
चप्पा-चप्पा संघ की शाखा नहीं, बल्कि अब चप्पा-चप्पा कांग्रेस सेवा दल का चरखा चलेगा। चरखा का मतलब केवल वह चरखा नहीं जिसे गाँधी घुमा रहे थे। बात गाँधी के थॉट-प्रोसेस से जुड़ने की है। बात सामाजिकता और सर्व धर्म संभाव की है। अपने वक्त के सुलगते सवालों से जिस तरह बापू और बाबा साहेब मुठभेड़ कर आगे बढ़ रहे थे वैसी ही तैयारी और तत्परता को कांग्रेस अभी दुहराना चाहती है।
वर्तमान में कांग्रेस का दफ़्तर ही नहीं बदला है बल्कि कांग्रेस की रफ़्तार भी बदल रही है। रफ़्तार के लिए केवल इफ्तार का ही सहारा नहीं है। इफ्तार का मतलब धर्म निरपेक्षता से है। आरती और अजान के शोर में आमजन की आवाज कहीं गुम हो जाए, कांग्रेस इस पर गंभीरता से सोच विचार कर रही है।
वक्त जो लगे, पर कांग्रेस किसी दूसरे की शर्त और शक्ति के सहारे आगे नहीं बढ़ना चाहती। कांग्रेस अब स्वावलम्बी होना चाहती है। संघ परिवार आज भी सौ साल बाद 1925 में ही जी रही है।1925 के प्रतीक के भरोसे ही संघ परिवार निरंतर ताकत बटोर रहा है।
कांग्रेस भी अब संघ को जवाब देने की तैयारी कर रही है। संघ का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस का सेवा दल सक्रिय हो रहा है। सेवा दल की तीन दिवसीय बैठक भी जयपुर में हो रही है। देश की मौजूदा स्थिति को लेकर कांग्रेस उस शिविर में गहन चिंतन कर रही है। संघ तो प्रतीक का खेल, खेल रहा है और कांग्रेस के अनुसार वह परिवर्तन का खेल खेलना चाहती है।
नागपुर! नागपुर!! नागपुर!!! नागपुर संघ की ही जन्मस्थली नहीं बल्कि सेवा दल की बुनियाद भी नागपुर में ही पड़ी है। कांग्रेस भी अब नागपुर पहुँच रही है। नागपुर में कांग्रेस हेडगेवार से नहीं, बल्कि अपनी हार्दिकर से प्रेरणा लेने जा रही है। हार्दिकर सेवादल के संस्थापक रहे हैं। ये महान स्वतंत्रता सेनानी और गाँधी के अनुआयी थे।
संघ के प्रचारक की तरह इनके पास विचारक होंगे। ‘शाखा’ शब्द के बदले कांग्रेस का वह ‘केंद्र’ होगा। गांव-गांव संघ अपनी शाखा का विस्तार कर रहा है। अब कांग्रेस भी गांव-गांव अपना केंद्र खोलने जा रही है। संघ का ध्वज-प्रणाम नहीं बल्कि कांग्रेस के सेवादल में ध्वज-वंदन होगा। संघ का भगवा ध्वज नहीं, बल्कि कांग्रेस के केंद्र पर तिरंगा होगा।
केंद्र पर नमस्ते सदा वत्सले.. नहीं, बल्कि वन्देमातरम का जय-घोष होगा। घृणा फैलाने वाला कोई बौद्धिक नहीं, बल्कि प्रेम का सन्देश होगा। सेवा दल के लोग संघ की काली टोपी नहीं, बल्कि गाँधी टोपी पहनकर समाज के सामने जाएंगे। बटेंगे और कटेंगे नहीं, बल्कि पढ़ेंगे और बढ़ेंगे की बात होगी।
कांग्रेस लेगी जन्म दुबारा या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है। जो भी हो प्रतिबद्धता साफ है। यह संघर्ष लम्बा समय लेगा यह सच है। इसके अलावे कोई रास्ता भी तो नहीं है।
कांग्रेस जितना आगे बढेगी हमले भी उतने ही बढ़ेंगे। तैयारी जो हो कांग्रेस की, लेकिन सत्ता प्राप्ति ही अगर एकमात्र लक्ष्य है तो कांग्रेस कभी जीत नहीं पाएगी। ‘सदा सत्य बोलो’ तो ठीक है, पर झूठ से कैसे बचा जाए, यह भी तो सोचना पड़ेगा। मोहब्बत की दुकानें खोलने की बात अब वाचन के स्तर पर बल्कि कर्मना होगी। अच्छी बात के लिए सराहना होनी ही चाहिए।
सेवादल का आजादी के बाद कोई स्वस्थ रिकार्ड नहीं रहा है। कांग्रेस के अनुषांगिक संगठनों में चरित्र का घोर अभाव रहा है। सेवादल की लम्पटई जगजाहिर है। सेवादल अगर सोनिया परिवार की लठईति के लिए ही खड़ा होगा और देशबोध के बजाय दलबोध से भरा होगा तो वह संघ से बिना लड़े ही हार जाएगा। कांग्रेस को एक ठोस नैरेटिव्स बनाना होगा। सिद्धांत और आदर्श की बड़ी रेखा खींचनी होगी तभी कुछ कूद फांद का असर होगा।