देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकते कुंठाग्रस्त लोगों के विमर्श

मीडिया को देश में नफ़रत फैलाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की खुली छूट

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तनवीर जाफ़री

भारतीय मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया इन दिनों जितने निम्नस्तर पर जाकर अपने दर्शकों को उकसा और वरग़ला कर उनमें धार्मिक उन्माद व नफ़रत पैदा कर रहा है वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। ऐसा लगता है कि पिछले दस वर्षों से मीडिया को देश में नफ़रत फैलाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की खुली छूट मिली हुई है। झूठी ख़बरें प्रसारित करना, टी वी एंकर्स द्वारा झूठे ट्वीट करना फिर अपने उसी ट्वीट को डिलीट कर देना, अपनी विचारधारा से मेल न खाने वाले टी वी वार्ता के पैनल्स के सदस्यों को अपमानित करना, उनके साथ गाली-गलोच करना और यदि वह मुसलमान है तो उसे सीधे तौर पर मुल्ले, कटुवे या आतंकवादी, पाकिस्तानी, जिहादी आदि कुछ भी कहकर संबोधित करना बिल्कुल आम बात होती जा रही है। नफ़रती संस्कारों में परवरिश पाने वाले यह लोग अपने, अपनी उम्र व अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि देखे बिना कभी किसी उच्चाधिकारी को अपमानित कर बैठते हैं तो कभी भारत के मुख्य न्यायाधीश तक के प्रति ऐसे अपशब्द अपने मुंह से निकालते हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बहराइच में महराजगंज क्षेत्र में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दुर्गा प्रतिमा विसर्जन में शामिल सैकड़ों लोग मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े से डी जे पर तेज़ आवाज़ में कुछ आपत्तिजनक गाने बजाते हुये गुज़र रहे थे। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने जुलूसों में डी जे के प्रयोग पर पाबन्दी लगा रखी है। उसके बावजूद डी जे पर तेज़ आवाज़ में धर्म विशेष को अपमानित करने वाले गाने बजाये जा रहे थे। ख़बर है कि मुसलमानों की तरफ़ से कुछ लोगों ने डी जे बंद करवाने के लिये कहा परन्तु भीड़ ने डी जे तो बंद नहीं किया परन्तु उग्र ज़रूर हो गयी। इसके बाद मुसलमानों के घरों को निशाना बनाते हुये तोड़फोड़ व आगज़नी शुरू हो गयी। इसी बीच राम गोपाल मिश्रा नामक एक ग़रीब नव विवाहित युवक जो भंडारों में लंगर बनाने का काम करता है वह आवेश में एक मुस्लिम व्यक्ति के घर की छत पर चढ़ गया। उसने छत पर इस्लामी प्रतीक के रूप में लगे झंडे को गिराने की कोशिश की जिससे झंडे के साथ ही छत की रेलिंग भी टूट गई। इसके बाद आक्रोशित मुसलमानों की तरफ़ से गोलीबारी हुई जिसमें राम गोपाल मिश्रा की गोलियां लगने से मौत हो गयी।
डी जे पर तेज़ आवाज़ में आपत्तिजनक गाने बजना, राम गोपाल मिश्रा का आवेश में आकर किसी मुस्लिम व्यक्ति के घर की छत पर चढ़ना, इस्लामी प्रतीक झंडे को गिराना, हिंसा के लिये भीड़ को उकसाना आदि सब कुछ ग़ैर क़ानूनी तो ज़रूर है, परन्तु इनका जवाब गोलीबारी करना या किसी की हत्या कर देना हरगिज़ नहीं। यह हत्या भी उतनी ही निंदनीय है जितना कि भीड़ द्वारा धर्म विशेष के लोगों को हिंसा के लिये उकसाया जाना। परन्तु बहराइच की इस हिंसा के बाद जो नफ़रत पूर्ण भूमिका टी वी चैनल्स व इन के नफ़रती ऐंकर्स यहाँ तक कि इस विषय पर आयोजित परिचर्चा में भाग लेने वाले पक्षपाती पैनल्स द्वारा अदा की गयी उसे देखकर साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्वयं को मुख्य धारा का मीडिया बताने वाला यह नेटवर्क दरअसल देश में अमन शांति व सद्भाव का पैरोकार नहीं बल्कि देश को नफ़रत व हिंसा की आग में झोंकने के लिये दिन रात एक किये हुए है। सबसे बड़ा नफ़रती खेल इस ग़ैर ज़िम्मेदार मीडिया व सोशल मीडिया द्वारा राम गोपाल मिश्रा की मौत के बाद आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर खेला गया जिससे कि जलती आग में और घी डाला जा सके और दंगों को पूरे प्रदेश व देश में फैलाया जा सके। विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया है कि राम गोपाल के शरीर में कई छर्रे लगे जिससे अत्यधिक रक्तस्राव हुआ जिसके चलते उसकी मृत्यु हो गयी। परन्तु मीडिया चीख़ता चिल्लाता रहा कि मृतक राम गोपाल पर तलवारों से हमला किया गया, उसके नाख़ून खींचे गये, उसे करंट लगाया गया उसकी लाश के साथ बर्बरता की गयी,आदि।
ज़ाहिर है उत्तेजना पूर्ण माहौल में इस तरह की अफ़वाह भरी ख़बरें जलती आग में घी डालने का ही काम करेंगी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद नफ़रती व्यवसाय में लगे कई पत्रकार सीएमओ व पोस्टमार्टम करने वाले अन्य डॉक्टर्स से भी मिले तथा उनके मुंह से यह कहलवाने की कोशिश की कि क्या पैरों के नाख़ून खींचे गये? क्या मृतक शरीर के साथ बर्बरता की गई? परन्तु कोई भी डॉक्टर इन नफ़रती रिपोर्टर्स के झांसे में नहीं आया। और सब ने एक ही बात कही कि मृतक के शरीर में कई छर्रे लगे जिससे अत्यधिक रक्तस्राव हुआ जिसके चलते उसकी मृत्यु हो गयी। आख़िरकार इन अफ़वाहों के बाद बहराइच पुलिस को स्वयं सामने आना पड़ा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की सच्चाई को अपने एक्स हैंडल से जारी करते हुये अफ़वाहों से दूर रहने व भ्रामक सूचनाओं को प्रसारित न करने की अपील करनी पड़ी।
एक टी वी चैनल पर इसी विषय पर आधारित एक परिचर्चा में उत्तर प्रदेश के पूर्व एडीजीपी विभूति नारायण राय जब अपने जीवन के लगभग चार दशक के आईपीएस के रूप में अपनी सेवा के अनुभव के अनुसार अपनी बात कह रहे थे उसी समय भाजपा का एक प्रवक्ता साफ़ तौर पर यह कहता सुनाई दिया कि मैं धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ बल्कि मैं केवल हिन्दू हूँ। उसके बाद उसने विभूति नारायण राय के प्रति भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया जबकि वह प्रवक्ता शायद उम्र के मामले में राय साहब की उम्र से आधा भी नहीं होगा। स्वयं को सुप्रीम कोर्ट का वकील बताने वाला परिचर्चा का वही प्रतिभागी एक मुस्लिम राजनैतिक विश्लेषक को सरेआम मुल्ले, आतंकवादी कहकर व गंदी गालियां देकर बुला रहा था। अफ़वाह, साम्प्रदायिक तनाव व सनसनी फैलाने की गोया इन एंकर्स व प्रवक्ताओं को पूरी ट्रेनिंग हासिल है। वैसे भी कई राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि चूंकि उत्तर प्रदेश में अगले कुछ दिनों में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं इसीलिये साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिये ही कुंठाग्रस्त लोग अपने कटु विमर्श के द्वारा देश की फ़िज़ा ख़राब करने में जुटे हुये हैं।

 

 

Frustrated people adding fuel to the fire of communalism
तनवीर जाफ़री
ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए SwarajKhabar उत्तरदायी नहीं है।)
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