बुरा ना मानो महोत्सव के बहुआयामी पहलू

होली प्रेम, वात्सल्य और बाहुबल प्रदाता पर्व है।

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विनोद कुमार विक्की
समय के साथ प्रह्लाद युग से पंच जी (5-जी) युग तक मनाये जाने वाले ‘बुरा ना मानो महोत्सव’ के रीति और प्रकृति में काफी कुछ बदलाव आया है।
विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो होली असीम ऊर्जा प्रदान करने वाला महापर्व है। होली के दौरान बिना च्यवनप्राश का सेवन किए ही गाँव के युवा से वयोवृद्ध तक के हाड़ मांस में अद्वितीय स्फूर्ति का संचार होने लगता है। अपनी आयु और औकात के अनुरूप टिन, चदरा, कनस्तर की धुन और फगुआ राग पर अपनी गायकी से संपूर्ण गाँव की तथाकथित साली-भौजाई को रिझाने की जुगाड़ में लग जाते हैं। इनके रहस्यमयी इच्छा और शक्ति (इच्छा शक्ति) पर चिकित्सा विज्ञान भी अचंभित है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से होली गीत-संगीत का महापर्व है। कुकुरमुत्ते की तरह पनपने वाले क्षेत्र के इंडियन आइडल (लोक गायक) होली की आड़ में द्विअर्थी भोजपुरी गीत-संगीत को बकायदा भुनाने में लग जाते है। भले ही फागुन के आगमन पर पेड़ से पत्ता झड़े, ना झड़े, आलस्य बढ़ाने वाली हवाएंँ चले, ना चले, लेकिन द्विअर्थी गीत खूब चलते हैं। क्षेत्रीय गायक अपने धरोहर अश्लील गानों से सभ्य समाज में फगुनाहट का अहसास कराने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।
सामाजिक दृष्टिकोण से होली रिश्तेदारों के बीच आपसी संबंध को प्रगाढ़ बनाता है। यह और बात है कि प्रगाढ़ता का अनुबंध सिर्फ जीजा-साली और देवर-भाभी, ननदोई-सड़हज पर ही लागू होता है। मजे की बात है कि सरकार ने अभी तक इस पर संज्ञान नही लिया है, अन्यथा नाम परिवर्तन की आड़ में अब तक इस पर्व को जीजा-साली, देवर-भौजाई वैश्विक रंग महोत्सव का नाम दे दिया गया होता।
होली प्रेम, वात्सल्य और बाहुबल प्रदाता पर्व है। आजीवन सहोदर को गले ना लगाने वाला भाई, पड़ोसी से टेढ़ा मुंँह बात करने वाले फगुआ प्रेमी भी सस्ता नशा से अपने इंसानियत की डिस्चार्ज हो चुकी बैट्री को हंड्रेड परशेंट रीचार्ज कर डालता है। बंदा पुरे गाँव के बाशिंदों को गले लगा-लगा कर भाईचारा का टाॅपअप मुफ्त में बांँटता फिरता है। बीपीएल समुदाय के फगुआ प्रेमी भी होली में रंग गुलाल खरीद गली मुहल्ले में फलां या ढिमका की जोरू को ‘हैप्पी होली भौजी’ बोलकर होली की शुभकामनाएँ देने में व्यस्त हो जाता है। इसी तरह ड्राय स्टेट में फगुआ प्रेमी चोरका दारु का जुगाड़ लगाने का अथक प्रयास में लगा रहता है, तो कुछ बीपीएल कोटि के फगुआ प्रेमी भांग अथवा सस्ता नशा कर समाज, शासन और प्रशासन सहित समस्त संसार को ललकारने में लग जाता है।
होली दिव्य ज्ञान प्रदायिनी महापर्व है। कुछ मानवों को जल संरक्षण के दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होली के दौरान होती है और वो वाटरलेस होली का ज्ञान बांचना शुरू करते हैं। ‘कब है होली’ का उद्घोष करने वाले रामगढ़ के परम आदरणीय गब्बर सिंह को भी बुरा ना मानो महोत्सव अर्थात बौराने के महापर्व का इंतजार उतनी बेसब्री से ना रहा होगा, जितना पूर्वोत्तर राज्यों में देवर, जीजा, शराबियों और भोजपुरी गायकों को रहता है।

Bura Na Mano Holi Hai
विनोद कुमार विक्की ,खगड़िया

 

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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