रूपये का अवमूल्यन और प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा

प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा

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डॉ योगेन्द्र
2013-14 का वह समय था, जब देश में बहुत कुछ गिरा। उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा गिर गई थी, जब अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में डालर की तुलना में रुपये का मूल्य गिरा था। उस समय एक डालर का मूल्य 68 रुपये था। नरेंद्र मोदी जी ने सीना तान कर कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में रूपए का मूल्य यों ही नहीं गिरता। इसके कारण होते हैं। रुपये का मूल्य गिरने से प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा दो कौड़ी की हो जाती है। देश ने उनकी सुनी। उसे पूरा विश्वास हो गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आर्थिक नीतियों की जानकारी नहीं है। यह जो नया बंदा अवतरित हुआ है, यही देश सँभाल सकता है। पढ़े लिखे मनमोहन सिंह की पढ़ाई बेमतलब निकली और संदिग्ध डिग्रीधारी नरेंद्र मोदी की तो चल निकली। उन्हें सुनने भीड़ उमड़ आती। हर सभा में अच्छे दिन लाने के वादे करते। स्विस बैंकों से काले धन निकाल कर पंद्रह-पंद्रह लाख देने की बात करते। जनता गदगद रहती। अडानी के हवाई जहाज पर बैठकर यह बंदा पूरे देश का चक्कर लगाया और अंत में काशी आया और कहा- मुझे तो गंगा माँ ने बुलाया है। उस वक़्त इनकी इज्जत परवान पर थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इज्जत धूल में मिल गयी थी। मनमोहन सिंह दुनिया से कूच कर गए और यह बंदा गिरते पड़ते आज भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान है। इनसे कोई नहीं पूछता कि अब रूपये क्यों डालर के सामने नाक रगड़ रहा है? जब एक डालर का 68 रुपये था, तब प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा भूलुंठित हो गयी थी तो आज एक डालर का मूल्य 86 रुपये है तब प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा बची कैसे है? क्या उनकी प्रतिष्ठा फिक्स हो गई है?
राजनीति में मोटी चमड़ी के लोग चाहिए। भैंस से भी मोटी। जिन वजहों से किसी की प्रतिष्ठा को आप गिराते हैं, अगर वही वजह आप पर टूट पड़े तो आपके पास इतना कौशल होना चाहिए कि आप सह सकें या आप जनता को दूसरे मुद्दों में भटका सकें। राजनीति में पहले चोरी को मान्यता मिल गई थी और अब आप डकैती भी कर सकते हैं। जितनी डकैती करेंगे, राजनीति में उतनी ही प्रतिष्ठा मिलेगी।
अभिनेत्री रश्मिका मंदाना ने युवाओं को प्रेरित करने के लिए कहा है कि कोई हँसी उड़ाए या नीचा दिखाए, डिगे मत, मेहनत मुकाम दिलायेगी। अपने तरीके से उन्होंने ठीक ही कहा है। करोड़ों युवा फ़्रस्ट्रेशन में हैं। वे उल्टे सीधे कदम उठा लेते हैं। असमय दुनिया से काल कवलित हो जाते हैं। लेकिन उन्हें मालूम नहीं है कि अब हुनर से ज्यादा काम और शोहरत चापलूसी से मिलता है। फटाफट पैसा कमाने का युग है। यह नहीं कि पैसे के लिए कई पीढ़ियाँ कमाती रही। यहां तो एक पीढ़ी शिखर पर पहुँच जाती है। जीते जी लोग किंवदंती बन जाते हैं। एक बंदा गुजरात में मोटरसाइकिल पर चलता था और अब दुनिया में नंबर वन है। वह अनेक देशों में फैलता जा रहा है। वैसे तो यह युग कर्जखोरी का है। कर्ज लेकर घी पीने की चर्चा बहुत होती रहती है, लेकिन घी में थोड़ी कटौती है। देश के शानदार और जानदार प्रधानमंत्री के बूते जहाँ देश पर कर्ज पचपन लाख करोड़ थी, वह अब दो सौ लाख करोड़ हो गई है। जनता को घी नहीं, महज पाँच किलो अनाज से संतुष्ट करना पड़ रहा है। चलिए, देश की आर्थिक प्रगति पाँच ट्रिलियन की ओर है और उसी तरह से कर्ज दो सौ लाख करोड़ से आगे चल पड़ी है।

 

Devaluation of Rupee and the prestige of the Prime Minister
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)

 

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