डॉ योगेन्द्र
राँची का मौसम आज बिगड़ा हुआ है। सुबह टहलने निकला तो आसमान बादलों से भरा था। टहलने के क्रम में ही पहले अंधेरे ने राँची को अपने आग़ोश में लिया और फिर बूँदाबाँदी शुरू हो गई। सूरज आज बादलों के पीछे आराम कर रहा था। बूँदाबाँदी कभी तेज और कभी मद्धिम होती। सड़कें भींग गईं और जहाँ तहाँ छोटे छोटे गड्ढों में पानी जमा होने लगे। मैं राँची के लिए नया हूँ या कह सकते हैं कि राँची मेरे लिए नयी है। यहाँ के मौसम को ज़्यादा जानता नही। अभी तो राँची पर मौसमी अंधेरा है। दो-चार घंटे में छँट जायेंगे, मगर दुनिया पर छा रहे अंधेरे इतनी आसानी से नहीं छँटने वाले। कल मैंने सीरिया में घट रही घटनाओं पर लिखा था। आज पता चल रहा है कि सीरिया की राजधानी दमिश्क से राष्ट्रपति बशर भाग खड़े हुए हैं और उन्होंने रूस में शरण ली है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना भारतीय शरण में है और बांग्लादेश में ख़ालिदा जिया भारत के खिलाफ ढाका में प्रदर्शन कर रही हैं। फ़िलहाल बांग्लादेश में जिनका शासन है, वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त हैं, लेकिन उनके अंदर भी मानवीय प्रेम की बेहद कमी है। हाल के कुछ वर्षों में सीरिया सहित पाँच देशों- म्यांमार, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में सफल विद्रोह हुए हैं। यह विद्रोह थमने वाला नही लगता। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि चुनावों में या वैसे भी जो नेता वादे करते हैं, वे पूरे नहीं करते। नतीजा होता है कि जनता में असंतोष बढ़ता जाता है। कुर्सी पर बैठे मदांध नेताओं को जनता के असंतोष को दबाने की हर तरकीबें अपनाता है और एक दिन मुँह की खानी पड़ती है।
बशर का परिवार 53 वर्षों से सीरिया पर राज कर रहा था। बशर के पिता हाफ़िज़ ने 27 वर्षों तक राज किया तो नेत्र के डॉक्टर रहे बशर 24 वर्षों कुर्सियों से टंगे रहे। फ़िलहाल वहाँ के प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी जलाली ने विद्रोही लड़ाकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है और सेना ने हथियार डाल दिए हैं। हम अपने कर्मो के भोक्ता होते हैं। बशर ने 2011 के विद्रोह को बेरहमी से दबाया था जिसमें पाँच लाख लोग मारे गये थे। पाँच लाख लोगों के परिवार रहे होंगे। उनका ग़ुस्सा भी रहा होगा। वह ग़ुस्सा 2024 में धधका और बशर को गद्दी छोड़ कर भागना पड़ा। बशर की पीठ पर रूस का हाथ था, सो वह रूस पहुँच गया। अमेरिका विद्रोहियों के साथ जश्न मना रहा है। अफ़ग़ानिस्तान की तबाही के पीछे भी इन्हीं दोनों देशों का हाथ था। भारत को भी अमेरिका से अतिरिक्त प्यार है। कहना चाहिए कि वह रूस और अमेरिका के बीच झूलता रहता है। क़र्ज़े में डूबे देश की हैसियत कितनी रह जाती है! रूपये की हालत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क्या है? आज जो प्रधानमंत्री कुर्सी पर लदे हैं, उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को इसलिए धिक्कारा था कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रूपये की क़ीमत घट रही थी। अब उन्हें कोई चिंता नहीं है, क्योंकि वे सत्ता में हैं और कोई उनसे सवाल नहीं कर सकता। वे आम जनता से सिर्फ़ वोट माँगने आते हैं और प्रेस के सामने तो जाते भी नहीं। देश में एकालाप चल रहा है। जैसे जादूगर तरह-तरह का करतब कर जनता को मोहित किये रहता है, वैसे ही हमारे नेता तरह-तरह के वक्तव्य परोस कर सुख की नींद ले रहे हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)