बिहार में फासले की राजनीति!

अजीब मिजाज के बिहार में फासले से मिल रहे हैं लोग...

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Bihar Politics
बाबा विजयेन्द्र (स्वराज खबर, समूह सम्पादक)

अजीब मिजाज के बिहार में

फासले से मिल रहे हैं लोग…

चूड़ा बिहार में मिहा चुका है। मकर-संक्रांति का दही भी अब खट्टा हो गया होगा। लेकिन जिन आकांक्षियों का मन खट्टा हुआ है, उनका क्या किया जाए? खेला होगा खेला होगा, पर कुछ नहीं हुआ। खेला क्या होगा, अब तो मंत्री मंडल का विस्तार हो रहा है। मतलब यही है कि फिलहाल सरकार कहीं नहीं जा रही है। खरमास के बाद पलटी तो नहीं हुई, पर उलट-पुलट की संभावना अवश्य बढ़ गयी है। भविष्य में बहुत सारे खरमास आएंगे, पर चुनाव पूर्व का यह खरमास सभी दल और दलपतियों के लिए खासे महत्व का है।
खेला का सम्बन्ध केवल नीतीश के सियासी खेल से ही नहीं है। यहां खिलाड़ी बहुत हैं। हर कोई एक दुसरे के साथ खेल ही रहा है। यह अजीब मिजाज का बिहार है, जहां सभी फासले से मिल रहे हैं। बिहार के पॉलिटिकल पीच पर बैटिंग करने वाले नये-पुराने सभी बैट्समैन नेट- प्रैक्टिस शुरू कर दिए हैं। टाइगर अभी जिन्दा है यानी लालू प्रसाद अभी भी करामात दिखाने की स्थिति में हैं। इन्होने हासिये की पीड़ा झेलने वाले पशुपति पारस को बिहार में फिर से जिन्दा कर दिया है। पारस को लालू का सहारा मिल गया है। अगर चिराग नहीं आता तो किनारा इन्हें कब का मिल गया होता। खैर, लोजपा गर्दा झाड़ कर उठ ख़डी हुई है।
लालू का साथ तो मिल रहा है लोजपा को, पर हाथ का क्या होगा? कांग्रेस के पुराने अरमानों का क्या होगा? राहुल की सजने वाली बारात में लालू अब कैसे नाचेंगे? सच है कि राजद अब नारद-मोह में है। आये थे बरतुहारी करने, स्वयं सिंदूर-दान कर आये! कांग्रेस भी हाथ छुड़ाने की स्थिति में है। तेजस्वी के खेल को कांग्रेस वक्त रहते भांप चुकी है और अलग राह की ओर निकलने की तैयारी में है।
राहुल भी बिहार आ रहे हैं। हो सकता है असली खेल यहां हो जाए। अगर ऐसा होता है तो भाजपा भी चाहेगी कि वह अकेले ही चुनाव में उतरे। भाजपा हर हालत में बिहार में बहुकोणीय लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहेगी। इस स्थिति में बिहार में नीतीश और कांग्रेस साथ आ सकते हैं?
तब भाजपा का कमल खिलता हुआ दिख सकता है। फिलहाल नीतीश कुमार बाहर और भीतर दोनों जगह काम कर रहे हैं। आनंद मोहन और प्रभुनाथ सिंह को नीतीश अपने पाले में ला चुके हैं। मंत्रीमंडल का विस्तार और योजनाओं के विस्तार के आधार पर नीतीश अपनी सामाजिक अभियांत्रिकी और समीकरण को साधने में आगे निकल चुके हैं।
नीतीश अपनी चुनावी- यात्रा पर हैं। इस यात्रा को प्रगति यात्रा का नाम दिया गया है। सरकार द्वारा रोज ताबड़तोड़ घोषणाएं हो रही हैं। यद्यपि इस यात्रा को राजद ने दुर्गति-यात्रा की संज्ञा दी है।
लालू की नजर तो लोजपा के बँगले पर लग ही गयी है, पर चिराग का क्या होगा? चिराग को लेकर भाजपा थोड़ी असहज भी होती रही है लेकिन पारस के खेमे बदलने के बाद चिराग के तले का अंधेरा अब मिट जाएगा। राजग में थोड़ा महत्व बढेगा लेकिन परफॉर्म करने का दबाव भी होगा इनपर। अगर कमजोर परफॉर्म होगा तो चिराग भी कमजोर हो जाएंगे राजग में। केवल छाती फाड़ने से काम नहीं चलेगा।
इधर मांझी के कारण राजग की नैया डगमगाती हुई दिख रही है। मांझी ही नाव डुबोये तो नैया कौन पार लगाए? मांझी ने बीस सीटों की डिमांड कर दी है। नीतीश भी सीट को लेकर ही खेला करने वाले थे। हो सकता है कि आगे हो भी जाए। सीटों के बंटवारे को लेकर संघर्ष तो तय है। खेल तो होगा ही। यह सस्पेंस अभी भी सनातन बना हुआ है। भंवर में दलों का भविष्य तो है ही, बिहार का भविष्य भंवर में ही है। बिहार के चुनाव में खरमंगल अपेक्षित है। खरमास तो एक बहाना है।

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