डोंकी प्रोसेस, ट्रंप और भारत

भारत से अमेरिका पहुँचने के लिए डोंकी प्रोसेस का इस्तेमाल

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डॉ योगेन्द्र
धर्म सभा में भाग लेने 1896 में स्वामी विवेकानंद भटकते हुए अमेरिका पहुँचे थे। उन्हें अमेरिका के मौसम- मिजाज के बारे में कुछ पता नहीं था। रुपयों का भी घोर अभाव था। ठंड सहते और हालात से मुकाबला करते उन्होंने धर्म संसद में हिस्सा लिया और दुनिया में अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमता का झंडा गाड़ा। पहले ही भाषण में जब भाइयो और बहनो कहा तो धर्म संसद ने तालियाँ बजायी। उस वक्त देश गुलाम था। तब भी विवेकानंद की गर्जना को सबने सुना। अमेरिका और ब्रिटेन में अनेक जगहों पर उन्होंने भाषण दिया और प्रशंसा पायी। इस खूबसूरत घटना को घटे 128 वर्ष हो गए। उस वक्त कोई भारतीय अमेरिका अप्रवासी बनने नहीं जा रहा था। आज हम आजाद हैं और विकास के नित दावे कर रहे हैं। हालात यह है कि एक लाख से ज्यादा भारतीय प्रति वर्ष गलत ढंग से अमेरिका में घुसने का प्रयास करते हैं। इनमें से कुछ प्रवेश कर पाते हैं, कुछ रास्ते में मर या मारे जाते हैं। गुजरात के एक गाँव से जगदीश नामक एक शख्स परिवार सहित अमेरिका में घुसने की कोशिश करता है और वह ठंड से मर जाता है। भारत से अमेरिका पहुँचने के लिए वे डोंकी प्रोसेस का इस्तेमाल करते हैं। डोंकी प्रोसेस यानी अवैध ढंग से अमेरिका पहुँचने के तरीके। लोग जंगलों, रेगिस्तानों और नदियों को पार कर अमेरिका पहुँचने की कोशिश करते हैं और उनमें से बहुतेरे रास्ते में ही काल कवलित हो जाते हैं। रास्ते में डकैतों और गैंग के खतरे रहते हीं है। उनका शारीरिक शोषण भी होता है, तब भी गुजरात, हरियाणा आदि राज्यों से लाखों रुपये खर्च कर लोग अमेरिका पहुँचने की जद्दोजहद कर रहे हैं और उधर ट्रंप लाठी लिए खड़े हैं। खदेड़-खदेड़ कर लोगों को पकड़ रहे हैं और उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा जा रहा है।
अमेरिका में हर रोज 1200 अवैध प्रवासियों को पकड़ा जा रहा है। अमेरिका के डिटेंशन सेंटर में जगह नहीं बची है, इसलिए उन्हें खतरनाक कैदियों के साथ लॉस एंजल्स, मियामी, अटलांटा और कैंसस सहित नौ फैडरल जेलों में रखा जा रहा है। अमेरिकी सिविल लिबर्टी यूनियन के अनुसार इन कैदियों की हालत बद से बदतर है। उन्हें बासी बदबूदार खाना परोसा जाता है। कड़ाके की सर्दी में उन्हें फर्श पर सुलाया जाता है। मानव के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। दो तीन वर्ष पहले भारत में भी डिटेंशन सेंटर की खूब चर्चा हुई थी। खासकर असम की, जहाँ बांग्लादेशियों को पकड़ कर रखा गया था। आज-कल उस ओर से कोई खबर नहीं आ रही है। हमने पृथ्वी को डिटेंशन सेंटर बना दिया है। ज्ञान ज्यों-ज्यों बढ़ रहा है, त्यों-त्यों अज्ञानियों की संख्या में अभूतपूर्व रूप से वृद्धि हुई है। अमेरिका पूरी दुनिया में टापू बन कर रहना चाहता है। समृद्धि का टापू। चारों तरफ गरीबी और हाहाकार हो और अमेरिका इससे अछूता रहे, यह संभव नहीं है। देश में भी कुछ लोगों के अपना अमेरिका है। वे अपने को दड़बे में बंद कर मौज मना रहे हैं, मगर यह संभव नहीं है। इस खुली दुनिया में अनेक दीवारें नहीं बनाई जा सकतीं। बेहतर हो कि गांधी के रास्ते को याद करें। सबके लिए प्रकृति ने इंतजाम किया है, पर जमाखोरी और लूट के लिए नहीं।

 

 

Donkey Process
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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