पूंजीवाद ही है भ्रष्टाचार की जड़

रजनीकांत प्रवीण के ठिकानो पर छापामारी

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ब्रह्मानंद ठाकुर
आज एक खबर बिहार के बेतिया जिला की है। गुरुवार की अहले सुबह यहां के जिला शिक्षा पदाधिकारी रजनीकांत प्रवीण के 5 ठिकानो पर स्पेशल विजलेंस यूनिट की छापामारी हुई। इस छापेमारी में 2 करोड नगद के अलावे 27 किलोग्राम चांदी और 1.3 किलो सोने के आभूषण बरामद किए गए। डीईओ रजनीकांत प्रवीण 3 साल से बेतिया में पोस्टेड थे। इससे पहले वे बेगुसराय, दरभंगा, मधुबनी और बगहा में भी पदस्थापित रह चुके हैं। शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह पहली कार्रवाई नहीं है। अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत पर अक्सर कार्रवाई होती रही है लेकिन भ्रष्टाचार है कि रुकने के बदले लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे पदाधिकारी शिक्षकों के आर्थिक दोहन से लेकर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी खूब जमकर लूट खसोट करते हैं।
डीईओ रजनीकांत प्रवीण पर भी कुछ ऐसे ही आरोप हैं। सवाल है कि जब भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई हो ही रही है तो भ्रष्टाचार आखिर रुक क्यों नहीं रहा है? इसका जवाब हमें उस आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था में तलाशना होगा, जिसमें हम रह रहे हैं। हमारे देश की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। अपने ऐतिहासिक नियमों से यह पूंजीवाद आज खुद गंभीर संकट की दौर से गुजर रहा है। इसका प्रगतिशील चरित्र पूरी तरह खत्म हो गया है। इसी वजह से यह अपने समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के आदर्शों का गला घोंट रहा है। नीति-नैतिकता और मानवीय मूल्यबोध समाज से बिल्कुल गायब हो गये हैं। यह पूंजीवाद अब अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बेलगाम भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का सहारा लेने लगा है। अब कोई संसदीय पार्टियां जनता की ज्वलंत समस्याओं पर दीर्घकालीन जनांदोलन नहीं करतीं। इनको तो बस चुनाव जीतने से मतलब है। एक तरह से ये पार्टियां जनता से अलग थलग ही नही, जनता में बदनाम भी हो गई हैं। पैसा और मीडिया के बल पर सभी सत्ता के गलियारे में दाखिल होने को बेताब हैं। इस घटाटोप अंधेरे से निकलने मे एकमात्र शिक्षा ही सहायक हो सकती थी लेकिन इस शोषणमूलक पूंजीवादी व्यवस्था को टिकाए रखने के लिए पूरी शिक्षा व्यवस्था को नेस्तनाबूद किया जा रहा है। डीईओ रजनीकांत प्रवीण तो एक उदाहरण भर हैं। यहां तो पूरी शिक्षा व्यवस्था ही लकवाग्रस्त हो चुकी है। कहने को तो शिक्षा-व्यवस्था में गुणात्मक सुधार के लिए सरकार ने अधिकारियों की फौज तैनात कर रखी है। इनके वेतन भत्ते पर मोटी रकम खर्च किए जा रहे हैं लेकिन नतीजा बिल्कुल विपरीत है। इन अधिकारियों को विद्यालयों में छात्रों -शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के बजाय उनके आर्थिक दोहन में विशेष रुचि रहती है। शिक्षकों का साधारण से साधारण काम भी बिना रिश्वत के नहीं होता। विद्यालय में यदि सरकारी फंड से कोई निर्माण कार्य हो रहा होता है तो उसमें भी अधिकारियों का कमीशन तय रहता है। बेतिया के डीईओ (अब निलंबित) पर भी तो ऐसे ही आरोप हैं। भ्रष्टाचार, अपराध और अनैतिकता के दल-दल से यदि मुल्क को उभारना है तो इस मरनासन्न पूंजीवादी व्यवस्था को जड़मूल से नष्ट करना ही होगा।

 

Capitalism is the root of corruption
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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