भारतीय रूपए एवं माननीय के चरित्र का बार-बार गिरना…

डॉलर के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रुपए का गिरना

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विनोद कुमार विक्की
डॉलर के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रुपए का गिरना तथा कुर्सी के लिए नेताओं के चरित्र का गिरना सामान्य सी बात हो गई है। शास्त्र सम्मत है यदि आप को उपर उठना है, तो इसके लिए नीचे गिरना जरूरी है। गिरने के बाद उठने के संदर्भ में दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों सहित तमाम बुद्धिजीवी वर्ग का भी यही मानना है। बगैर गिरे ऊंचाई को प्राप्त करना वैसे ही है जैसे सिफारिश से प्राप्त की हुई सरकारी नौकरी।
गौर कीजिए धनुर्धर अर्जुन यदि श्री कृष्ण के चरणों में ना गिरे होते, तो गीता का ज्ञान कैसे बांचा जाता! यदि रावण अपनी सिस्टर शूर्पणखा के बहकावे में आकर चरित्र से ना गिरा होता, तो रामायण कैसे लिखा जाता! यदि सेव नहीं गिरता तो हमारे न्यूटन भैया को कौन पहचानता और गुरुत्वाकर्षण का नियम संभवतः अभी तक पेंडिंग में ही पड़ा रहता। सच पूछो तो भौतिक सुख की लालसा से प्रेरित तथाकथित डिजिटल बाबा ‘लंगोट’ से गिरेंगे नहीं तो प्रेस और पब्लिक को उनके एनर्जी सिक्रेट्स एवं रहस्यमयी शीश महल, गुफा, रास भवन आदि के अलौकिक ज्ञान की जानकारी कैसे प्राप्त होगी। माननीय नेताजी ओएमजी 2 के अक्षय कुमार की नकल कर जुबान से ना गिरे होते, तो विधानसभा में यौन शिक्षा पर परिचर्चा और नेताजी की चर्चा कैसे होती! गर नेताजी नैतिकता से नहीं गिरेंगे तो फिर सर्वगुण संपन्न नेता कैसे बन पाएंगे? इसी तरह जनता नोट, मुर्गा, दारू, जाति के प्रलोभन में गिरकर मतदान नहीं करेंगे, तो हमारे बीच मल्टी टैलेंटेड भ्रष्ट नेता कैसे और कहां से आ पाएगा?
हमारे पड़ोसी बालेश्वर बाबू को ही ले लीजिये, वह भी एक नेताजी के लोक लुभावन संबोधन पर गिर पड़े। श्रीमान जी के श्रीमुख उद्घोष के आधार पर उन्हें लगा चुनाव बाद नेताजी अपना घर-परिवार छोड़ उनके संसदीय क्षेत्र में ही पड़े रहेंगे और उन सभी की लोकतांत्रिक पीड़ा का उन्मूलन करेंगे।
लेकिन अगले पांँच सालों तक नेताजी ने क्षेत्र में एकाध बार ही दर्शन दिया वह भी तब, जब किसी योजना का कागजी शिलान्यास करना होता था। फिर भी बालेश्वर बाबू के मन में माननीय के प्रति श्रद्धा भाव में कमी नहीं आई है।
एक दिन मार्निंग वॉक के दौरान आगामी चुनाव पर ज्ञान बांटते और माननीय के तारीफों की पुल बांधते हुए बालेश्वर बाबू मेरे साथ सड़क किनारे चले जा रहे थे। अचानक मेरे पदपंकज के नीचे केले का छिलका ऐसे आ दबा, जैसे गंदी सियासत व मंहगाई के बीच निरीह जनता। बस फिर क्या मै धड़ाम से जमीन पर …
बालेश्वर बाबू ने सहारा देकर मुझे उठाया और तंज कसते हुए कहा ‘ये क्या व्यंग्यकार महोदय, आप भी गठबंधन सरकार की तरह गिर गये…’
उनकी बातें पूरी होने से पहले ही केला के छिलके को उठा कर दूर फेंक दिया और बोला- “सरकार गिरना तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बन चुका है बालेश्वर बाबू… बस इस बार आप मत गिरना।”
फिर उनकी ओर देखकर मुस्कुराने लगा।
वो मेरे रहस्यमयी मुस्कान और कथन का आशय जानने की बार-बार जिद करने लगे। उनके मनुहार और आग्रह की बारंबारता पर आखिरकार मुझे बोलना पड़ा- “देखो भाई, चुनाव आ रहा है वह छिलका जो नीचे गिरा था वह चुनावी मुद्दा था और गिरने वाला मैं कोई और नहीं बल्कि माननीय प्रत्याशी था। सहारा देकर उपर उठाने वाले आप जनता-जनार्दन थे और जब मैं यानी माननीय अच्छी स्थिति में आया तो छिलका यानी मुद्दे को ही दूर फेंक दिया।”
मेरी बातों को सुनकर बालेश्वर बाबू झेंप गए और मुझसे नजरें चुराने लगे। ऐसा लग रहा था, मानो आज उन्हें राजनीति शास्त्र का ज्ञान हो चुका है और वो स्वयं की नजरों में गिर चुके हैं।
बहरहाल यशवंत फेम नाना पाटेकर साहब ने भी कहा है गिरो… लेकिन झरने की तरह, जो गिरकर भी अपनी खुबसूरती को खोने नहीं देते।

 

Fall of Indian Rupee against the Dollar
विनोद कुमार विक्की ,खगड़िया
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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