महाकवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की गौ भक्ति
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी को गायों के साथ-साथ कुत्ते और बिल्लियों से था लगाव
ब्रह्मानंद ठाकुर
छायावादोत्तर काल के महान साहित्यिक विभूति आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का जन्म 1916 में वसंत पंचमी के दिन गया (अब औरंगाबाद) जिलै के मैगरा गांव में हुआ था। किशोरावस्था मे ही वे मुजफ्फरपुर आ गए और यहीं के होकर रह गये। मुजफ्फरपुर में हीं उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके आवास निराला निकेतन के परिसर में बनी गायों की समाधि आज भी उनके गौ भक्ति की कहानी कहती हैं। केवल गाय की ही नहीं, यहां कुत्ते और बिल्लियों की भी समाधि बनी हुई है। वे कुत्ते और बिल्लियों को बड़े प्यार से अपनी गोद में बैठा कर दूध पिलाते और बिस्कुट खिलाते थे। आचार्य शास्त्री ने अपनी गौ भक्ति के बारे में एक बार मुझे बताया था, एक दिन उनके पिता श्री राम अनुग्रह शर्मा उनके आवास निराला निकेतन पधारे थे। तब शास्त्री जी आरडीएस कालेज में प्राध्यापक थै। कालेज से लौटते हुए शास्त्री जी उनके लिए बाजार से दूध खरीद कर लाए। उनके पिता ने यह कहते हुए उस दूध को पीने से इंकार कर दिया कि वे बाजार का दूध नहीं पीते हैं। दूसरे ही दिन शास्त्री जी ने एक गाय खरीदी। उसका नाम रखा कृष्णा। उसी गाय से अनेक बछड़े और बछिया पैदा हुई। उन्होंने किसी को बेचा नहीं। कुछ ही वर्षों में इनकी संख्या काफी बढ़ गई। वे कभी गाय का दूध बेचते नहीं थे। उनका कहना था, मां का दूध भी कहीं बेचा जाता है? वे गाय से उतना ही दूध निकलवाते जितने की उन्हें आवश्यकता होती थी। इस आवश्यकता में उनके कुत्ते-बिल्लियों का हक भी शामिल था। शेष दूध बछड़े-बछिया को पीने के लिए छोड़ दिया जाता था। गाएं जब मरतीं तो उसे वे पहलेजा घाट ले जाकर गंगा नदी के किनारे दफनाते थे। बाद में जब शास्त्री जी अस्वस्थ रहने लगे तो मृत गायों को गंगा किनारे दफनाने के बजाय निराला निकेतन के लगभग दो एकड़ वाले परिसर के एक कोने में दफनाया जाने लगा। दफनाने के बाद उस स्थल पर समाधि बनवा कर मृत गायों का नाम लिखवा दिया जाता था। इस परिसर में अनेक गायों की समाधि आज भी महाकवि की गो भक्ति की निशानी के रूप में मौजूद हैं। समाधि के ऊपर गायों का नाम लिखा हुआ है। परिसर में गायों के अलावे कुत्तों की भी समाधि है, जिसपर उसके नाम लिखे हुए हैं। जीवन के अंतिम क्षण तक महाकवि की गौभक्ति यथावत बनी रही। उनके आवास निराला निकेतन में उनके स्वर्गीय पिता राम अनुग्रह शर्मा जी की एक प्रतिमा मंदिर में स्थापित है। जब तक शास्त्री जी जीवित रहे, अपने पिता की नियमित पूजा-अर्चना करते रहे। आज शास्त्री जी नहीं हैं। निराला निकेतन में उदासी पसरी हुई है जिसका वर्णन उन्हीं के शब्दों में-
फूले चमन से रूठ कर
बैठी विजन में ठूंठ पर
एक बुल बुल गा रही
कैसी उदासी छा रही!

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)