भूमंडलीकरण ने शिक्षा को बना दिया बिकाऊ माल

सार्वभौम शिक्षा के नाम पर शिक्षा का निजीकरण और व्यावसायीकरण की शुरुआत

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ब्रह्मानंद ठाकुर
भूमंडलीकरण की शुरुआत 1980 के दशक के बीच मे सोवियत संघ एवं समाजवादी खेमो के विघटन के बाद हुई। इसी के साथ अपने देश में भूमंडलीकरण के अनुरूप शिक्षा क्षेत्र के पुनर्गठन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इसी के साथ सार्वभौम शिक्षा के नाम पर शिक्षा का निजीकरण और व्यावसायीकरण की शुरुआत हुई। 1986 में राजीव गांधी के नेतृत्व मे तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू की। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति—1986 नाम दिया गया। इस शिक्षा नीति का उद्देश्य छात्रों में चरित्र निर्माण और वैज्ञानिक नजरिया विकसित करने के बजाय इसे वर्तमान और भविष्य के लिए पूंजीनिवेश का लाभकारी क्षेत्र बनाना था। इसी के साथ स्ववित्तीय पाठ्यक्रम, फीस वृद्धि और शिक्षा का निजीकरण- व्यवसायीकरण का दौर शुरू हो गया।
कारपोरेट घराने इस क्षेत्र में मुनाफे की अकूत सम्भावनाएं देख पूंजी निवेश करने लगे। निजी शिक्षण संस्थानों की बाढ- सी आ गई। प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेज भी खोले जाने लगे। इस तरह सरकार ने निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की अपनी जिम्मेवारी से बड़ी चालाकी से मुंह मोड़ लिया। शिक्षा का क्षेत्र पूंजीपतियों के लिए अकूत मुनाफे का क्षेत्र बन गया। उधर सरकारी स्कूलों में ड्रापआउट कम करने के बहाने नो डिटेंशन पालिसी लागू कर दी गई। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि परीक्षा के भय से छात्र स्कूल जाना ही बंद कर देते हैं। 1 से 8वीं कक्षा तक के छात्रौं को बिना परीक्षा लिए अगली कक्षा में प्रोन्नत करने की व्यवस्था लागू कर दी गई। जबकि निजी विद्यालयों में ऐसा नहीं है। वहां छात्रों को अगली कक्षा में जाने के लिए अभी भी परीक्षा पास करने की बाध्यता होती है। सरकारी स्कूलों मे पास-फेल प्रणाली लागू होने से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में भयानक गिरावट आ गई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय शिक्षा का अधिकार कानून एवं सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में शिक्षा की स्थिति पर आज से 10 साल पहले लोकसभा में जो रिपोर्ट पेश किया था उसमें स्पष्ट बताया गया था कि नो डिटेंशन पालिसी लागू होने के बाद जब छात्र 8वीं कक्षा में पहुंचते हैं तो उनकी भाषा, गणित, विज्ञान आदि विषयों की समझ में भारी चिंताजनक गिरावट देखी जाती है। 8वीं और 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों की बड़ी संख्या एक सम्पूर्ण वाक्य लिखने, साधारण गुणा-भाग और दो भिन्नों का योग करने में असमर्थ होता है। 5वीं का छात्र 2री कक्षा की भाषा की पुस्तक नही पढ़ सकता है। ऐसा नो डिटेंशन पालिसी लागू होने के कारण हुआ है। छात्रों में भी कड़ी मिहनत कर कुछ सीखने का उत्साह नहीं रहा। क्योंकि उन्हें पता है कि बिना परीक्षा दिए ही उनका अगली कक्षा में जाना निश्चित है। नो डिटेंशन नीति और सरकारी स्कूलों में विभिन्न कारणों से गिरते शिक्षा के स्तर के कारण अभिभावकों का भरोसा सरकारी स्कूलों से खत्म हो चुका है। इस कारण वे अपने बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हैं। क्योंकि कम से कम वहां परीक्षा प्रणाली तो बरकरार है। लेकिन यह सुविधा कितने लोगों के पास है? बड़ी संख्या ऐसे अभिभावकों की है जो महंगे प्राइवेट स्कूल का खर्च वहन नहीं कर सकते। ऐसे अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं जहां बच्चे कुछ सीखें या न सीखें, उनका अगले कक्षा में जाना निश्चित है। यह भूमंडलीकरण का ही परिणाम है कि सार्वभौम शिक्षा के नाम पर लाया गया शिक्षा का अधिकार कानून सरकारी स्कूलों में शिक्षा की बुनियाद खत्म करने एवं अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा को आम आदमी की पहुंच से दूर करने के लिए लाया गया है। जाहिर है कि भूमंडलीकरण कै दौर में शिक्षा एक बिकाऊ माल बन कर रह गई है। जिनके पास पैसा है उनके बच्चे ऊंची से ऊंची डिग्री हासिल कर रहे हैं। गरीबों के लिए शिक्षा का दरबाजा बंद है।

 

Globalisation-Education
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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