मरे चूहों और कुत्तों के मध्य बच्चे

नफ़रत से भर गये हैं बच्चे

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डॉ योगेन्द्र
भागलपुर का हवाई अड्डा हाथी का दांत है। कहने को हवाई अड्डा है, वहां हवाई जैसी कोई बात नहीं है। हर दो तीन वर्षों में उसकी चारदिवारी उठती गिरती है। अंदर एक लाउंज बना है और लंबी चौड़ी हवाई पट्टी है। लाउंज के पास कम से कम बीस उपेक्षित ट्रक लगे हैं। वे अब सड़क पर कभी नहीं जा पायेंगे। हवाई पट्टी पर सुबह सुबह कार सीखने वाले लोग प्रैक्टिस करते हैं। टहलने वाले उस पर टहलते हैं। एक किनारे बूढ़ों का समूह जमा होता है जो मृत्यु के खिलाफ जंग का ऐलान करते रहते हैं। उस हवाई पट्टी के दोनों तरफ बोतल में पानी भर कर लोग सुबह का निपटान करते रहते हैं। उसी हवाई पट्टी पर मैंने देखा कि नौ छोटे छोटे बच्चे एक कुत्ते को घेरे हुए है। ये बच्चे मुश्किल से छह से आठ के बीच होंगे। पास गया तो एक बच्चे के हाथ में मरा हुआ चूहा था और वह कुत्ते को ललचा रहा था। मरे चूहे और कुत्ते उनके मनोरंजन के साधन थे। पूरब में सूरज देवता उनके इस खेल के साक्षी थे। हवाई अड्डे से निकल कर सड़क पर जब आया तो लगभग उसी उम्र के तीन बच्चों के कंधे पर बोरे थे और वे पन्नी और प्लास्टिक बोतल चुन रहे थे। भागलपुर की सड़कों पर अत्यधिक धूल रहती है और वे बिना रोक-टोक के फेफड़ों में प्रवेश करती है। ट्रैफिक इतनी है कि सड़क बनती है और टूटती है। इसमें कुछ योगदान तो ठेकेदारों-अफसरों का होता ही है।

चूहे और कुत्ते से खेलते बच्चों या प्लास्टिक चुनते बच्चों को लेकर, बहुत अफसोस मैंने महसूस नहीं किया। संभव है कि मेहनत से फूल खिले। यह भी संभव है कि ये समय के पूर्व मुरझा जायें। कुछ महीने पूर्व अपनी पोती के नामांकन के लिए एक चर्चित स्कूल में गया था। पता चला कि आठवीं कक्षा में प्रिंसिपल हैं और बच्चों ने बहुत हंगामा किया है। बच्चे यहां पढ़ने आते हैं, वे हंगामा क्यों करेंगे? पूरी बात का जब खुलासा हुआ तो मैं आश्चर्यचकित हुआ। दरअसल हुआ यह था कि एक मुस्लिम शिक्षक थे।‌ जब वे पढ़ाने आते तो कुछ बच्चे जय श्रीराम का नारा लगाते। हर रोज यह घटना हो रही थी । शिक्षक का धैर्य चुक गया तो उसने प्रिंसिपल से शिकायत की। मुझे लगा कि मरे चूहे और कुत्ते या प्लास्टिक चुनते बच्चे इन बच्चों से तो बेहतर हैं। स्कूल में पढ़ रहे बच्चे तथाकथित अच्छे समृद्ध घर से हैं और इतने नफ़रत से भर गये हैं कि वे अपने शिक्षक को भी अपमानित करने से नहीं चूकते। परिवार और समाज उसे कैसी ट्रेनिंग दे रहा है? इन बच्चों के हाथों में देश का कौन सा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

हम खेतों में जो बोते हैं, वही काटते हैं। बबूल बोयेंगे तो बबूल काटेंगे। हिन्दुओं और मुसलमानों – दोनों के ज्यादातर घरों में जहर बोये जा रहे हैं। कोमल-जिज्ञासु मन में जब इंसान और इंसान में विभेद का बीज बोया जाता है तो ये बच्चे आगे चलकर और क्या करेंगे? जहां रहेंगे, नफ़रत पैदा करते रहेंगे। नफ़रत का खेल बहुत निराला है। पूरी दुनिया आज इससे पीड़ित है। इजरायल हो या फिलीस्तीन, यूक्रेन हो या रूस, ईरान हो या ईराक, मणिपुर हो बहराइच हर ओर बबूल के कांटे उग आए हैं। हम इंसानों की दुनिया में नहीं बबूलों की दुनिया में रहते हैं। हम बबूल उगाते हैं, बोते हैं, काटते हैं। जिन्होंने प्रेम की बोली बोली, उनसे नफ़रत करते हैं। वैसे तो यहां कुछ भी टिकाऊ नहीं है, लेकिन यह एक ख़तरनाक दौर है, जहां नफ़रत को हमने अपनी चेतना में पूरा स्पेस दे रखा है।

 

Children among rats and dogs
डॉ योगेन्द्र

 

ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
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