Browsing Category

ठाकुर का कोना

समाज का ऐसे हुआ वर्ग विभाजन

समाज में गरीब-अमीर अनादि काल से रहे है और रहेंगे। ऐसा अक्सर लोग कहते है। इसके लिए तर्क दिया जाता है कि जब हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं है तो फिर समाज में सभी बराबर कैसे हो सकते हैं? अमीर-गरीब तो भगवान ने बनाया है। उनका यह तर्क न तो…

सत्ता बदलने से व्यवस्था नहीं बदलती

आजादी के बाद से आज तक भारत मे बहुत सारे दल बनें, बिखरे, टूटे भी। कुछ दलों के नाम भी बदले। उसमें अनेक दलों का अब नामोनिशान तक नहीं रहा।दलों के नेता भी बदले, नीतियां वहीं रही। पूंजीवाद परस्त। परिणाम स्वरूप आम आदमी के हक में कुछ खास नहीं हुआ।

लुप्त हो गये गांव के हस्त शिल्प और कुटीर उद्योग

दो दिन पहले मेरे टोले में एक 8-10 साल का लड़का साईकिल के कैरियर पर बांस से बनी चार टोकरियां लादे, बेंचने आया था। मैंने टोकरी की जब कीमत पूछी तो उसने कहा, पापा ने सौ रूपये में बेंचने को कहा है। उसका मतलब था सौ रूपये में एक टोकरी।

आक्समिक नही है नेताओं का चारित्रिक अवमूल्यन

देश में आजादी आंदोलन चल रहा था। अपने नेता के आह्वान पर झुंड के झुंड युवक व युवतियां आंदोलन में शामिल हो रहे थे। अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे। उनके दिलों में अपने नेताओं के प्रति बड़ा सम्मान भाव था। तब नेताओं में खुदगर्जी की कोई भावना…

छात्रों का राजनीति में शामिल होना जरूरी

"जब वक्त पड़ा गुलिस्तां को, खूं मैंने दिया, अब बहार आई तो कहते, तेरा काम नहीं'। यह कथन उन राजनेताओं के लिए बिल्कुल सटीक है जो छात्र-युवाओं की कुर्बानी के बल पर सत्ता हासिल करने के बाद उनको राजनीति से अलग रहने की नसीहत देते हैं।

रावण दहन तो हो गया, लेकिन —–!

अगर हम वर्तमान परिवेश में शक्ति की पूजा को बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य की जीत और नारी-अस्मिता की रक्षा की दृष्टि से देखें तो जो स्थिति नजर आती है, वह बड़ी डरावनी है।

पुराना घर गिरे, नया घर उठे

तब समझा, पुरातन का मोह नूतन के सृजन में बाधक होता है। वह सृजन पहले विचारों का होता है, फिर समाज का। पुरातन को पूरी तरह त्याग कर ही नूतन की स्थापना होती है। यही प्रकृति का नियम है। यह काम आसान नहीं है। पुरातन के मोह से ग्रस्त लोग हर युग में…

रोटी से बड़ा कोई धर्म नहीं होता

भूखे को भोजन न दे कर, मंदिरों में पूजा-अर्चना में व्यस्त रहने वालों की भर्त्सना करते हुए उन्होंने कहा, करोड़ों खर्च कर काशी, मथुरा, वृंदावन में देवता के कमरों के दरवाजे खुल रहे हैं और बंद हो रहे हैं। एक देवता कपड़े बदल रहे हैं, तो दूसरे…

बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए ?

करमी को पहचानते हैं? कभी देखा है कही? नहीं देखे हैं तो आइए मेरे साथ। मैं आपको लिए चलता हूं गांव के चौर में। चौर उस जगह को कहते हैं जहां साल में छह महीना जल-जमाव रहता है। वह देखिए, वहीं है करमी का लत्तर।

मुंशी प्रेमचंद की यादें

कल महान कहानीकार, उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की 88 वीं पुण्य तिथि थी। इस कालजयी साहित्यकार ने 8 अक्टूबर,1936 को अपने नश्वर देह का त्याग किया था। वे मरकर भी अमर हो गये। 'कीर्ति यस्य स जीवति'।