आखिर हम इतने बर्बर और असभ्य कैसे हो गये?
हत्या चाहे किसी की भी या किसी कारण से हो, एक बर्बर कृत्य है
ब्रह्मानंद ठाकुर
नदी में मिला पंच का शव। बोरे में बंद मिली महिला की लाश। रेल ट्रैक के किनारे मिला अधेड़ का शव। अधेड़ की नशा खिलाकर हत्या। ये कुछ सूर्खियां हैं आज के अखबार की। खबर मुजफ्फरपुर से सम्बंधित है। ऐसी सूर्खियां और भी हैं, जिनका उल्लेख यहां अभीष्ट नहीं है। सुबह-सुबह ऐसी खबरें पढ़ने के बाद मन विष्ण्ण हो गया। हत्या चाहे किसी की भी या किसी कारण से हो, यह हमारी मनुष्यता का क्षरण है। आखिर हम इतने बर्बर और असभ्य कैसे हो गये? दुख इस बात का है कि यह सब हमारे उस देश में हो रहा है जहां कभी मैथुनरत क्रौंच पक्षी के जोड़े में नर पक्षी को एक निषाद द्वारा मार दिए जाने के बाद मादा का विलाप सुन महर्षि वाल्मीकि के मुंह से एक श्लोक निकल पड़ा था-
मा निषाद प्रतिष्ठांं त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यतक्रौंचमिथुनादिकम् अवधिः काममोहितम्।।
कहते हैं, यही श्लोक बाद में वाल्मीकि रामायण का आधार श्लोक बन गया। ये हत्याएं उस देश में हो रही हैं जहां कभी अपने चचेरे भाई देवदत्त के तीर से घायल हंस को सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने बचाया था। और उनके प्रीति शुद्धोधन ने उस घायल हंस को इस तर्क़ के साथ सिद्धार्थ के हवाले कर दिया कि हंस पर मारने वाले से ज्यादा अधिकार बचाने वाले का है। जीवौं के प्रति करुणा का यह उत्स क्यों सूख गया? आज हम एक-दूसरे का जानलेवा क्यों बन गये। पुत्र पिता की हत्या कर रहा है। दहेज के लिए बहुएं जलाई जा रहीं हैं। सम्पत्ति के लिए भाई की हत्या भाई कर रहा है। आनर किलिंग के नाम पर बेटियां मारी जा रही है। शिष्य गुरु की हत्या कर रहा है। अब तो लाखों की सुपारी देकर लोग अपने प्रतिद्वंद्वी की हत्या कराने से भी नहीं चूकते। सड़क किनारे दुर्घटनाग्रस्त युवक छटपटा रहा है और हम उसे अस्पताल पहुंचाने की जगह उसकी तस्वीर ले रहे हैं। रील बना रहे हैं। हमारी संवेदना पूरी तरह मर चुकी हैं। जाहिर है, ये हत्याएं भूमि विवाद मैं हो रही हैं, राजनीतिक बर्चस्व के लिए हो रही हैं। खोखली मर्यादा की रक्षा के नाम पर हो रही हैं। स्थान विशेष पर इसके और भी कारण हो सकते हैं। हमारे महापुरुषों ने वसुधैव कुटुम्बकम् का आदर्श पेश किया। एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी बनने की सीख दी। अहिंसा को परम धर्म माना। आखिर आज हम क्यों हिंसक बन गये? इस सवाल का जवाब हमें वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में तलाशने की जरूरत है। नीति नैतिकता, शिक्षा, संस्कृति, मूल्यबोध आदि अपने समय के आर्थिक आधार का ऊपरी ढांचा होता है। यही आर्थिक आधार इन सभी चीजों को नियंत्रित और संचालित करता है। हम आज जिस समाज में रह रहे हैं, वह पूंजीवादी समाज है। इसका आर्थिक आधार पूंजीवादी व्यवस्था है। अपने शुरुआती दिनों में इसी पूंजीवाद ने समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का नारा दिया था। आज यह खुद मरनासन्न है। यही मरनासन्न पूंजीवाद अब अपने वसूलों का गला घोंट कर इंसान को हैवान बना दिया है। सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट का कारण यही पूंजीवाद है। आदमी आज दौलत और शोहरत की शिखर पर आसीन होने के लिए अपनों का भी गला घोंटने से बाज नहीं आ रहा है। चारित्रिक और नैतिक मूल्यों में गिरावट का कारण भी यही पूंजीवाद है। दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हत्या, लूट, बलात्कार, नशाखोरी एवं अन्य सामाजिक विकृतियों को इसी नजरिए से देखने की जरूरत है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)