प्रतिबंधित क्यों नहीं हो रही जानलेवा ‘चाईना डोर’

जानलेवा चाईना डोर दुकानों के अलावा ऑन लाइन भी उपलब्ध

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निर्मल रानी
विश्व के सबसे बड़े बाजार के रूप में अपनी पहचान रखने वाले भारत में चीन जैसे पड़ोसी देश के अनगिनत उत्पाद पटे पड़े हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जिससे संबंधित सामग्री चीन निर्मित न कर रहा हो और भारत सहित पूरी दुनिया को उनकी आपूर्ति न कर रहा हो। छोटी से छोटी मामूली चीज़ों से लेकर बड़ी से बड़ी और भारी से भारी वस्तुएं चीन द्वारा निर्मित कर भारत भेजी जा रही हैं। मिसाल के तौर पर जहाँ चीन निर्मित मोबाईल फोन लैपटॉप व कंप्यूटर आदि भारतीय बाजार में भरे पड़े हैं वहीँ चाईना की रंग बिरंगी लाईट्स दीपावली, नववर्ष जैसे अनेक अवसरों पर पूरे देश में अपनी रंगबिरंगी छटायें बिखेरती हैं। सजावट, मशीनरी, कांच, पत्थर, प्लास्टिक, खिलौना, कपड़ा, बर्तन, क्रॉकरी, फर्नीचर, हार्डवेयर, आतिशबाजी, धार्मिक सामग्री, देवी देवताओं के चित्र, फ़ोटो फ़्रेम, नज़र बट्टू, कंठी माला टोपी तस्बीह मुसल्ला मेडिकल व सर्जिकल सामग्री जैसी तमाम क्षेत्रों से सम्बंधित सामग्रियों का निर्माण व इनकी आपूर्ति चीन द्वारा भारत सहित पूरे विश्व में की जाती है। इन्हीं चीन निर्मित सामग्रियों में कुछ सामग्री ऐसी भी हैं जिनका इस्तेमाल करना लोगों की जान से खिलवाड़ करने जैसा है। ऐसी ही मनोरंजन से जुड़ी एक सामग्री है ‘चाईना डोर’।
‘चाईना डोर ‘ का प्रयोग पतंगबाज़ी में किया जाता है। और भारत पूरे विश्व में पतंगबाज़ी के लिये प्रसिद्ध है। वसंत पंचमी जैसे अनेक त्योहारों पर तथा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर और इसके अलावा छुट्टियों के दिनों में तमाम लोग अपने फ़ुर्सत के लम्हे पतंगबाज़ी कर बिताना चाहते हैं। चीन जहाँ भारत को तरह तरह की रंग बिरंगी छोटी बड़ी पतंगें निर्यात करता है वहीँ पतंग उड़ने में प्रयोग किया जाने वाला डोर /मांझा भी चीन से ही आता है। दरअसल पतंगबाज़ी में प्रयुक्त मांझा जो भारत में भी बनता है उसमें भी कुशाग्रता अथवा धार पैदा करने के लिये उसमें पिसे हुये कांच का पाउडर मिलाया जाता है। और भारत में चाईना डोर के आने की शुरुआत से पहले भी पतंग उड़ाने वाले मांझे में उलझकर अनेक लोग ज़ख़्मी हो जाते थे। परन्तु आख़िरकार वह भारतीय मांझा टूट जाया करता था। लेकिन जबसे भारतीय बाज़ार में चाइनीज़ मांझों ने अपनी दस्तक दी है तब से तो पतंगबाज़ी मनोरंजन से अधिक दहशत भरे व जानलेवा मनोरंजन के रूप में जाना जाने लगा है। हालत यह हो गयी है कि शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जिस दिन देश के किसी न किसी कोने से चाईना डोर के चलते होने वाले हादसों की ख़बरें न आती हों। दरअसल चाईना डोर में प्रयुक्त धागा किसी ऐसी सामग्री का बना हुआ तेज़ धार वाला धागा है जो किसी व्यक्ति,वाहन पशु पक्षी से उलझने के बावजूद खिंचने पर आसानी से टूटता नहीं।
पिछले दिनों हद तो यह हो गयी कि 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन ही अकेले गुजरात में ही 6 लोग पतंगबाज़ी में मर गये। आश्चर्य तो यह कि स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मकर संक्रांति के अवसर पर उसी दिन गुजरात में ही स्थानीय लोगों के साथ पतंग उड़ाने का आनंद लिया। उन्होंने उत्तरायण पर्व (मकर संक्रांति) के अवसर पर शहर के मेमनगर इलाक़े में शांतिनिकेतन अपार्टमेंट की छत पर पतंग उड़ाई। पूरे देश में उसी दिन चाईना डोर से अनेक लोगों की मौत हो गयी। इसका तीखापन,धार व मज़बूती ऐसी है कि आज के दौर में दुपहिया व चारपहिया वाहनों में इस्तेमाल होने वाले फ़ाईबर या प्लास्टिक के बने बम्पर, लेग गॉर्ड अथवा अन्य एसेसरीज़ को भी यह काट देता है। ज़ाहिर है ऐसे में प्राणियों का बचने का सवाल ही नहीं है। उदाहरणार्थ गत दिनों लुधियाना में एक मोर के गले में यही प्लास्टिक टाइप चाइना डोर फँस गयी जिससे उसकी मौत हो गयी। समाचार यह भी है कि यह मांझा सुचालक होता है जिसके कारण इसमें करेंट प्रवाहित हो जाता है। चाईना डोर से करंट लगने से भी कई मौतें हो चुकी हैं। गले, कलाई और हाथों की नस कटना और अत्यधिक रक्त प्रवाह के चलते मौत होने की तो अनेकानेक घटनाएं घटित हो चुकी हैं।
पिछले दिनों अमृतसर व जालंधर में एक ही दिन में घटी दो अलग अलग घटनाओं में 19 वर्षीय पवनदीप व 45 वर्षीय की मौत हो गयी। इन दोनों की मौत चाईना डोर से गले में सांस की नस कट जाने के कारण हुई। इस मामले में दोनों ही जगह पुलिस द्वारा कुछ अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध मुक़ददमा दर्ज किया गया है। सवाल यह है कि किस पर चलना चाहिये हत्या का मुक़द्द्मा? इस तरह के हादसों का ज़िम्मेदार कौन हो सकता है ? ऐसी ख़तरनाक सामग्री बेचने वाला? इसे ख़रीद कर इस्तेमाल करने वाला? या फिर इसका निर्माण व आपूर्ति करने वाला? कोई भी हो परन्तु कम से कम इस से उलझकर अपनी जान गंवाने वाला बेगुनाह तो हरगिज़ नहीं हो सकता? चाईना डोर /मांझे से कटकर जान गंवाने की ख़बरें दशकों से हमारे देश के अख़बारों में सुर्ख़ियों में रहती हैं। अब तो यह जानलेवा मांझा दुकानों के अलावा ऑन लाइन भी उपलब्ध है। परन्तु सरकार की तरफ़ से इस दिशा में कोई क़दम उठाने का कोई समाचार नहीं है।
जनता को उसके हाल पर छोड़ने की यह कुछ ऐसी ही मिसाल है जैसे कि कहीं मेनहोल का ढक्क्न खुला पड़ा है या सड़कों पर गड्ढे हैं तो उसके चलते होने वाले किसी भी हादसे या मौत की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं होती बल्कि मरने या घायल होने वाला ही अपनी ग़लती सहर्ष स्वीकार कर या तो यमराज के हमराह चला जाता है या अस्पतालों के चक्कर लगता रहता है और लाखों रूपये के चक्कर में पड़ जाता है। परन्तु सरकार को केवल अपने रोड टैक्स और कमेटी टैक्स से ही वास्ता है। हाँ यदि आपसे टैक्स भरने में देर हो गयी तो जुरमाना वसूलना ज़रूर सरकार का काम है, सड़कों गड्ढों मेनहोल आदि को दुरुस्त व सुचारु रखना हरगिज़ नहीं? सरकार को चाहिये कि आम लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाली ऐसी जानलेवा सामग्रियों को तत्काल रूप से प्रतिबंधित करे। ऐसी सामग्रियों पर लगने वाले सीमा शुल्क अथवा जी एस टी से अधिक ज़रूरी है आम लोगों की जान सुरक्षित करना। पशु पक्षियों की जान बचाने की कोशिश करना तथा चाईना डोर /मांझे के चलते होने वाली दुर्घटनाओं को टालना। इसलिये सरकार को तत्काल प्रभाव से देश में चाईना डोर /मांझे के आयात को प्रतिबंधित कर देना चाहिये। आश्चर्य है कि इतनी मौतों व दुर्घटनाओं के बावजूद अभी तक जानलेवा ‘चाईना डोर’ प्रतिबंधित क्यों नहीं हो रही है?

Deadly China Door
निर्मल रानी

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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