चेत-कबड्डी, गुल्ली-डंडा

गांव के प्रमुख खेल चेत-कबड्डी, गुल्ली-डंडा

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ब्रह्मानंद ठाकुर

भारत गांवों का देश है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है। ऐसा मैंने बचपन में पढ़ा और सुना था। गांव की अपनी विशेषता थी। संस्कृति, परम्परा और रीति-रिवाज थे, बहुजन हिताय का भाव था। देखता हूं, गांव अब पहले वाला नहीं रहा। आज ठाकुर का कोना में अपने बचपन के दिनों में गांव के प्रमुख खेलों की चर्चा करने जा रहा हूं। तब ये खेल गांव के बच्चों और युवाओं में काफी लोकप्रिय हुआ करते थे।

कुछ खेलों का मौसम होता था और कुछ खेल सालोंभर खेले जाते थे। चेत-कबड्डी, गुल्ली-डंडा, डरबा-पतबा ,चूरिया-नुकिया (लुका -छिपी) ऐसा ही खेल था। बरसात के मौसम में चेत खेला जाता था और कबड्डी सालों भर। गुल्ली-डंडा का खेल तो बच्चों में बड़ा लोकप्रिय था। स्कूलों में कबड्डी महत्वपूर्ण खेल हुआ करता था। चूरिया-नुकिया छोटी-छोटी बच्चियां खेलतीं थीं। डरबा-पतबा पेडों की डालियों पर उछल-कूद करते हुए छोटे-छोटे लड़के खेलते थे। इन खेलों के माध्यम से बच्चों में अनुशासन के साथ-साथ मैत्री और सामुहिकता की भावना का विकास होता था। समय के साथ ये तमाम खेल गांव से विलुप्त हो गये। इसका दुष्प्रभाव नई पीढ़ी पर पड़ा। पहले खेल-कूद को शिक्षा का एक आवश्यक अंग माना जाता था। छात्र जीवन में पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद शरीर और मस्तिष्क के समग्र विकास के लिए एक-दूसरे का पूरक होता है। आज शिक्षा और खेल-कूद के सम्पूर्ण व्यावसायीकरण ने मनुष्यता के विकास सम्बंधी आवश्यक पहलू को नष्ट कर दिया है। वे ही छात्र अब खेल गतिविधियों में शामिल होते हैं, जिनके जीवन का उद्देश्य भविष्य में बड़ा खिलाड़ी बनकर खूब सारा पैसा कमाना होता है। स्कूली छात्र तो आज मोबाईल, कम्प्यूटर, लैपटाप पर गेम खेलकर अपना मनोरंजन करने लगे हैं। इस इंटरनेट और मोबाईल संस्कृति ने युवा पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर दिया है। प्रत्यक्ष साहचर्य और व्यक्तिगत आत्मीय सम्बंधों की जगह फेसबुक, ट्विटर आदि पर काल्पनिक दोस्तों की बाढ आ गई है। बच्चे परिवार और सामाज से लगातार दूर होते जा रहे हैं। कम्प्युटर और मोबाईल पर युद्ध, मार-धाड,हत्या और खून खराबे वाला हिंसात्मक खेलों में बच्चों की बढ़ती रुचि समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। कई किशोर वय के बच्चों ने तो मोबाइल पर तरह-तरह का हिंसात्मक वीडियो देख कर नृशंस और बर्बर घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। दुख इस बात का है कि इन सारी विकृतियों को देख-सुन कर भी समाज का प्रबुद्ध वर्ग और मिडिया मौन है।

 

Chet-Kabaddi Gulli-Danda
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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