भगत सिंह पर ओछी टिप्पणी करने वाले अपने गिरेबान में भी झांकें

क्रांतिकारियों की भूमिका को कमतर आंकने का सुनियोजित षड्यंत्र

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ब्रह्मानंद ठाकुर
खबर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के महानायक शहीद-ए-आजम भगत सिंह से सम्बंधित है। आजकल देश में स्वतंत्रता आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के महानायकों के आदर्शों को धूमिल करने, उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। आजादी आंदोलन में उनके योगदान और कुर्बानियों को याद करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने की जगह अब उनका चरित्र हनन करने का मुहिम शुरू हो गई है। शिरोमणि अकाली दल के सांसद सिमरनजीत सिंह मान पहले ही भगत सिंह को आतंकवादी कह चुके हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर में आयोजित लिट्रेचर फेस्टिवल का है। यहां जो हुआ उसे इसी संदर्भ में देखें और समझे जाने की जरूरत है। इस आयोजन में मुख्य वक्ता व मुख्य अतिथि अपर्णा वैदिक थीं।
इस साहित्यिक मंच पर भगत सिंह के बारे में जो कुछ भी कहा गया वह एक देशभक्त शहीद के लिए आपत्तिजनक ही नहीं, घोर निन्दनीय भी है। अर्पणा वैदिक ने भगत सिंह को आरामतलबी तो कहा ही, उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे होटलों के मैनेजर से सेटिंग कर मुफ्त भोजन करते थे। जेल में अनशन के दौरान उनका वजन इसलिए बढ़ गया कि वे छुपा कर भोजन करते रहे होंगें।
अर्पणा वैदिक इतिहासकार के साथ-साथ प्राध्यापिका भी हैं। इनके मुंह से एक क्रांतिकारी के लिए ऐसे शब्द शोभा नहीं देते। इसी परिचर्चा में ईशान शर्मा ने तो भगत सिंह को बहुरूपिया तक कह दिया। इस बात को सभी जानते हैं कि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाले तमाम क्रांतिकारी इसलिए अपना भेष बदल कर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते थे कि वे पकड़े न जाएं। इसलिए उनको बहुरूपिया कहना क्रांतिकारियों का अपमान करना है। हालांकि कार्यक्रम में उपस्थित दर्शको के विरोध पर अर्पणा वैदिक और ईशान शर्मा को भगत सिंह के प्रति ऐसे शब्दों का प्रयोग करने के लिए माफी मांगनी पड़ी। माफी तो कार्यक्रम के आयोजक अतुल तिवारी ने भी मांगी। वैसे देखा जाए तो एक तरह से यह आजादी आंदोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका को कमतर आंकने का एक सुनियोजित षड्यंत्र है। आजादी की लड़ाई में भगत सिंह के योगदान को सारा देश जानता है। वे आजादी आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के महानायक थे। वे और उनके साथी अंग्रेजी दासता के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे। उनका लक्ष्य आजादी के बाद देश में समाजवादी शासन व्यवस्था स्थापित करना था। वे कहते थे, शोषण से मुक्ति की यह लड़ाई बिना जनता के सहयोग के नहीं लड़ी जा सकती और न जीती जा सकती है। इसलिए हर सम्भव उपायों से जनता के बीच जाना होगा। इसी उद्देश्य के लिए क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी थी। भगत सिंह जब जेल में थे तो जेल से ही उन्होंने युवा राजनैतिक कार्यकर्ताओं के नाम एक संदेश भेजा था, जिसमें उन्होंने लिखा था, गांधी जी के नेतृत्व में चल रहे वर्तमान आंदोलन का अंत निश्चित रूप से किसी न किसी समझौते के रूप में होगा। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था क्योंकि उस समय स्वतंत्रता की लड़ाई मध्यम वर्ग और चंद पूंजीपतियों द्वारा लड़ी जा रही थी, जिनका अपना वर्गीय स्वार्थ था। ऐसा ही हुआ भी। अंतिम जीत समझौतावादी ताकतों की हुई। देश तो आजाद हुआ लेकिन भगत सिंह का सपना साकार नही हो सका। पूंजीवादी शोषण -उत्पीड़न यथावत कायम रहा। आज शोषणमुक्त समाज की स्थापना का दायित्व जिस युवा पीढ़ी के कंधे पर है, भगत सिंह उसके आदर्श है। इसी आदर्श को विकृत करने की सुनियोजित साजिश चल रही हे। अर्पणा वैदिक और ईशान शर्मा की भगत सिंह पर की गई टिप्पणी को इसी नजरिए से देखने की जरूरत है।

 

Disparaging comments on Bhagat Singh
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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