डॉ योगेन्द्र
भागलपुर में हुए सृजन घोटाले बीस हज़ार करोड़ का है। बीसों साल से सीबीआई जाँच चल रही है। उम्मीद है कि अगली पंचवर्षीय योजना में पूरी होगी। चारा घोटाला सात हज़ार करोड़ का था जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से लेकर अनेक आईएएस को सज़ा हुई। उसमें भी कई छूट गये। मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले में भी सीबीआई अनवरत जाँच कर रही है। तीस साल से ज़्यादा ही हुए होंगे। इस बीच पचासों गवाह मारे गये या मर गये। सीबीआई भी ग़ज़ब की जाँच समिति है। जाँच करती रहती है और सरकार की इच्छाशक्ति पर वह निर्भर करती है। भागलपुर का सृजन घोटाला मामूली घोटाला नहीं है। सरकार योजनाओं के लिए जो पैसा भेजती थी, वह सरकारी खाते में नहीं जाकर सृजन संस्था में पहुँच जाता था। ग़ज़ब का खेल था और यह खेल बिना सत्ता के तो चल नहीं सकता। सृजन घोटाले की मालकिन थी मनोरमा देवी। वह अब दुनिया में नहीं रही। जब वह थीं तो शहर में उनकी तूती बोलती थी। भागलपुर में हवाई अड्डा है, लेकिन उस पर से कोई वायुयान नहीं उड़ता, लेकिन मनोरमा देवी को जब खाँसी भी होती थी तो स्पेशल यान आता था और मनोरमा देवी का इलाज होता था। ज़िलाधिकारी उस पर फ़िदा रहते थे। उनकी तीन नेताओं के साथ कई तस्वीरें हैं। इनमें शामिल हैं-माननीय केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, सैय्यद शाहनवाज हुसैन और निशिकांत दूबे। तस्वीरों कोई प्रमाण थोड़े ही होता है, पर इतना जरूर होता है कि मनोरमा देवी से इनके गाढ़े संबंध थे। मनोरमा देवी इनके सगे संबंधियों में भी नहीं आती थी। तब फिर ये कैसे रिश्ते थे और क्यों थे? सीबीआई ने एक दिन भी इन्हें बुला कर नहीं पूछा कि आपके और मनोरमा देवी के संबंधों के आधार क्या थे?
मैं भी अद्भुत मूर्ख हूँ। दुनिया कहाँ से कहाँ चली गयी है और मैं पुराने युग में पड़ा हूँ। भ्रष्ट आचरण युग सत्य है। राजनीति में अगर सत्याचरण होने लगेगा तो फिर राजनीति का मज़ा ख़त्म हो जायेगा। राजनीति की ताक़त यह है कि बहुत से महात्मा राजनीति में घुस आये हैं। इन्हें तपस्या और ईश्वर भाया नहीं, वे लंगोट बाँध कर संसद और विधानसभा में पहुँच गये। साधु के आचरण अच्छे होते हैं। लोग उन पर भरोसा करते हैं, क्योंकि वे ईश्वर के क़रीब के लोग होते हैं। मगर अब साधुओं को न अपने पर भरोसा है, न ईश्वर पर। सो वे धरती के भगवान के शरणागत हो गए हैं। मंदिरों में भी भगवान तभी खुश होते हैं, जब चढ़ावा और चाटुकारिता चढ़ाये जाते हैं। धरती के भगवान जो राजधानियों में निवास करते हैं, इनकी हालत भी वही है। वे भी प्रसन्न तभी होते हैं, जब उन्हें सहलाया जाता है या उन पर पान- फूल चढ़ाया जाता है। इन कामों के लिए दाम चाहिए और दाम मिले, इसलिए मनोरमा देवी चाहिए। मनोरमा देवी एक प्रवृत्ति का नाम है। वह अब हर जगह मौजूद है। सरकार के दफ़्तरों में और सरकार की नियत में। भ्रष्टाचार नहीं होगा तो आजकल की राजनीति नहीं होगी। भ्रष्टाचार की अनिवार्यता ने मनोरमा देवी पैदा की है। उस पर लगाम तभी लगेगी, जब यह राजनीति बदलेगी। इस राजनीति के रहते सीबीआई कुछ नहीं कर सकती। जाँच पर जाँच होगी। छोटे-छोटे लोग पकड़े जायेंगे और बड़े गद्दी का लुत्फ उठाते रहेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)