बीपीएससी शिक्षकों का भौकाल

बीपीएससी शिक्षक सुर्खियों में

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विनोद कुमार विक्की
इन दिनों बीपीएससी शिक्षक अपनी हरकतों और हसरतों के कारण सुर्खियों में छाएं हुए हैं। आजकल इनका भौकाल इतना हैं कि न्यूज़ चैनल की टीआरपी और ऊर्फी जावेद का जलवा दोनों ही पीछे रह गया हैं। बिहार में चयनित शिक्षक और नियोजित शिक्षक की अघोषित मानसिक युद्ध अथवा विद्वेष के बीच बीपीएससी से चयनित शिक्षक की स्थिति कमोबेश सरकार बनाने वाली राजनीतिक पार्टी के जैसी है जो बहुमत के करीब सबसे ज्यादा सीटें लाने के बावजूद कुछ सीटों के लिए निर्दलीय अथवा दूसरी गठबंधन पार्टी पर आश्रित रहती हैं।
बिहार में ‘जो दिखता है वही बिकता है’ के ढर्रे पर नाम की बजाय अपने पद या प्रतिष्ठा के नाम पर प्रतिष्ठानों को चलाने का इतिहास पुराना रहा है।
इंटरनेशनल तैराक चाय वाला, एमबीए चाय वाली, ग्रेजुएट फुचका वाला, बी-टेक लिट्टी चोखा वाली, बेवफा चाय वाला आदि फुटकर प्रतिष्ठानों ने इस नाम चमकाओ तकनीक का भरपूर लाभ उठाया है।
बीपीएससी संस्थान से परीक्षा पास कर शिक्षक पद पर चयनित हुए अधिकांश अभ्यर्थी स्वयं को विशेष जीव अथवा मंगल ग्रह का प्राणी समझने की कोशिश कर रहे हैं। नहीं-नहीं ऐसा मैं नहीं कहता बल्कि सोशल मीडिया पर आए दिन ट्रेंड करने वाली इनके कारनामों की तस्वीरें और पोस्ट इस बात की गवाही दे रही हैं।
वेतनमान के मायने में भले ही पूर्व से चयनित शिक्षकों से कम है लेकिन परीक्षा लेने वाली राज्य आयोग की संस्था को इन्होंने अपना हॉल मार्क मान लिया है और जब-तब इस प्रमाणिकता को भूनाते हुए दिख भी जाते हैं। ऐसे मास्साब अपने पद से पूर्व संस्था के नाम को लगाना उसी तरह सौभाग्य और स्वाभिमान समझते हैं जिस प्रकार संस्कारी बच्चे अपने नाम के साथ माता-पिता का नाम लगाने में अथवा लुहेड़े अपने नाम के साथ विधायक का भतीजा होने का दंभ कर गौरवान्वित होते हैं।
सोशल मीडिया पर कभी साइकिल या मोटरसाइकिल पर बीपीएससी शिक्षक की पेंट की हुई तस्वीरें, तो कभी वैवाहिक डिस्प्ले बोर्ड पर वर के साथ बीपीएससी शिक्षक के पद का बखान करने वाली वीडियो वायरल हो जाती है। अब ऐसे गुरु घंटालों को कौन समझाए कि आप अपने नाम के साथ पद का बखान कर सकते हैं और उनका पद शिक्षक अथवा सहायक शिक्षक है ना कि भर्ती बोर्ड का शिक्षक।
वैदिक काल में वर्णित एवं प्रचलित ब्रह्म विवाह, देव विवाह, प्राजापत्य विवाह, आर्ष विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह और पैशाच विवाह नामक अष्ट विवाह से इतर बिहार में पकड़ौआ विवाह की संस्कृति और इतिहास का भी पुराना नाता रहा है। दशकों पूर्व शिक्षक से पदाधिकारी तक इस विवाह से लाभान्वित अथवा भुक्तभोगी रह चुके हैं। वर्तमान में मृत प्राय हो रही पकड़ौआ विवाह पद्धति को बीपीएससी शिक्षकों की वजह से फिर से जीवंत होने का अवसर प्राप्त हुआ है।
बहरहाल बहुमुखी प्रतिभा के स्वामित्व का सेल्फ कापीराइट धारण करने वाले ऐसे शिक्षकों के फर्जी होने अथवा प्रेमी होने का सुखद समाचार भी समाचार पत्रों के माध्यम से प्राप्त होता रहता है।

 

BPSC teacher
विनोद कुमार विक्की,खगड़िया
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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