डॉ योगेन्द्र
कागज दिखाने में तकलीफ तो होती है। खासकर वह कागज जो पोल खोलने वाला हो। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि याचिकाकर्ता को चुनाव से संबंधित सभी कागज दें। चाहे वह सीसीटीवी फुटेज हो या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से संबंधित कागजात हो। इस आदेश ने चुनाव आयोग को परेशान कर दिया। अगर कागज पब्लिक डोमेन में गया तो उसकी तो फजीहत हो जायेगी। इसलिए चुनाव कानूनों में बदलाव कर दिया। अब वे वही कागज देंगे जो चाहेंगे। लोकतंत्र में पारदर्शिता की बहुत ज़रूरत है, तभी लोकतंत्र कायम रहता है। यहाँ कम से कम छिपाना है। ज्यादा से ज्यादा दिखाना है। कांग्रेस सरकार ने आरटीआई कानून बनाया। जनता चाहे तो सरकार से कोई भी कागज मांग सकती है। लोग लोकतंत्र में सुप्रीम होते हैं। वही सरकार चुनते हैं, इसलिए जो भी कानून बनाये जाते हैं, उसमें लोक का ध्यान रखा जाता है। लेकिन वर्तमान सरकार छुपाने में विश्वास करती है, इसलिए शक होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। कोविड के समय पीएम केयर फंड बना। उसे आरटीआई से दूर रखा गया। जिस समिति के अध्यक्ष पीएम हैं और सदस्य मंत्रीगण हैं, उसमें कितनी राशि जमा हुई और कहाँ-कहाँ खर्च हुई, आप चाह कर भी नहीं जान सकते। क्या यह ठीक है? पैसा जनता देती है या कोई कम्पनी देती है। संभव है कि विदेश का भी पैसा हो। क्या जनता को जानने हक नहीं है कि पीएम केयर फंड में कहाँ-कहाँ से राशि आयी? किसी छोटी सी संस्था से भी सरकार मांग करती रहती है और उसकी गहन जाँच करती रहती है कि संस्था को कहाँ से पैसा आया? कहीं पैसे का दुरुपयोग तो नहीं किया जा रहा? ऐसी दशा में पीएम केयर फंड की सभी जानकारियाँ सार्वजनिक पटल पर रहनी चाहिए।
पीएम के सर्टिफिकेट को लेकर विवाद हुआ। आज तक क्लीयर नहीं हुआ कि उनका कौन सा सर्टिफिकेट सही है और कौन सा गलत? यह बात आप भी जानते होंगे कि सांसद बनने के लिए किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। बिना स्कूल गये भी, आप सांसद बन सकते हैं और जब सांसद बन गये तो प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं। इसके बावजूद पीएम के सर्टिफिकेट पर विवाद हुआ। गृह मंत्री ने एक दिन एक सर्टिफिकेट दिखाया और भी संदेह के घेरे में है। ऐसा करने की जरुरत क्या थी? एक तो कागज नहीं दिखायेंगे और जो दिखायेंगे, उसे सही सिद्ध नहीं कर पायेंगे। महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के बाद जो रिजल्ट आया, उस पर भरोसा करना मुश्किल है। महाराष्ट्र में तो कई गाँवों में इसको लेकर लोगों ने नाराजगी व्यक्त हुई। उन्होंने समानांतर मतदान केंद्र बनाकर पुनः वोट कराना चाहा कि किसे गाँव वालों ने वोट दिया तो उसे रोक दिया गया। ईवीएम पर आज गहरा अविश्वास है। सरकार का काम है कि जनता को भरोसा दिलाये। अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, इटली, आयरलैंड, नार्वे, फिलीपींस आदि कई देशों में ईवीएम बैन है। जब विपक्ष में बीजेपी थी तो वह ईवीएम के खिलाफ थी। सभी चुनावों में ईवीएम पर सवाल होता है। ऐसी दशा में ईवीएम क्यों नहीं बैन किया जा सकता? आज ऐसी तकनीक का विकास हो गया है कि छेड़छाड संभव है। लोकतंत्र भरोसा से चलता है और चुनाव की जिस प्रक्रिया पर अविश्वास है, उसे समय रहते बदल देना चाहिए।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)