ब्रह्मानंद ठाकुर
आज भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 128वीं जयंती है। आज के दिन देश भर में समारोह आयोजित कर भारत के आजादी आंदोलन में उनके महत्वपूर्ण योगदान को याद किया जाएगा। युवा पीढ़ी को उनके बताए रास्तों पर चलने की नसीहत दी जाएगी। वाम, दक्षिण और मध्य मार्गी विचारधारा वाले लोग अपने -अपने तरह से उनके विचारों का विश्लेषण करेंगे। यह सब करते हुए असली बातें छुपा ली जाएंगी जिसे बताना आज की नई पीढ़ी के लिए जरूरी है। उन्हीं बातों में एक है, नेताजी का धर्मनिरपेक्षता सम्बंधी दृष्टिकोण। आजादी आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी के हाथों में था। उन्होंने वैज्ञानिक व सही धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के बजाय सर्वधर्म समन्वय के आधार पर धार्मिक राष्ट्रवाद की एक अनोखी विचारधारा पेश की थी। परिणाम यह हुआ कि आजादी आंदोलन स्वर्ण हिंदुओं द्वारा संचालित होने लगा। ज्यादातर मुसलमान और दलित समुदाय आम तौर पर आजादी आंदोलन से अलग-थलग हो गये। कुछ यही कारण था कि देश में धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दृष्टिकोण का विकास नहीं हो सका। आजादी के बाद देश में राष्ट्रीय राजनैतिक एकता तो कायम हुई लेकिन धर्म, जाति, नस्ल और भाषा के आधार पर लोगों में विद्वेष कायम हो गया। इसी का परिणाम है कि आजादी के बाद आज भी धर्म, जाति और क्षेत्रवाद की भावना को उभार कर विभिन्न राजनीतिक दल और सत्ताधारी पार्टियां अपना वोट बैंक सुरक्षित करने का काम कर रही हैं। गांधीवादियों के धर्म सम्बंधी इसी दृष्टिकोण का विरोध करते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था, धर्म को राजनीति से पूरी तरह अलग रखना चाहिए। धर्म व्यक्ति का बिल्कुल निजी मामला हो और हर व्यक्ति को अपना पसंदीदा धर्म मानने की पूरी आजादी हो। राजसत्ता का किसी धर्म से कोई वास्ता न रहे। उन्होंने यह भी कहा था कि राजनीति का संचालन धर्म या अलौकिक विषयों द्वारा नहीं होना चाहिए। नेताजी ने ऐसा सिर्फ कहा ही नहीं, किया भी। उन्होंने अपने आजाद हिंद फौज के तमाम कार्यकलापों से धर्म को बाहर ही रखा। आजाद हिंद फौज के लिए सर्व धर्म समन्वय की अपील करते हुए जब एक गीत लिखा गया तब नेता जी ने यह कहते हुए उस गीत को स्वीकार करने से मना कर दिया कि मैं अपने काम-काज के साथ धर्म को किसी भी कीमत पर शामिल नहीं करने दूंगा। अगर ऐसा हुआ तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि वे धर्म के आधार पर ही अलग हो जाएंगे। नेताजी ने साम्प्रदायिकता के खिलाफ भी जबर्दस्त संघर्ष किया था। उन्होंने साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ लोगों को सतर्क करते हुए कहा था , ऐसे गद्दारों को आप राजनैतिक जीवन से निष्कासित कर दें। उनकी बातों पर तनिक भी ध्यान न दें। उनका इशारा तब के हिंदु महा सभा की ओर था।
आज पूरा देश साम्प्रदायिकता की आग में झूलस रहा है। हिंदुत्व का उन्माद फैला कर दंगे-फसाद हो रहे हैं। धर्म, जाति और सम्प्रदाय के नाम पर मिहनतकशों की एकता खंडित की जा रही है। ऐसे में नेताजी का सही धर्मनिरपेक्षता सम्बंधी दृष्टिकोण से आम आवाम को अवगत कराना जरूरी हो जाता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)