत्र जनता के लिए और जनता द्वारा नहीं, पूँजीपति के लिए पूँजीपतियों द्वारा शासित होगा।

Huts of Banskhor
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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