स्वामी सहजानंद सरस्वती का 136वीं जयंती

स्वामी जी कहते थे, सरकार किसानों से लगान न ले...

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ब्रह्मानंद ठाकुर
आज महाशिवरात्रि है। स्वामी सहजानंद सरस्वती का 136वीं जयंती। इनका जन्म 1889 में आज ही के दिन उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में हुआ था। इनके बचपन का नाम नौरंग राय था। वे आर्यों-अनार्यों, व्रात्यों और ब्रह्मर्षियों की समन्वित परम्परा की प्रतिमूर्ति थे। उनके सिरहाने -पैताने गीता और कार्ल मार्क्स का दास कैपिटल हमेशा रहता था। उनका आजीवन सन्यस्त रूप और हाथ में दंड एवं डमरू इस बात का प्रतीक है कि वे न केवल शंकर की नाश और निर्माण कारी पूंजीभूत रूप हैं, बल्कि दंडी स्वामी के रूप में किसानों -मजदूरों के पथ प्रदर्शक भी हैं। उन्होंने आजीवन सन्यस्त रहते हुए यह बताया कि जब जन-गण पर अन्याय, अत्याचार, शोषण-उत्पीडन हो रहा हो तो संन्यासी का कर्तव्य जंगलों और पहाड़ की गुफाओं में रह कर शंकर की तरह तांडव नृत्य यानि संघर्ष का नेतृत्व करना है। उन्होने आजादी आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की बोलती उस समय बंद कर दी थी जब उन्होंने कांग्रेस नेता मजहरुल हक के पटना आवास पर गांधी जी से पूछा था कि आजादी के बाद जमींदारों और पूंजीपतियों के हाथ में सत्ता आने के जो आसार हैं, उसे रोकने के लिए उनके पास क्या उपाय है? उनके इस प्रश्न का गांधी जी जवाब नहीं दे सके थे। तभी स्वामी जी कांग्रेस से नाता तोड़ कर आजादी आंदोलन की गैर समझौतावादी धारा के नायक सुभाषचंद्र बोस के साथ हो गये। इस प्रकार वे किसान -मजदूर का राज कायम करने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्षरत रहे। वे न केवल जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ते रहे बल्कि जब कभी मौका मिला, ब्रह्मर्षियों की सभा में उनकी मौजूदगी मे शोषित -पीड़ित खेत मजदूरों को सचेत करने की खातिर पूछते थे , बताओ जमींदार क्या तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन खा सकते है? क्या वे तुम्हारा जूठा पत्तल फेंक सकते हैं? क्या वे तुम्हारे मुर्दे को कंधा दे सकते हैं, तुम्हारे साथ रोटी -बेटी का सम्बन्ध बना सकते हैं। वग़ैरह वग़ैरह। आजादी के बाद वे गांधी और जयप्रकाश की तरह सत्ता से अलग रहकर किसान -मजदूरों का राज कायम करने के लिए स्वर मुखर करते रहे। उनका कहना था कि स्वदेशी सरकार किसानों से लगान का एक कौड़ी भी न ले और उन्हें खाद, बीज, सिंचाई की सुविधा और कृषि यंत्र उपलब्ध कराए। आजादी आंदोलन का उद्देश्य देश में शोषणमुक्त, वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना था। इस सपने को साकार करने के लिए स्वामी जी जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद देश के हुक्मरानों ने स्वामी जी के सपने को चकनाचूर कर दिया। देश भर मे आज स्वामी जी की जयंती मनाते हुए विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन स्वामी जी के सपनों को साकार करने की बात जरूर कहेंगे लेकिन उनकी मंशा को स्वामी जी के नजरिए से समझना आज के वक्त की फौरी जरूरत है।

 

Swami Sahajanand Saraswati
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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