ब्रह्मानंद ठाकुर
विगत 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर देश भर में महिला दिवस का आयोजन किया गया था। स्कूल -कालेजों, सरकारी संस्थानों, निजी संगठनो द्वारा इस अवसर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गये। समाज में महिलाओं के सम्मान और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों, आर्थिक आत्मनिर्भरता पर धुआंधार भाषण दिए गये। इसी बीच 9 मार्च की सुबह अखबारों में यह खबर पढ़ने को मिली कि बीते 15 दिनों में बिहार के अलग-अलग जिलों से 71 लड़कियों को रेस्क्यू किया गया है, जिन्हें आर्केस्ट्रा के नाम पर सेक्स रैकेट में फंसाया गया था। ये लड़कियां यूपी, बंगाल, हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल की बताई जा रही हैं। खबर यह भी है कि आर्केस्ट्रा के नाम पर लड़कियों के कमरे में सचालक द्वारा लड़कों को भेजा जाता था। आर्केस्ट्रा में लड़कियों को भेजने में उनके माता-पिता भी शामिल होते हैं। बेतिया से रेस्क्यू की गई एक लड़की ने पुलिस को कुछ ऐसी ही जानकारी दी है। उस लड़की के अनुसार, उसकी मां ने उसे 10 हजार रुपये में बेंच दिया था। यह स्थिति एक भयावह खतरे का संकेत है। क्रांति पूर्व रूस का इतिहास बताता है कि वहां वेश्यावृत्ति को कानूनी स्वीकृति मिली हुई थी। इस धंधे में लिप्त महिलाओं को पीला कार्ड दिया जाता था ताकि वह बेरोकटोक जिस्मफरोशी का धंधा कर सके। एक बार पीला कार्ड मिल जाने पर वह महिला समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो सकती थी। समाजवादी क्रांति के बाद वहां इस प्रथा को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया था। सोवियत समाजवाद के विघटन के बाद पूरी विश्व एकबार फिर पूंजीवाद -साम्राज्यवाद के आक्टोपसी जबड़े में पूर्ण रूप से जकड़ चुकी है। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, कला -संगीत हर क्षेत्र में विद्रूपता पराकाष्ठा पर है। इसका मूल कारण है, आर्थिक विषमता की बढ़ती खाई और राजसत्ता द्वारा मुठ्ठीभर लोगो के ऐश मौज की गारंटी करना। खास कर आधी आबादी, नारी की समस्या तो सभ्यता के प्रारंभ से लेकर वर्तमान प्रगतिवादी दौर में भी यथावत है। नारी की इसी समस्या को लेकर कभी शायर साहिर लुधियानवी ने लिखा था —-
‘औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब -जब चाहा मसला- कुचला, जब चाहा दुत्कार दिया।’
आधी आबादी की यह स्थिति सम्पूर्ण समाज के लिए बेहद खतरनाक है। नारी चाहे घर में हो, हरम या चकलाघर में, वह सिर्फ देह बन कर ही रही है। आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले दुनिया के प्रथम वैज्ञानिक दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक कम्यूनिस्ट घोषणापत्र में यह भविष्यवाणी कर चुके हैं कि पूंजीवाद -साम्राज्यवाद पूरे समाज को बर्बाद कर देगा। वह भविष्यवाणी आज सच साबित हो रही है। सामंती व्यवस्था की कब्र पर पूंजीवादी व्यवस्था स्थापित हुई। जनता को राजा के गुलामी से मुक्ति तो मिली लेकिन उसकी जगह वह पैसे की गुलाम बन गई। इस गुलामी से मुक्ति पूंजीवाद का जड़मूल से खात्मा कर समाजवाद की स्थापना से सम्भव है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)