लेखक, प्रकाशक और समाज के यक्ष प्रश्न

रचनाओं के प्रचार, प्रसार जरुरी

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डॉ योगेन्द्र
कोविड के दौरान मैंने अपने बेटे सुकांत के सहयोग से हिंदी साहित्य पर सौ वीडियो बनाए थे। वे अब भी यूट्यूब पर मौजूद हैं और छात्र उन्हें देखते हैं और अपनी राय भी देते हैं। सितंबर महीने से हर दिन ‘स्वराज खबर‘ के लिए ‘इन दिनों’ कॉलम लिखता हूँ। स्वराज खबर की ओर से इसे यूट्यूब के लिए इस पर वीडियो भी बना दिया जाता है। सुकांत ने इहलोक को समझने और समझाने के लिए लगातार किताबें लिखीं, वीडियो बनाये और वेबसाइट पर लिखा। अब भी वह अनवरत काम कर रहा है। हर दिन उसके पास नया आइडिया होता है। नयी उमंग और उत्साह के साथ काम करता है। उसका मानना है कि जब संचार माध्यमों में नयी तकनीक के ज़रिए एक तरह की क्रांति हो रही थी तो नरेंद्र मोदी जी उस पर सवार हो कर प्रधानमंत्री बने। एक बार फिर संचार क्रांति में बदलाव का दौर है। एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने इस माध्यम में मजबूती के साथ हस्तक्षेप किया है। इसलिए देश में कुछ नया होने की संभावना है। अगर आप उसके वेबसाइट (sukantkumar.com) पर जायें तो एक नयेपन का अहसास होगा। इहलोक को समझने और समझाने के लिए उसने चार किताबें लिखीं जो अमेजन पर प्रकाशित है। वह बार-बार सवाल करता है कि एक लेखक को इतना संसाधन समाज और सरकार मुहैया क्यों नहीं करवाता जिससे वह स्वतंत्रतापूर्वक अपना काम कर सके? उसके सवाल ग़लत नहीं हैं। एक सभ्य समाज और सरकार में इतनी कूबत होनी चाहिए कि लेखक को जीवन जीने लायक़ संसाधन का इंतज़ाम करे।
लेखकों और पत्रकारों के लिए सरकार बहुत सुविधाएँ मुहैया नहीं कराती, क्योंकि वास्तविक लेखक तो प्रतिपक्ष में रहते हैं। वे सरकार की आलोचना करने से नहीं डरते। निडरता उसका स्वभाव होता है। सो, सरकार उससे दूर ही खड़ी रहती है। जो लेखक सरकार की गिन्नियों पर पलते हैं, वे रीतिकालीन रचनाएँ पैदा करते हैं। सरकार उन्हें पालती है। मैं देखता हूँ कि हिंदी की तुलना में बंगला, मराठी, तमिल, तेलुगू आदि भाषाओं में लेखक थोड़ा ज़्यादा सुरक्षित हैं। वहाँ रचनाएँ पढ़ने वाले और प्यार करने वाले पाठक मिलते हैं। हिन्दी की दशा थोड़ी बिगड़ी हुई है। यहाँ प्रकाशक मालामाल हैं। मुझे लगता है कि लेखकों के लिए समाज में एक ऐसा संगठन बने जो उसको आर्थिक सुरक्षा दे सके। लेखक की रचनाओं के प्रचार, प्रसार का केंद्र बने। लिखना बहुत ज़रूरी है, लेकिन जिसके लिए लिखा जाता है, वहाँ तक पहुँचना उससे कम ज़रूरी नहीं है। खैर।
आज एक पेपर का हेडलाइन है- ‘यूपी की जेल में बंद अपराधियों ने लीक कराया था पेपर, पटना व नालंदा के जालसाजों ने बेचे।’ जेल में अपराधी बंद है और बाहर उसका रैकेट चल रहा है। अपराधी अपनी गैंग को जेल के अंदर से संचालित कर रहा है। जेल का अधिकारी क्या करता है और जेल के बाहर का प्रशासन क्या कर रहा है? जासूसी संस्थाएँ क्या कर रही हैं? क्या प्रशासन का भी एक हिस्सा पेपर में शामिल होता है? बिना प्रशासन की मदद के तो यह सब नहीं हो सकता। देश में कैसी लचर सरकार है और प्रशासन कितना पंगु है, इसका सबूत है। दरअसल विभिन्न तरह के अपराधों में शरीक लोग विधानसभा और लोकसभा में पहुँच रहे हैं। अपराध की जाल चप्पे-चप्पे में फैली है। जेल से लेकर संसद- विधानसभाओं तक, तब इस पर नियंत्रण कैसे प्राप्त किया जाये। यह एक यक्ष प्रश्न है।

Authors, publishers and the pressing questions of society
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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