फिर आया वादों का मौसम

पार्टियों का चुनावी घोषणापत्र

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ब्रह्मानंद ठाकुर
दिल्ली विधानसभा का चुनाव होने वाला है। पार्टियों ने अपना-अपना चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिया है। इसे पढ-सुन कर दिल्ली वालों का दिल अवश्य ही बाग बाग होने लगा होगा। वसंत के आने में अभी थोड़ी देर है। शिशिर अपने परवान पर है। तीन दिनों से सूरज के दर्शन नहीं हुए हैं। ठंढ से कंपकंपी छूट रही है।वदन पर चादर लपेटे चौकी पर बैठ आज का अखबार देख रहा हूं। एक खबर पर नजर ठहरती है। खबर दिल्ली विधानसभा चुनाव से सम्बंधित राजनीतिक दलों की घोषणाओं से सम्बंधित है। खबर पढ़कर कुछ गर्माहट महसूस होती है। सोचता हूं, दिल्ली वालों के दिन जल्द बहुरने वाले हैं, वशर्ते इन घोषणाओं को अमल में लाया जाए। मगर अब तक का अनुभव मेरे विश्वास को डगमगा देता है।
लगे हाथ अब चर्चा उन घोषणाओं की। इसमें भाजपा आगे है। इसने वादा किया है कि वह सरकारी संस्थानों में जरूरतमंद छात्रों को केजी से पीजी तक मुफ्त पढ़ाई की सुविधा देगी। यूपीएससी की परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों को एक बार 15 हजार रुपये दिए जाएंगे। दिल्ली के झुग्गी झोपड़ियों में अटल कैंटिन में 5 रुपये में पौष्टिक भोजन, गर्भवती महिलाओं को 21 हजार रुपये, गरीब महिलाओं को गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी वगैरह वगैरह। आप पार्टी भी वादा करने में पीछे नहीं है। इसने महिलाओं को 2100 रुपये महीना और फ्री बस सेवा, बुजुर्गों को 25 सौ रुपये महीना, फ्री तीर्थ यात्रा, छात्रों को फ्री शिक्षा, फ्री बस सेवा, मेट्रो किराए में 50 प्रतिशत छूट और 200 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा किया है। कांग्रेस का वादा है कि वह 300 यूनिट बिजली फ्री देगी। 25 लाख तक फ्री इलाज, महिलाओं को प्रति माह 2500 रुपये और युवाओं को 8500 सौ रुपये महीना अप्रेंटिसशिप के लिए देगी। ये वादे लोक लुभावन हैं।
चाहिए तो यह कि राजनीतिक दल शिक्षा के साथ-साथ रोजी रोजगार का अवसर प्रदान करने की बात करते। क्योंकि मिहनत की कमाई से अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में जो आत्मसम्मान और मर्यादा बोध है वह मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं से कई गुणा बेहतर होता है। हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बहुत ही सम्पन्न है। यहां की 51 प्रतिशत भूमि उपजाऊ है। खनिज सम्पदा और तकनीक के मामले में भी हमारा देश काफी आगे है। यहां जीवन दायिनी नदियों का जाल- सा बिछा हुआ है। तमाम आवश्यक तकनीक और श्रम शक्ति हमारे देश में उपलब्ध है। जरूरत है इसके सही उपयोग कर खेती -किसानी और उद्योग धंधे के तेजी से विकास करने की ताकि किसानों में खुशहाली आ सके, बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सके। अगर ऐसा हो जाए तो मुफ्त की सुविधा लोग क्यों लेना चाहेंगे? लेकिन आज स्थिति यह है कि देश में नये रोजगार सृजन की बात तो दूर, जिनको रोजगार मिला हुआ भी है, उन्हें तालाबंदी और छंटनी कर नौकरियों से निकाला जा रहा है। ऐसा 1990 के बाद भूमंडलीकरण की अपनाई गई नीतियों के कारण हो रहा है। इस नीति के तहत जो कदम उठाए जा रहे हैं उससे बेरोजगारी की समस्या और विकराल हो गई है।

 

Election manifesto of parties
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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