गंगा को लक्ष्मी की तलाश है
डॉ योगेन्द्र
धनतेरस ख़त्म हुआ। बाजार में लोगों की भीड़ अभूतपूर्व थी। पांव रखने की जगह नहीं थी। गंगा के किनारे वाले इलाके में धन की बहुत चाह है। कृष्णा-कावेरी को धनतेरस पर उत्साह नहीं आता। उसके लोग बौराते नहीं हैं। कुछ दिनों पूर्व गंगा बाढ़ से बौराई हुई थी। अब लोग बौरा गए हैं। इस इलाके में प्रचलित है कि इस दिन अगर बाजार से सोना, चांदी, कार, मोटरसाइकिल, वर्तन आदि ख़रीद लेते हैं तो लक्ष्मी और कुबेर आपके घर के स्थायी निवासी हो जाते हैं। लक्ष्मी और कुबेर भी आजकल परेशान हैं। करोड़ों लोग बाजार से कुछ न कुछ खरीद रहे हैं। अब कुबेर और लक्ष्मी कहां-कहां जायें। तंग आकर उन्होंने ऐसी बेवकूफियों से कन्नी काट ली है और निर्धारित कर लिया है कि सरकार जिस व्यापारी से गंठजोड़ करेगी, वह उसके घर ही स्थायी रूप से रहेगी। बेमतलब ढनकने से क्या फायदा? धनतेरस में रिक्शा, ठेला, ई रिक्शा, आटो चलाने वाले भी धनतेरस में कुछ न कुछ खरीद रहे हैं। लक्ष्मी और कुबेर यहां जाकर अपनी इज्जत क्यों बिगाड़ेंगे? बाजार में खरीदने वाला अमीर नहीं होता। बेचने वाला अमीर होता है। लक्ष्मी और कुबेर को कौन नेता बनना है कि उन्हें भुखमरों की भी जरूरत पड़ेगी और उनके सामने सिर झुकाना पड़ेगा। ये लोग ऐसे ही फ़ालतू काम में लगे रहें। लक्ष्मी और कुबेर तो वहीं रहेंगे, जहां उन्हें असुविधा नहीं होगी।
मैं जब गांव में था तो धनतेरस का नाम नहीं सुना था। दिवाली भले आती थी। उसके साथ हुक्का पाती और बीड़ी पटाखा। बहुत हुआ तो बम पटाखा। बीड़ी पटाखे को हाथ में रख कर छोड़ने में जो आनंद था, वह अब कहां? संटी से बना हुक्का पाती। शाम होते ही जलाना। सभी घर में लहकते हुक्का पाती को लेकर घूमना और यह कहना – लक्ष्मी घर, दरिद्दर बाहर। बहुत से घर की हालत यह थी कि सालों भर दरिद्दर घर में और लक्ष्मी बाहर में। मगर पर्व तो पर्व है। जो होने का होगा, वह होगा। फिलहाल तो लक्ष्मी को घर में करना है। उधर दुनिया का कुबेर तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष है। वही पूरी दुनिया को अरजा-करजा देता रहता है। किसे सस्ते दर पर ऋण देना है, किसे महंगे दर पर, इसका निर्णय उसका बोर्ड करता है। और बोर्ड भी क्या है? सबका सरगना अमेरिका है, जिसे वीटो पावर है। बोर्ड कुछ भी फैसला करे। अमेरिका ने ना कह दिया तो इसका मतलब ना होता है। अमेरिका में लोकतंत्र है, लेकिन उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पावर चाहिए। वीटो पावर का मतलब होता है राजशाही। राजा ने जो कह दिया, वह लक्ष्मण की लकीर हो गया। वैसे ही आज अमेरिका है। आधुनिक भाषा में कहना चाहिए – साम्राज्यशाही।
धन के लिए गंगा किनारे बसने वाले लोग हाय-हाय कर रहे हैं और धन अमेज़न किनारे जमा हो रहा है। अमेजन धन कमाने वाली कंपनी तो है ही, वह अमेरिका की नदी भी है। धन कमाने के लिए जमींदार किसी भी चीज का सहारा ले सकता था, उसी तरह से अमेरिका कर रहा है। हथियार से लेकर गलत नीतियों के सहारे अपने देश में धन लाभ रहा है। लोकतंत्र वहीं तक, जहां तक वह लाभकारी हो। जहां वह हानि पहुंचाये, लोकतंत्र को ताक पर रख दो। देश के अंदर भी क्या है? जिसके एयरपोर्ट पर ड्रग्स का जखीरा मिले, कोई बात नहीं। उसके पास एयरपोर्ट है, वह सरकार का दुलरुआ है। उसे क्या डर? हां कोई खाते पीते मिल जाए तो शामत है। धनतेरस तो ऐसे लोगों के घर बरस रहा है। लेकिन सड़क पर कोई और उछल कूद कर रहा है।