
लाखों बाबा अभी ज्ञान दे ही रहे हैं तो भागवत को अभी नया ज्ञान देने की क्या जरुरत थी? वैसे भागवत का विवादों से है पुराना नाता। इनका बयान उस वक्त आ जाता है जब सत्ता अपना मंसूबा पूरा करने में लगी हो। चुनाव के वक्त भागवत ने आरक्षण पर ऐसा बयान दिया था कि भाजपा की भद ही पिट गयी थी और चुनाव में भाजपा को शिकस्त झेलनी पड़ी। अपने बयानों से सत्ता को असहज करने का नाम ही मोहन भागवत है। इनके बयानों के नीचे सत्ता कसमसाती रहती है। खास कर गुजराती-बन्धुओं का चेहरा इनके बयानों से अवश्य ही उतर जाता है।
जगह-जगह हो रही खुदाई को भी उन्होने खारिज कर दिया था। उस बयान से भीतर-भीतर भाजपा भयाक्रांत तो हुई ही, संत समाज भी नाराज हो गया। खासकर वे संत जो भागवत से ज्यादा मोदी के पक्षकार हैं। पिछले कुछ दिनों से भारत के संतों द्वारा भागवत पर जोरदार हमला हो रहा है। वैसे ये सभी महात्मा मोदी-मण्डली के ही कमंडलधारी हैं।
खुदाई कर हीरो बनने वालों को भागवत ने खूब हरकाया। कांवर-यात्रा और संभल को लेकर भागवत का जो बयान आया उससे गुजराती-हिंदुत्व की लहर धीमी पड़ गयी। हिंदुत्व मतलब केवल नागपुर है। यही हिंदुओं का हस्तिनापुर है। अभी जो भागवत का बयान आया है उससे भाजपा भीतर-भीतर तो असहज है, पर विरोध के लिए कांग्रेस को आगे कर दिया है।
अगर यही डिबेट चलता रहा तो कुम्भ का क्या होगा? भाजपा को कुम्भ से जो अमृत मिलता उसे भागवत ने बिखेर दिया है। न तो अमृत चाटेंगे न ही भागवत और किसी को चाटने देंगे? अगर संगम से हिन्दू नेतृत्व प्रभावित और निर्धारित होगा तो संघ क्या करेगा? तब संघ का महत्व क्या रह जाएगा? यह बयान कुम्भ को ऑफस्क्रीन करने के लिए है। कुम्भ भी अगर संघ संचालित होता तो शायद ऐसा बयान नहीं आया होता।
बची बात कांग्रेस की। कुम्भ की भीड़ कांग्रेस के अरमानों को कुचलती दिख रही थी। भागवत ने कांग्रेस को मुद्दा दिया कि बेटा मौका है छक्का मार दो। जितना उछलना है उछल लो, जबतक कि कुम्भ समाप्त न हो जाए। सबलोग यांनी बाबा और बीजेपी के लोग अभी कुम्भ में रहेंगे, इधर मैदान खाली है। चाहो तो भाजपा की फसल लूट सकते हो।
भागवत ने कुम्भ की भीड़ को अयोध्या तरफ मोड़ दिया कि असली आजादी यहीं है। उन्होने एक कार्यक्रम में कहा कि असली स्वतंत्रता तब मिली जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई। संघ एक आर्गेनाईज्ड सेक्टर है। अयोध्या भी कोई स्थान का नाम नहीं है बल्कि एक आर्गेनाईज्ड-कल्ट है। अयोध्या एक संगठित उद्देश्य है। कुम्भ के भीड़ से संघ का सपना साकार नहीं होने वाला है। इसमें बहुत झोल है जिसे समझने की जरुरत है।
संविधान और स्वतंत्रता पर भी इन्होने अपनी बात कही है। संघ भाया भाजपा कोई खेल नहीं खेलना चाहता। परोक्ष युद्ध नहीं, बल्कि अब प्रत्यक्ष युद्ध की तैयारी है। भाजपा भी संघ की सुरक्षा में खड़ी नहीं दिखती। भाजपा द्वारा कांग्रेस का विरोध तो हो रहा है, पर संघ का डिफेंड कहीं नहीं है। संघ की बात को सैद्धांतिक आधार देने में बीजेपी अभी पीछे खड़ी है।
भागवत के बयान में ऐसा कुछ नहीं है जो इतना बवाल किया जाए। बस यह जो खेल शुरू हुआ है यह आगे तक खिंचाएगा। कांग्रेस ‘संगम शरणम् गच्छामि’ की बात नहीं कर रही है मत करे पर संघम शरणं गच्छामि की तरफ न जाए तो बेहतर है। संघ और भाजपा के खेल को समझना आसान नहीं है। संभव है कि यह एक बड़ी पटकथा का हिस्सा हो।
संघ के बयान पर हमें कोई आश्चर्य नहीं है। यह अपने एजेंडे पर कायम है। इनके लिए संविधान जरूरी नहीं बल्कि मजबूरी है। इनकी स्वतंत्रता उनका यथास्थितिवाद है। भागवत के बयान का टुकड़ों में विरोध नहीं किया जा सकता है। एक संगठित प्रतिरोध की सख्त जरुरत है।