इश्क के दरिया में डूब कर नहीं, लाइफ जैकेट के साथ जाइये

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Editorial
बाबा विजयेन्द्र (स्वराज खबर, समूह सम्पादक)

डूबने के लिए समंदर यों ही बदनाम है जानम,
डूबने के लिए तो झील सी तेरी आंखें ही काफी है….
झील में डूबकर बेमतलब की आत्महत्या करने का अब मन नहीं करता। बहुत काम शेष पड़े हैं। वैसे शायरी का मैं ट्रक छाप प्रशंसक ही रहा हूँ। शायरी की कोई गहरी समझ भी मेरी नहीं है। बावजूद इसे मैं यहां कोट कर रहा हूँ।
भटकती आत्मा की तरह आज मैं तेलंगाना सचिवालय आ गया हूँ। सामने बाबा साहेब की विशाल प्रतिमा खड़ी है। सामने विशाल झील है। झील के बीच में बुद्ध की प्रतिमा है। मानो बुद्ध यहां जलसमाधि ले रहे हों। बुद्ध को देखने को मेरा जी कर गया। वैसे बुद्धू तो मैं रहा ही हूँ, पर बुद्धत्व के करीब जाने की चाहत बनी रही है।
झील में उतरने की घबराहट है। मन चिलका ही है। किसी झील के करीब कभी गया नहीं। अबतक साहित्य में ही झील खोजता रहा। आँखें सूनी और सूखी ही रही। कानी गाय की तरह मैं अलग ही बथान खोजता रहा। आँखों से गालियां बरसाती मेरे जीवन की कुनयना! शून्य में दो बांहो का हार तैरता रहा। हारता रहा मेरा मन। मन की आवाज सुन न सकी कोई सुनयना।
झील सी आँखों के कजरारे किनारे कभी दिखे नहीं। बेमतलब का इसमें डूबता इतराता रहा। प्रेम में कभी अंधा हुआ नहीं बल्कि अंधा होकर प्रेम किया। खैर किनारे खड़ा हूँ अभी, सामने लेटी हुई गहरी झील है। इसकी छाती पर कुछ हाँफती नौकायें हैं।
कोई भी झील सी आँखें नजर नहीं आयी अबतक। आँखों के सामने की यह झील अवश्य बुला रही है। इस झील की सैर बहुत ही मंहगी है। पांच सौ टका चाहिए यहां मस्त हो जाने के लिए। कृपन्न व्यक्ति के लिए प्रेम का कोई महत्व नहीं होता। इंद्र के दरबार में खाता बही का क्या मतलब? बिना पैसा का मुलुर-मुलुर केवल ताके ला.. बिना पैसा का तमाशा नहीं देखा जा सकता। इस कोशिश में जीवन स्वयं तमाशा बन जाता है।
झील में डूब न जाऊं। लाइफ जैकेट डाल लिया है, दौर नया है। इश्क के दरिया में अब डूब के नहीं बल्कि लाइफ जैकेट के साथ जाना जरूरी है। अविश्वास की गहराई है। थोड़ा सम्हल के जा रहा हूँ।

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