सोवियत समाजवाद का पतन
सैद्धांतिक-सांस्कृतिक संघर्ष के अभाव में हुआ सोवियत समाजवाद का पतन
ब्रह्मानंद ठाकुर
सोवियत संघ में समाजवादी व्यवस्था के पतन के बाद पूंजीवादी –साम्राज्यवादी खेमा इस बात का काफी जोर-शोर से प्रचार कर रहा है कि समाजवाद का कोई भविष्य नहीं है। वे इस बात को समझना नहीं चाहते कि सोवियत संघ में पूंजीवाद का खात्मा होने के बाद भी व्यक्ति की सम्पत्तिगत मानसिकता और नैतिकता का पूरी तरह से खात्मा नहीं हुआ था। इन्हीं पूंजीवादी मानसिकता से लैस प्रतिक्रांतिकारियों ने बाद में चलकर सोवियत समाजवाद को ध्वस्त कर दिया। स्टालिन ने अपनी मृत्यु से कई महीने पहले चेतावनी देते हुए कहा था, यदि सोवियत संघ में सैद्धांतिक और सांस्कृतिक संघर्ष की अवहेलना की गई तो पार्टी और सोवियत राष्ट्र की अपूरणीय क्षति होगी। यह चेतावनी उस महान स्टालिन ने दी थी, जिसने देश और देश के बाहर पूंजीपति वर्ग के कड़े विरोध के बाबजूद उनकी तमाम साजिशों को विफल करते हुए समाजवाद को आगे बढ़ाया। एक पिछड़े राष्ट्र को अर्थव्यवस्था, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति और सामरिक क्षेत्र में चरम शिखर पर पहुंचा दिया। समाजवादी अर्थव्यवस्था की अभूतपूर्व उन्नति के बाबजूद समाज में चिंतन के क्षेत्र में पुरानी पूंजीवादी व्यवस्था वाली सोच, व्यक्तिवाद और व्यक्तिगत सम्पत्ति का मोह यथावत बना रहा। आर्थिक शोषण के कारण जिस जनता ने क्रांति का समर्थन किया था, क्रांति के बाद उसमें आत्मसंतुष्टि की भावना पैदा हो गई। दूसरी ओर, क्रांति से पूर्व जनता में सम्पत्ति जनित जो मानसिकता बनी हुई थी, क्रांति के बाद वह फिर सिर उठाने लगी। इसतरह व्यक्तिगत स्वार्थ और व्यक्तिगत स्वामित्व वाली मानसिकता को बढ़ावा मिलने लगा। स्टालिन ने इसी बात को लेकर अपनी गहरी चिंता प्रकट करते हुए कहा था, सोवियत संघ में पूंजीवादी स्वामित्व का खात्मा होने पर भी व्यक्तिगत सम्पत्ति और नैतिकता का खात्मा नहीं हो सका है। वहां के लोगों की आदत, व्यवहार, रुचि-संस्कृति में व्यक्तिगत सम्पत्ति की भावना, सम्पत्ति के मालिक बनने की इच्छा, व्यक्तिगत स्वार्थ आदि बरकरार है। सत्ता से हटाए गये पूंजीपतियों ने इस स्थिति का फायदा उठाया। स्टालिन की चिंता सही साबित हुई। उनके देहांत के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व ने विदेशी साम्राज्यवादियों की मदद से सोवियत समाजवाद को ध्वस्त कर दिया। मार्क्स, लेनिन, स्टालिन, माओत्सेतुंग सबों ने कहा है कि जब भी किसी खास समाज-व्यवस्था की जगह नई समाज-व्यवस्था कायम होती है तो आमलोग पहले वाली समाज-व्यवस्था जनित मानसिकता, आचार-व्यवहार एवं संस्कृति से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाते हैं। इसके लिए सैद्धांतिक और सांस्कृतिक संघर्ष अविराम चलाना जरूरी होता है। इसमें काफी समय लगता है। समाजवादी क्रांति के बाद लेनिन मात्र 7 बर्ष तक जीवित रहे। उन्होंने भी अगाह किया था कि क्रांति के बाद सत्ता से हटाए गये पूंजीपतियों की प्रतिक्रांति करने की ताकत काफी बढ़ जाती है। इसके लिए दीर्घकालीन सैद्धांतिक और सांस्कृतिक संघर्ष चलाना होता है। सोवियत नेता द्वारा ऐसा नहीं किया गया। इसी कारण से सोवियत समाजवाद का पतन हुआ। इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि समाजवाद का कोई भविष्य नहीं है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)