डॉ योगेन्द्र
24 जनवरी को माननीय प्रधानमंत्री भागलपुर पहुँचने वाले हैं। मुख्यमंत्री आये थे तो जिस इलाके से गुजरे, उसमें रंग रोगन, सड़क की मरम्मती और ख़ूबसूरत बनाने की कोशिश हुई। मुख्यमंत्री की आँखों में कुछ खटके नहीं, सब चंगा चंगा लगे, इसके लिए प्रशासन ने पूरा इंतज़ाम किया था। मुख्यमंत्री के लोगों और जिला प्रशासन ने तरक्की की सूचना देने वाले नये-नये बैनरों से शहर को पाट दिया था। उनके कार्यकर्ताओं ने बड़े बड़े हर्फ़ों में अपने नाम, अपने पद के नाम, साथ ही बड़ी सी तस्वीर लगायी थी। सबकुछ भला लग रहा था। राज्य के सबसे बड़े सरदार मुख्यमंत्री हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के ऊपर भी सरदारों के सरदार हैं। वे भागलपुर आ रहे हैं तो ज़ाहिर उनके स्वागत में अतिरिक्त इंतजाम तो होने ही चाहिए। चाय बेचते- बेचते हाथ और पांव दुख और दर्द से भरे थे। उन्हें राहत तो देनी चाहिए। हवाई जहाज धरती पर उतरते हुए हिचकोले न खायें, इसलिए नयी पट्टियां बिछायीं जा रही हैं। किल्ले- खुट्टे, खंभे गाड़े जा रहे हैं आश्चर्य की बात यह है कि हवाई पट्टी के विशेषज्ञों की राय है कि यहाँ हवाई जहाज नहीं उतर सकते, इसलिए किसी दूसरी जगह की तलाश वर्षों से जारी है, लेकिन प्रधानमंत्री के हवाई जहाज उतरते रहते हैं। खैर। यह रहस्य तो राजनेता और विशेषज्ञ जानें। जैसे मौसम बदल रहा है। वृक्षों में नये पल्लव और फूल लग रहे हैं, वैसे ही सड़क पर टँगे बैनरों ने भी अपना रूप बदलना शुरू किया है। पुराने बैनर उतरने की तैयारी में है और नये बनाये जा रहे हैं। नेताओं के आने से सड़कें उसी हैसियत की हो जाती हैं, जिस हैसियत के नेता होते हैं।
प्रधानमंत्री किसानों के लिए कुछ उद्घोषणाएँ करेंगे। यह एक व्यंग्य ही है कि दिल्ली के आसपास किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और देश के पूर्वी हिस्से में वे किसानों को महादान करेंगे। वे जब जब आये। बिहार को गले लगाया। जबर्दस्त उद्घोषणाएँ हुईं, मगर वे उद्घोषणाएँ कितनी लागू हुईं, किसी को नहीं मालूम। शायद प्रधानमंत्री को भी नहीं। वैसे भी प्रधानमंत्री कितनी उद्घोषणाएँ याद रखें। जहाँ-जहाँ जाते हैं, वे उद्घोषणाएँ करते ही रहते हैं। वे प्रधानमंत्री की सूची में इस संदर्भ में प्रथम श्रेणी में प्रथम हैं। इनका जब कार्यकाल खत्म होगा तो इन्हें उद्घोषणाओं का प्रधानमंत्री घोषित किया जायेगा। हरेक प्रधानमंत्री में कुछ न कुछ ख़ासियत होती है। इनकी एक और ख़ासियत है। वे एकतरफा बोलते हैं। इनसे प्रश्नोत्तरी संभव नहीं है। पत्रकार भले इनकी प्रशंसा में तिल का ताड़ करें, लेकिन वे पत्रकार सम्मेलन नहीं करते। हाँ, अपने चमचे पत्रकारों की निजी सभा जरूर बुलाते हैं। पत्रकार उनका सिर्फ दर्शन कर सकते हैं। दर्शनार्थियों को सवाल करने का अधिकार नहीं होता। यूपी से एमपी तक तीन सौ किलोमीटर में जाम है। महाकुंभ में महाजाम। कोई किसी से सवाल नहीं करता। ऐसा क्यों है? जब आपकी हैसियत सौ मेहमानों की है तो पाँच हजार को क्यों बुलाया? पुण्य ऐसे थोड़े ही मिलता है। महाजाम का मजा लीजिए। पुण्यात्माओं की भीड़ सड़क पर मौजूद है। फिलहाल योगी जी ने इन आत्माओं को परस्पर सत्संग का अवसर उपलब्ध करवाया है, उन्हें बधाई और साधुवाद दीजिए। मुझे तो हर वक्त कबीर याद आते हैं। मस्तमौला, बेबाक कथन और निर्भय। आज तक उन्हें रहना चाहिए था। ज्ञान के विस्फोट के बीच अज्ञानियों की फौज को वे ही डाँट सकते थे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)