स्तालिन और हिटलर के युग में…

क्रूरताओं के पूंजीभूत ज्वाल

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डॉ योगेन्द्र
सुरजीत पालर की एक कविता की पंक्तियाँ हैं-

“मैं पहली पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से
पंक्ति काट देता हूँ।
मैंने अपने प्राणों की खातिर
अपनी हजार पंक्तियों को
ऐसे ही कत्ल किया है।”
कितनी सटीक पंक्तियाँ हैं। हम अपनी जान बचाने के लिए सच नहीं लिख पा रहे, न बोल पा रहे। ज्यादातर प्रकाशक सत्ता के खिलाफ लिखी किताबें छाप नहीं रहे। डरे हुए लोग, डरे हुए शब्द और डर के मध्य अट्टहास हँसी। मुझे रूस के साहित्यकार सोलजेनित्सिन की याद आ रही है। 1945 का समय था। द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। एक तरफ नाजीवाद था तो दूसरी तरफ उससे हाथ मिलाता स्तालिनवाद था। दोनों क्रूरताओं के पूंजीभूत ज्वाल थे। गजब का समाँ था। स्तालिन से जनता थर-थर कांपती थी। सोलजेनित्सिन स्तालिन के आलोचक थे, लेकिन नाम लेकर आलोचना नहीं करते थे। वे मूँछों वाला आदमी कह कर पुकारते थे। तब भी वे कैसे बचते। उन्हें गिरफ्तार कर आठ वर्ष की सजा दे दी गई। सोलजेनित्सिन ने स्तालिन के आतंक के बारे में अनेक किस्से लिखे हैं। एक किस्सा यों है। स्तालिन के दल की जिला समिति की बैठक थी। वहाँ स्तालिन की प्रशंसा में सभी को तालियाँ पीटनी थी। स्तालिन का खासमखास लोग वहाँ मौजूद थे। तालियाँ पीटनी जब शुरू हुई तो फिर वह बंद कैसे हो? लोग डर से तालियाँ पीटते रहे। पाँच मिनट, दस मिनट, पंद्रह मिनट। हाथ थक गए। कई बेहोश होकर गिर पड़े, लेकिन जो बचे रहे, वे चेहरे पर छद्म हँसी हँसते हुए तालियाँ पीटते रहे। तंग आकर एक सामान्य व्यापारी ने ताली बजानी बंद कर दी। लोग तो इंतजार में थे ही। उसकी देखादेखी सभी ने तालियाँ बजानी बंद कर दी। उसके बाद स्तालिन के आदमी ने उस व्यापारी को गिरफ़्तार कर लिया, जिसने पहले ताली बजाना बंद किया था। उसे गुलाग भेज दिया गया। गुलाग साइबेरिया का वह स्थल था, जहाँ कैदियों से कठोर श्रम करवाया जाता था। स्तालिन 1953 तक संयुक्त रूस पर शासन किया और हजारों विरोधियों को मरवाया।
आज एक बार फिर साम्राज्यवाद सिर उठा रहा है। लोकतांत्रिक पद्धति और उसके मूल्य खत्म हो रहे हैं। चीन और अमेरिका एआई को टूल बना कर अपने नागरिकों और दूसरे देशों का डेटा जमा कर रहा है। चीन में निजता नाम की कोई चीज नहीं बची है। आपको अलग से जासूसी करने की जरूरत नहीं है। सरकार के पास आपकी पल-पल की खबर रहेगी। स्मार्ट फोन से आपको कुछ सुविधाएँ मिली हैं, लेकिन यह एक बहुत बड़ा जासूस है। सरकार ने इसके खूब ढोल पीटे हैं। हम आप भी खुश हैं, लेकिन इसके माध्यम से आपकी खोज खबर ली जा रही है। मनुष्य ने बहुत सारी खोजें कर लीं। खूब सूचनाएं इकट्ठी की, मगर वह एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रहा है। मनुष्य के सामने इकोलॉजी थ्रिट है। नदी, जंगल, सागर, हवा- सब पर खतरे मँडरा रहे हैं। हम इसका सामना कैसे करेंगे- यह नहीं सोच रहे और अब एआई लेकर आए हैं। 2023 में चीन, अमेरिका और इंग्लैंड सहित तीस देशों में ब्लेचली समझौता हुआ जिसमें यह माना गया कि एआई (कृत्रिम मेधा) से दुनिया की सभ्यता को खतरा है। दुनिया के कई बड़े उद्योगपतियों ने भी आशंका जताई है। खोजों और आविष्कारों से सूचनाएँ भले मिली हो, लेकिन प्रज्ञा नहीं मिली। मनुष्य सम्मान के साथ कैसे जीये, इसका निर्धारण नहीं हुआ। आज भी हम महात्मा बुद्ध, ईसा, मुहम्मद और गांधी को ही याद करते हैं।

 

Capital flames of cruelty
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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