डॉ योगेन्द्र
ट्रेन की खिड़कियों से देखता हूँ। सूरज और कुहरे में आँख मिचौनी का खेल चल रहा है। कुहरे में पेड़, झाड़ियाँ और मानव उलझे नज़र आते हैं। सूरज उस उलझन को दूर करने के लिए कटिबद्ध है। सूरज रोशनी का नाम है। तेज और ताप से भरा हुआ। धान लगभग कट गये हैं। कई तरह की हरी सब्जियां जहाँ तहाँ खेतों में मौजूद है। प्रकृति का यह रूप मुग्ध करता है और मुझे दूर स्मृतियों में ले जाता है। जहाँ सुबह-सुबह धान उसनती माँ और दादी है। ढेंकी पर हम दोनों भाई ज़ोर लगा कर धान कूट कर चूड़ा बना रहे हैं। चूड़े की कच्ची सुगंध नथूनों में भर रही है। और फिर चक्की और चूड़ा। खैर! दिन तो वापस आते नहीं। स्मृतियों में दूर तक जाना ठीक नहीं। वर्तमान की हवा आँधी बनी बैठी है। संसद में बहस कम बकथोथरी बहुत ज़्यादा होती है। संसद में लगता नहीं है कि एक देश के सांसद बहस कर रहे हैं। कटाक्ष करना और एक दूसरे को बेवक़ूफ़ समझना आम बात है। कल संसद में हंगामे इतने हुए कि वह चली नही। गृह मंत्री अमित शाह को गृह से मतलब कम रहता है। वे इस खोज में लगे रहते हैं कि राहुल गांधी विदेश जाते हैं तो किसके घर जाते हैं? गृह मंत्री को देश की ओर से आभार प्रकट करना चाहिए कि वे इतने महान काम में लगे रहते हैं। दुर्भाग्य यह है कि ऐसे मौक़े पर उनके और प्रधानमंत्री के भी कुछ लटपटाए अध्याय का ज़िक्र हो जाता है। इसलिए यह कहावत सौ फ़ीसदी सही है कि जिनके घर शीशे के हों, वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते। निजी जीवन में बहुत प्रवेश नहीं करना चाहिए, जब तक वह सार्वजनिक जीवन को तंग तबाह न करने लगे।
गृह मंत्री ने ही कहा था कि पंद्रह लाख की बात जुमला था। चुनाव में कह दिया जाता है। अब एक सच्चाई उनके मुँह से फिसल गई है कि डॉ अम्बेडकर के बारे में। डॉ अम्बेडकर का नाम लेने से उन्हें अपार दुख होता है, लेकिन मजबूरी है कि वे नाम लें। वोट के लिए डॉ अम्बेडकर बहुत ज़रूरी हैं। उनकी या प्रधानमंत्री की आदत तो गोलवलकर, सावरकर या गोडसे के नाम लेने की है। मगर वे तीनों अभी इस लायक़ नहीं हैं कि वोट दिलवा सकें। इसलिए दबे छिपे ही वे नाम लेते हैं या वैसे लोगों को सरंक्षण देते हैं जो तीनों के प्रेमी हों। देश के बाहर महात्मा गांधी और देश के अंदर डॉ अम्बेडकर। वे दोनों को पसंद नहीं करते। अवसर आयेगा तो वे दोनों को कूड़ेदान में फेंक देंगे, क्योंकि उनकी शिक्षा दीक्षा दूसरे क़िस्म की है। यह अलग बात है कि डॉ अम्बेडकर, महात्मा गांधी, नेहरु, पटेल आदि ने लोकतंत्र की जो नींव रखी, उससे गुज़र कर वे सत्ता में आ गये। अब उनकी मजबूरी है कि इनका नाम लेते रहें, वरना जनता उखड़ जायेगी। अभी जनता उनके पूर्वजों के नाम पर बहुत वोट नहीं दे सकती। मगर उनकी चेतना में डॉ भीमराव अम्बेडकर नही है। सो वे उनके बारे में फिसल गए। डॉ भीमराव अम्बेडकर ने हिंदू धर्म के बारे में जो कहा है और वही बात अगर नेहरु ने कही होती तो नेहरु को ये लोग पाताल पहुँचा दिए होते, मगर डॉ अम्बेडकर ने कही है। डॉ अम्बेडकर को कुछ कहेंगे तो वे ख़ुद पाताल पहुँच जायेंगे। चलिए, आगे देखिए। इस देश को क्या-क्या भोगना है!
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)