डॉ योगेन्द्र
हमें किसी में किसी का अक्स देखने की आदत है। किसी में इंदिरा गांधी की छवि देख ली, किसी में मसीहा की। चला बना तो किसी में हिन्दू सम्राट तो किसी में मुस्लिम सम्राट की छवि देख ली। दरअसल हमें हर वक्त एक मसीहा चाहिए, जो समस्याओं से मुक्ति दिला दे। समस्याएं आपकी हैं और उससे कोई और मुक्त करेगा। जब वह आपको समस्याओं से मुक्त करेगा, तब उसकी कीमत भी वसूलेगा। बाजार में सूई भी मुफ्त में नहीं मिलती, तो आपका उद्धारक मुफ्त में कैसे मिलेगा? यह देश जो बार-बार गुलाम हुआ, इसके कारण में यह सोच या विचार निहित है। इब्राहीम लोदी से मुक्ति चाहिए थी तो राणा सांगा ने बाबर को बुला लिया। 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में राणा सांगा बाबर के साथ लड़ रहे थे और दो वर्ष बाद 1528 में राणा सांगा को बाबर ने हराया। हमारी सोच में हमारी सभ्यता और संस्कृति मिली है। हम हवा में निर्मित नहीं हुए हैं। हमें हर वक्त एक उद्धारक की जरूरत महसूस होती है। अगर समस्याएं आपकी है और आप इसे समझते हैं, तो लड़ेगा कौन? किसी ने थोड़ा सा बांयें दायें कर दिया। थोड़ा करिश्मा दिखा दिया, हम फ़िदा हो गये। फर्जी महात्माओं के दरबार में यों ही लाखों की भीड़ नहीं है। महात्माओं के दरबार में क्यों जा रहे हैं? क्योंकि हमें खुद पर भरोसा नहीं है कि हम कुछ कर सकते हैं। फेसबुक पर जाइए। हर आदमी दूसरे को कोस रहा है। गलतियां पर गलतियां निकाल रहा है। गलतियां निकाल कर वही गलतियां कर रहा है।
एक छोटी सी बौद्ध कथा है। एक भिक्षु एक कुटिया में रहता था। साधना करता और मौज में रहता। एक आदमी खुद से बहुत बेचैन था। उसके मन में हर वक्त एक प्रश्न उग आता कि वह कौन है? खाते-पीते, उठते-बैठते वह इस प्रश्न से परेशान रहता। थोड़े दिनों बाद उसने उस भिक्षु की ख्याति सुनी। उसने सोचा कि उसे जरूर मेरे प्रश्न का उत्तर आता होगा। वह भिक्षु को खोजते ढूंढते पहुंचा। उसने भिक्षु का अभिवादन किया और उससे पूछा- हे महात्मना! मैं कौन हूं? भिक्षु ने उसे दो तमाचे लगाये और वहां से भगा दिया। वह आदमी वर्ष भर भटकता रहा। फिर लौट कर भिक्षु के पास आया। उसका प्रश्न अब भी वही था। इस बार भिक्षु ने उसे दुत्कारा नहीं। प्यार से उसे पास बैठाया। उसे सहलाया। फिर उसे कहा- ‘तुम बहुत भोले हो। तुम कौन हो? इस सवाल का जवाब दूसरा कैसे दे सकता है? इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ और सिर्फ तुम्हीं दे सकते हो।’ हम लोगों की हालत उस बेचैन आत्मा की तरह हीं है। हमें दूसरों के कंधे पर सवार होना है। हमें खुद अपने कंधे पर बोझ उठाने नहीं आता। यही वजह है कि हर आदमी दूसरे आदमी का कंधा ढूंढ रहा है। इस देश में दूर-दूर से यात्री और आक्रमणकारी आये। हमारे घरों के बारे में लिखा और उसे तबाह किया। हम भाग्य भरोसे बैठे रहे। सोचते रहे कि जो भाग्य में लिखा है, उसे मिटाया नहीं जा सकता। चाहे वह हमें मिटा दे। कमोबेश आज भी वही हालत है। राजनीति की ओर छोर देखिए। हम व्यक्ति के पीछे पड़े हैं। विचार का सोता मर रहा है। हम दो चार सेर अन्न पाकर मस्त हैं। कुछ नारे हवा में हैं। ये नारे उछल कूद मचा रहे हैं। क्योंकि हमें अपनी समस्याओं से नहीं जूझना, नारों में मुंह छिपाना है।