कैंसर- दावों और हक़ीक़त के बीच भ्रमित समाज

जड़ी बूटियों से कैंसर का इलाज करने का दावा

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तनवीर जाफ़री
बावजूद इसके कि मेडिकल साइंस काफ़ी तरक़्क़ी कर चुकी है और नित्य होने वाले अनुसंधानों ने लगभग सभी रोगों के क्षेत्र में सकारत्मक परिणाम भी दिये हैं। यहाँ तक कि कैंसर नामक सबसे घातक बीमारी के क्षेत्र में भी हुये अनेक नए शोध व अनुसंधानों ने कैंसर के मरीज़ों के इलाज में भी सकारात्मक परिणाम हासिल किये हैं। उसके बावजूद अभी भी कैंसर को दुनिया के सबसे ख़तरनाक व जानलेवा मर्ज़ों के रूप में गिना जाता है। निश्चित रूप से कीमियो/थेरेपी में निरंतर आ रहे सुधारों के कारण बचपन में होने वाले कैंसर के बाद ज़िंदा रहने वालों की दर में बढ़ोतरी हुई है। यह अमेरिका में अब औसतन 80% या उससे ज़्यादा है। हालांकि, दूसरे कैंसर के मामलों में रोग का निदान न होने से हालात अब भी बेहतर नहीं हुए हैं। यही वजह है कि अभी भी वैज्ञानिक कैंसर की आनुवंशिक वजहों और कैंसर कोशिकाओं के ख़ास लक्षणों के बारे में ज़्यादा जानने की कोशिश में जुटे हैं। ख़ासतौर पर जब कोई मरीज़ चौथे स्तर के कैंसर से जूझ रहा होता है तो उसके स्वास्थ्य सुधार की संभावना बेहद कम हो जाती है।
परन्तु हमारे देश में इस ख़तरनाक मर्ज़ का इलाज करने के लिये भी विभिन्न स्तरों पर तरह-तरह के दावे पेश किये जाते हैं। कैंसर का इलाज निश्चित रूप से मंहगा इलाज है। इसलिये जब किसी ग़रीब परिवार का सदस्य कैंसर का शिकार हो जाता है और वह धनाभाव के चलते इसका मेडिकल उपचार नहीं करा सकता तो ऐसे ग़रीब लोगों का इलाज करने के नाम पर लोगों का नेटवर्क पूरे देश में सक्रिय है। कोई जड़ी बूटियों से कैंसर का इलाज करने का दावा करता है तो कोई गोमूत्र या इससे बनी दवाइयां बताकर अपना धंधा चला रहा है। कोई झाड़फूंक में कैंसर का निदान बताता है। हमारे देश में तमाम अनपढ़ अशिक्षित क़िस्म के लोग और वैद हकीमी का दावा करने वाले अनेकानेक नीम हकीम कैंसर से जूझने वाले मरीज़ों को गुमराह करने में लगे रहते हैं। इन्हीं मरीज़ों में कई ऐसे भी होते हैं जो धन संपन्न होने के कारण अपना मेडिकल इलाज भी कराते रहते हैं साथ ही अपने विश्वास के अनुरूप अन्य तरीक़े के इलाज भी करते रहते हैं। दरअसल आज भी देश का एक बड़ा वर्ग जोकि ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है, जिसके कारण मरीज़ अक्सर डॉक्टर से सलाह लेने के बजाय हर्बल नुस्खों का सहारा लेते हैं। परन्तु ऐसे मामलों में दिक़्क़त तब खड़ी हो जाती है जब एलोपैथी के ईलाज से स्वास्थ्य लाभ पाने वाला मरीज़ अपने आरोग्य लाभ का श्रेय एलोपैथी प्रणाली या मेडिकल साइंस को देने के बजाये अन्य देसी इलाजों या उपायों अथवा प्रकृतिक स्रोतों को देने लगता है। ख़ासकर समाज के लिये उस समय असमंजस्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब इस तरह के दावे किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति, जनप्रतिनिधि अथवा यशस्वी व्यक्ति द्वारा किये जायें।
उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों पूर्व क्रिकेटर व कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा अपने अमृतसर स्थित आवास पर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाकर यह दावा किया गया कि -‘उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू जोकि ख़ुद भी एक डॉक्टर हैं, ने अपने आहार में कुछ चीज़ें शामिल करके स्टेज चार के लाईलाज कैंसर जैसे मर्ज़ पर क़ाबू पा लिया है। सिद्धू ने यह घोषणा की कि उनकी पत्नी अब कैंसर से मुक्त हो चुकी हैं। सिद्धू के अनुसार चूंकि उनकी पत्नी के आहार में नींबू पानी, कच्ची हल्दी, सेब का सिरका, नीम की पत्तियां, तुलसी, कद्दू, अनार, आंवला, चुक़न्दर और अखरोट जैसी चीज़ें शामिल थीं, जिससे वह स्वस्थ हो गईं। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में किये गये सिद्धू के इन दावों के बाद से ही यह सवाल उठने लगा था कि क्या कच्ची हल्दी, नींबू पानी और नीम की पत्तियों जैसी साधारण आयुर्वेदिक चीज़ों से भी कैंसर जैसे मर्ज़ से मुक्ति पाई जा सकती है? सिद्धू की इस आत्मविश्वास पूर्ण प्रेस वार्ता के बाद सोशल मीडिया पर सिद्धू के दावों को लेकर बहस छिड़ी तो आख़िरकार टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई के 262 कैंसर विशेषज्ञों समेत अनेक पूर्व कैंसर विशेषज्ञों को सामने आना पड़ा। इन सभी कैंसर विशेषज्ञों ने सिद्धू के दावों से पूरी तरह असहमति जताई और कहा कि इन बयानों का समर्थन करने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इन कैंसर विशेषज्ञों ने लोगों से अपील भी की कि वे अप्रमाणित उपचारों का पालन न करें और अपने इलाज में देरी न करें। बल्कि, यदि किसी को अपने शरीर में कैंसर के कोई भी लक्षण महसूस होते हैं, तो उनको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। और यह सलाह भी एक कैंसर विशेषज्ञ से लेनी चाहिए।”
इससे पहले मध्य प्रदेश की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर जोकि स्वयं कैंसर से पीड़ित थीं और कैंसर विशेषज्ञों के उपचाराधीन थी। परन्तु जब उन्हें दवा इलाज से आंशिक स्वास्थ्य लाभ मिला तो उन्होंने इसका श्रेय मेडिकल उपचार को देने के बजाये ‘गाय के शरीर पर हाथ फेरने’ को दे दिया। प्रज्ञा ठाकुर ने बाक़ायदा टी वी कैमरे के सामने गाय पर हाथ फेर कर यह भी बताया कि स्वास्थ्य लाभ पाने के लिये गाय पर हाथ फेरने का सही तरीक़ा क्या है? इस तरह के निराधार दावे यदि आम लोगों की तरफ़ से किये जाएँ तो भले ही लोग उस पर तवज्जोह न दें परन्तु जब यही बातें किसी सेलेब्रेटी द्वारा की जाने लगें तो आम लोगों में ऐसे दावों पर चर्चा होना स्वाभाविक है। समाज में ऐसे दावों को लेकर केवल चर्चा ही नहीं होती बल्कि ऐसे सेलेब्रेटीज़ के अनेक प्रशंसक भी उन अप्रमाणित दावों के पीछे चल पड़ते हैं। वे ऐसे दावों पर तुरंत विश्वास कर लेते हैं। और ख़ुद भी ऐसे ही अप्रमाणित इलाज करने की कोशिश करते हैं। यह क़दम बहुत ही हानिकारक हो सकता है। क्योंकि कैंसर का इलाज तभी संभव है जबकि इसका इलाज सही समय पर शुरू कर दिया जाये। परन्तु वे अप्रमाणित इलाज के चक्करों में पड़कर सही समय पर शुरू होने वाले उपयुक्त इलाज से महरूम रह जाते हैं और कैंसर जैसा जानलेवा मर्ज़ धीरे-धीरे शरीर में अपनी जड़ें और भी गहरी कर लेता है। इसलिये किसी भी प्रतिष्ठित व यशस्वी व्यक्ति को ऐसे अप्रमाणित व निराधार दावों से बचना चाहिये क्योंकि समाज ऐसे दावों और हक़ीक़त के बीच भ्रमित रहता है।

Cancer- Society confused between claims and reality
तनवीर जाफ़री
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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