हैवानियत का कारण वर्तमान सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था
हमारे समाज में ऐसी विकृतियों क्यों और कैसे पैदा हुईं?
ब्रह्मानंद ठाकुर
अखबार में एक खबर छपी है। खबर का शीर्षक है, ‘रात में हैवान बन जाता था पति। पत्नी को बेहोश कर 11बर्षीय बेटी के साथ करता था दुष्कर्म।’ खबर गाजियाबाद के विजय नगर थाने की है। पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी दुष्कर्मी पिता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। ऐसी घटनाएं आज आम हो गई हैं। बलात्कार, हत्या, लूट, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार की खबरें अखबारों की सूर्खियां बनतीं रही हैं। देश के रहनुमाओं ने कभी इसपर गंभीरतापूर्वक नहीं सोचा कि हमारे समाज में ऐसी विकृतियों क्यों और कैसे पैदा हुईं? हम इतने हैवान कैसे बन गये? चलिए, थोड़ा पीछे लौटते हैं। जब हमारे देश में साम्राज्यवादी अंग्रजों का शासन था, वे चाहते थे कि भारत के छात्र -युवा नौकर बनें, गुलाम बनें। नेताओं ने अंग्रेजों की इस नीति को गहराई से समझा। देश हित में युवाओं को आह्वान किया। इस आह्वान पर अनगिनत युवा अंग्रेजों के खिलाफ आगे आएं। अपनी पढ़ाई और नौकरी छोड़ दी। घर-परिवार छोड़ा, जेल गये, लाठी -गोली का सामना किया। अपनी शहादत दी। तब जाकर देश आजाद हुआ। वे मानवीय मूल्यबोध और उच्च नीति नैतिकता से लैस थे। आजाद भारत के शासक आज के युवापीढी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। शराबखोरी, जुए बाजी, ड्रग्स सेवन, महिलाओं के प्रति अश्लील हरकतों को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देकर उनकी रीढ़ तोड़ी जा रही है। रही-सही कसर कतिपय संचार माध्यम पूरा कर रहा है। ब्लू फिल्म और टीवी के जरिए सर्वत्र अश्लीलता फैलाई जा रही है। वृद्ध माता-पिता को उनके ही बच्चे घर से निकालने से भी परहेज नहीं करते। उनकी हत्या कर सम्पत्ति हथियाई जा रही है। दया, माया, प्रेम, मुहब्बत सबकुछ नष्ट किया जा रहा है। यह सब मरनासन्न पूंजीवादी व्यवस्था का परिणाम है। पूंजीवाद आज अपनी आखिरी सांस गिन रहा है। इसका प्रगतिशील चरित्र नष्ट हो चुका है। ऐसे में वह अपने को टिकाए रखने के लिए हर सम्भव अपना गर्हित हथकंडा अपना रहा है। पूंजीपति वर्ग चाहता है कि युवाओं के अंदर का विवेक पूरी तरह नष्ट हो जाए। वह हैवान बन जाए ताकि वह जुल्म और शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा सके। उसे पैसों से खरीदा जा सके। पूंजीपतियों के चहेते राजनीतिक दल भी युवाओं को दिग्भ्रमित करने के प्रयास में शामिल हैं। चुनाव के समय पैसे के बल पर युवाशक्ति को अपने वर्ग हित में उपयोग करने से परहेज़ नहीं करते। आज देश में भगत सिंह, खुदीराम बोस, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद विद्यासागर, शरतचन्द्र, प्रेमचंद का आदर्श कहीं और किसी भी क्षेत्र में दिखाई नहीं देता। इनकी गौरवपूर्ण स्मृति को षड्यंत्र के तहत जनमानस से पूरी तरह मिटा दिया गया है। पूंजीपति वर्ग चाहता है कि युवा पीढ़ी अपने गौरवशाली अतीत को पूरी तरह भूल जाए। नैतिक, सांस्कृतिक और चारित्रिक पतन के गर्त में डूब कर वह पूरी तरह हैवान बन जाए। पूंजीवाद के इस षड्यंत्र को समझते हुए इसके विरूद्ध व्यापक आंदोलन चलाने की जरूरत है। क्योंकि पूंजीवाद का खात्मा किए बिना ऐसी समस्याओं से मुक्ति सम्भव नहीं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)